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आपकी अभिव्यक्ति – चुनावी लाभ के लिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले बदलने के प्रयासों में जुटी सरकार पर विशेष – भोलानाथ मिश्र

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनैतिक दल हर पल अपनी-अपनी बिसाते बिछाने में जुटे हैं।विपक्षी दलों के साथ सत्तारूढ़ भाजपा भी सभी राजनैतिक दलों के मूलभूत माने जाने वाले मतदाताओं में सेंधमारी करने के जुगाड़ में जुटी है और तीन तलाक के बाद उसका सीधा निशाना दलित वर्ग के मतदाताओं पर है।इस समय भाजपा अगड़ों पिछड़ों की चिंता किये बगैर अनुसूचित जातियों को खुश करने में जुटी है और इसके लिये वह अदालती आदेश को भी धता बताने में भी संकोच नहीं कर रही है।आपको याद होगा कि अरसा एक साल पहले इसी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुये एससी एसटी कानून के कुछ प्राविधानों को न्याय एवं तर्क संगत बनाते हुये शिथिल कर दिया गया था और इसके विरोध में भारतबंद करके हिंसक प्रदर्शन किये गये थे।

कहते कि अदालत यानी कानून से बड़ा लोकतंत्र में कोई नहीं होता है और वह संवैधानिक दायरे में कार्य करती है।उसके लिये सत्ता या विपक्ष अधिकारी कर्मचारी या साधारण नागरिक में कोई अंतर नहीं होता है क्योंकि अदालत सत्ता विपक्ष अधिकारी कर्मचारी भिखारी नहीं देखती है बल्कि वह कानून देखकर गुणदोष के आधार पर फैसले सुनाती है।इधर हमारे देश की राजनीति इतनी स्वार्थवादी हो गयी है जिसमें अपने राजनैतिक भले के सामने देश का भला नहीं दिखाई पड़ रहा है। हमारा संविधान किसी जाति धर्म सम्प्रदाय को छोटा बड़ा गरीब अमीरों नहीं मानता है बल्कि सभी नागरिकों को समान अधिकार दे रखा है इसी किसी भी मामले में पक्ष विपक्ष को अपना अपना पक्ष प्रस्तुत करने एवं सफाई देने का मौका दिया जाता है।

एससी एसटी एक्ट हो चाहे कोई अन्य मामले में मात्र एकतरफा शिकायत के आधार पर बिना असलियत का पता लगाये किसी को गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा चलाना न्याय संगत नहीं होता है।एससी एसटी एक्ट हो चाहे दहेज एक्ट आदि हो यह सभी गंभीर श्रेणी के अपराध माने जाते हैं जिनमें जल्दी जमानत नहीं होती है।आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा नयी राजनैतिक इबारत लिखने का प्रयास कर रही है और वह अपने पुरानेे सवर्ण राजनैतिक स्वरूप को बदलकर उसे दलित जामा पहनाकर सबके साथ सबके विकास करने की अपनी परिकल्पना को साकार करने जुटी है। सरकार ने अपने को दलितों का सच्चा हितैषी साबित करने के लिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने के उद्देश्य से नया कानून बनाकर पुराने कानून को और सख्त बनाने का कानून बनाने जा रही है। एससी एसटी एक्ट के शिकार होने वाले सामान्य एवं पिछड़े वर्ग की जैसे किसी को परवाह ही नहीं रह गयी है और दोनों को बिना माँ बाप का मानकर एकतरफा कानून बनाया जा रहा है।

इतना ही नहीं सरकार का दलितमोह इतना प्रबल हो गया है कि उसने बारह साल पहले 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रमोशन में रिजर्वेशन समाप्त करने के निर्णय को भी पूर्वत लाने के लिये सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है जिस पर सुनवाई हो रही है। सरकार की तरफ से दायर याचिका में प्रमोशन में रिजर्वेशन की आवश्यकता पर बल लिया गया है। नागराज बनाम भारत सरकार मुकदमें में सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में रिजर्वेशन प्रथा पर रोक लगाई थी। सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई करते हुये अपने बारह साल पहले दिये गये फैसले पर पुनर्विचार कर रही है। लगता है कि सरकार अपने सबका साथ सबका विकास अभियान को मजबूती प्रदान करने के लिये एससी एसटी कानून और प्रमोशन मेंं रिजर्वेशन कानून को बहाल कराने का प्रयास कर रही है।

सरकार समाज के किसी वर्ग विशेष की नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व एवं संरक्षण करती है। समाज के सभी वर्गों को समान न्याय प्रदान कर उन्हें उत्पीड़न से बचाना सरकार का नैतिक दायित्व बनता है। 
– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी

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