देवों में महादेव ऐसे हैं जो सभी के पूज्य है और उन्हें देवता दानव एवं मानव दोनों मानते हैं। कहा भी गया है कि-” काशी में है तेरा जलवा काबे में नजारा है, एक हिन्दू को प्यारा है एक मुस्लिम को प्यारा है”।भोलेनाथ महादेव की स्थिति क्षणे रूष्टा क्षणे तुष्टा रूष्टा तुष्टा क्षणे-क्षणे वाली है और जब खुश हो जाते है तो फिर पिछले गुनाहों को भूल जाते हैं जैसा कि रावण के साथ हुआ था। महादेव की अर्द्धगिनी जगतजननी माता को अपनी पत्नी बनाने कैलाश पर्वत पर गये रावण को भी उन्होंने खुश होकर अपना अमोघ अस्त्र चन्द्रहास वरदान में दे दिया था। देवाधिदेव महादेव भूखे अन्न प्यासे को पानी ही नहीं वह अपने भक्त को वह हर चींज देते हैं जिसकी जरूरत उनके भक्त को होती है।भोलेनाथ सिर्फ इकलौते देव हैं जो क्षणिक आराधना एवं जलाभिषेक मात्र से खुश हो जाते हैं और भक्तों की मुराद पूरी करते हैं। सावन के माह में भगवान सदाशिव भोलेनाथ की पूजा अर्चना एवं जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है और जो भक्त गंगाजी से जल लेकर उसे अपने कंधे पर रखकर पैदल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाता है भगवान भोलेनाथ उसका भंडार हमेशा भरे और ऐश्वर्य को कायम रखते हैं। लोग विभिन्न मनौतियों को पूरा करने के लिये काँवड़ जल चढ़ाने का वायदा करते है और जब इनकी मनौती फलीभूत हो जाती है तो वह काँवड़ में जल लाकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। पैदल गंगाजी से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाने वाले इन्हीं लोगों को ही कवड़ियां कहा जाता है। काँवड़ यात्रा की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है और हर साल लाखों लोग देश के विभिन्न हिस्सों से काँवड़ जल लेकर भगवान भोलेनाथ की विभिन्न शिवलिंगों पर चढ़ाते हैं। हम लोगों के बचपन में कँवड़ियें ऐसे अभद्र झगलू शराबी रास्ता चलते मारपीट तथा डीजे के साथ ड्रांस नहीं करते थे बल्कि बम बम भोले का जयकारा लगाते हुये जब चलते थे सड़कों पर आस्था व कौतूहल फैल जाता था। कँवड़ियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिल्ली राजस्थान हरियाणा के अधिक उग्र माने जाते हैं और हर साल सबसे ज्यादा उत्पात यहीँ लोग करते हैं।शिवभक्त कँवड़ियें का का लक्ष्य जलाभिषेक होता है रास्ते उत्पात करना नहीं होता है। उत्पात करने वाले कँवड़ियों को किसी भी तरह से शिवभक्त नहीं माना जा सकता है क्योंकि असली शिवभक्त उग्र हो ही नही सकता है।हर साल इन कँवड़ियों की तादाद बढ़ती ही जा रही है तथा इस पवित्र यात्रा में अपवित्र लोगों का भी प्रवेश होने लगा है। इन काँवड़ियों में वह लोग भी शामिल हो गये हैं जो कंधे पर काँवड़ नहीं लाते है बल्कि नशे की झोंक में कँवड़ यात्रा में शामिल होकर आदिकाल से चल रही इस काँवड़ जल यात्रा परम्परा को बदनाम एवं कंलकित कर रहे हैं। लगता है जैसे एक सोची समझी रणनीति के तहत काँवड़ यात्रा को बदनाम कर पवित्र परम्परा पर कालिख लगाने की साजिश की जा रही है। इधर कुछ कँवड़िये के भेष में असमाजिक तत्वों प्रवेश हो जाने के कारण इतनी बदनाम हो गयी है कि लोग इन कँवड़ियों से डरने एवं दहशत खाने लगे हैं। जरा जरा सी बात पर झगड़ा लड़ाई करके रोडजाम कर देना जैसे इनका स्वभाव बन गया है। अभी एक सप्ताह पहले देश की राजधानी में जिस तरह का नंगा नाच इन कँवड़ियों ने किया ऐसे व्यवहार की कल्पना शिवभक्तों से नहीं जा सकती है।यहीं कारण था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को स्वंय संज्ञान में लेना पड़ा है और इनकी गुंडागर्दी पर रोक लगाने के निर्देश देने पड़े क्योंकि हफ्ते भर के लिये जिस रास्ते से यह कँवड़ियें गुजरते वहां भय एवं दहशत व्याप्त हो जाती है। उत्पात तोड़फोड़ करने वाले लोगों की संख्या हजारों में नहीं है लेकिन कहावत है कि एक मछली पूरे तालाब के पानी को गंदा कर देती है।
– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी