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धर्म : जेष्ठ माह के चारों मंगलवारों के महत्व और हनुमान जी के गुणगान पर विशेष – – – -भोलानाथ मिश्र

साल का एक महीना ऐसा आता है जिसे महाबली अंजनी सुत संकटमोचन का महीना माना जाता है। इस महीने को जेष्ठ कहते हैं और अंग्रेजी में इसे मई कहते हैं।इस महीने के चारों मंगलवारों को पवनसुत जगतजननी और प्रभु श्रीराम के अनन्य प्रिय भक्त हनुमानजी का गुणानुवाद गुड़ धनिया चढ़ाकर किया जाता है।इस जेष्ठ महीने और उसके चारों मंगलवार इसलिए भी विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि इसी महीने के मंगलवार को ही भगवान शिव ने विष्णु अवतार भगवान श्रीराम के लिए बंदर का स्वरूप धारण करके हनुमान के रुप में जन्म लिया था। यहीं कारण है कि जेष्ठ के महीने को भगवान शिव के बारहवें रूद्र बजरंगबली का जन्मोत्सव मनाया जाता है।आज हम सबसे पहले अपने सभी पाठकों को हनुमान जन्मोत्सव की बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं और असुर निकन्दन अजर अमर रोग दोष संकटमोचन हनुमानजी से सभी साथियों के निष्कंटक सुखमय आन्नदित जीवन की कामना करते हैं। हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और जीवन में मोहमाया से ग्रसित नहीं हुये और हमेशा भगवान श्रीराम और माता सीता को भ्राता लक्ष्मण के साथ दिल में बिठाये रहते थे।पवनसुत की बाल लीला अपने आप में अद्वितीय मनमोहक है इसीलिए वह बचपन में ही भगवान श्रीराम को पसंद आ गये थे। महाबली की अद्भुत बाल लीला के चलते अपने गुरूजी का श्राप झेलना पड़ा और अपनी सारे ताकत ही भूल गये।इसीलिए महाबली को उनकी ताकत का अहसास कराना पड़ता है और जबतक कोई उन्हें उनकी शक्ति का गान नहीं करता है तबतक वह निष्क्रिय निष्प्रोज्य जैसे रहते हैं। मान्यता है कि हनुमान जी ने बाल्यकाल में ही सूर्य को निगल लिया था जिससे अंधेरा छा गया था और सूर्य को बाहर करने के लिये देवताओं को विनती करनी पड़ी थी।भगवान श्रीराम के साथ बाल्यकाल बिताने के बाद वह अपने मूल बंदर समाज में लौटकर वानरराज सुग्रीव के रक्षक बन गये थे और माता सीता की तलाश में भगवान श्रीराम और लक्ष्मण भटक रहे थे तब उन्हें सुग्रीव से मिलाकर मानव और वानर का अद्भभुत मिलन करा दिया था।महाबली रावण श्रीराम से ज्यादा हनुमान जी से घबड़ाता था क्योंकि वह उनकी ताकत से वाकिफ था और जबसे उन्होंने उसकी लंका को जला दिया था तबसे वह बहुत डरने लगा था। रावण प्रकांड विद्वान होने के बावजूद यह नहीं जानता था कि वह जिस भगवान शिव की पूजा करके घमंड करते हैं वही भगवान हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए हैं। कहते हैं कि हनुमान जी उपेक्षा करके भगवान श्रीराम से कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती है क्योंकि हनुमानजी को भक्तों का बादशाह माना जाता है और भगवान श्रीराम को पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति जरूरी मानी जाती है।संकट में फैसे भगवान श्रीराम को पाताललोक से वापस लाने के बाद ही उन्हें संकटमोचन की उपाधि भगवान श्रीराम ने दी थी।जेष्ठ का महीना ऐसा होता है जिसमें घर धनधान्य से भर जाता है और लोग मांगलिक कार्यों में मस्त रहते हैं। भगवान श्रीराम तो समय पूरा होने के बाद अपने लोक वापस लौट गये थे लेकिन हनुमानजी को वापस लौटने की अनुमति न देकर लोगों की रक्षा के लिए रहने का निर्देश दिया था।रामनगरी अयोध्या जी में स्थित हनुमानगढ़ी में समय समय पर होने वाले अद्भभुत चमत्कार आज भी उनके मौजूद होने के प्रमाण हैं।

– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी ।

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