शिक्षा विभाग की चल रही मनमानी, प्राइवेट स्कूलों में कापी किताबों के लेकर अभिभावको की जेबों पर पड़ रहा डाका, कोई नहीं है सुनने वाला ऐसे ही प्राइवेट स्कूलों की दुकान विजय पुस्तक भंडार विवेकानंद स्कूल के पिछे विश्व बैंक कर्र्ही में जहा उस क्षेत्र के सारे ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों का कांटेक्ट है उन स्कूलों की कापी किताबें सिर्फ विजय पुस्तक भंडार में ही मिलेंगी ।
विजय पुस्तक भंडार में मेरठ की किसी कम्पनी के द्वारा आई कापी किताबों स्टेशनरी का एक पैकेज है जो U K G से लेकर कक्षा आठ तक की किताबें कापी 3000/ से 5000/ तक की कीमत की है साथ ही एक ये भी नियम बना है की अगर अभिवावक 1;2 किताबें अपने बजट अनुसार लेना चाहे तो वो नहीं देते, पूरा पैकेज ही लेना पड़ेगा अगर अभिवावक अपनी बजट की मजबूरी दुकानदार से शेयर करता है तो दुकानदार उसकी ये कहकर बेइज्जत करता है कि अगर पैकेज लेने की क्षमता नहीं है तो क्यू पढ़ा रहे हो बच्चों को घर में बैठा लो, नहीं तो सरकारी स्कूलों में मिल रही फ्री सुविधा लेकर बच्चे को पढ़ाने की राय भी दे देता है ।
क्या मोदी और योगी राज में गरीब जनता के ऐसे अच्छे दिन होंगे ?
ये हाल सिर्फ यूपी का ही नहीं मुम्बई जैसे बड़े शहरों , ठाणे जैसे छोटे शहरों सहित लगभग सभी राज्यों के शहर , जिलों का भी हाल ऐसा ही है , गरीबों को तो जैसे अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना दूभर होता जा रहा है , सरकारें इस पर कुछ करने को जैसे तैयार ही नहीं है क्योंकि ये भी भष्ट्राचार करने का एक सरल माध्यम है। ये भी अप्रत्यक्ष रूप से मोटी कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। क्योंकि सरकारी स्कूलों का स्तर इतना बदत्तर है कि मध्यमवर्गीय परिवार इनमें अपने बच्चों को भेजने से कतराता है, यदि इन सरकारी स्कूलों की संख्या में वृद्धि कर दी जाये और इन्हे भी प्राईवेट स्कूलों के स्तर पर ला दिया जाये तो गरीब मध्यमवर्गीय परिवारों को प्राईवेट स्कूलों की मनमानी (जैसे- डोनेशन , कॉपी किताबों में लूट , मोटी फीस ) इत्यादि से निजात दिलायी जा सकती है। सरकारों का साक्षरता अभियान एक खोखला दिखावा है , ये स्वतः नहीं चाहते की गरीबों के बच्चों को उच्चकोटि की शिक्षा मिल सके। सरकारी स्कूल में जो शिक्षक हैं भी वो बैठ कर मोटी सेलरी का लाभ लेते हैं शिक्षा के नाम पर शिक्षक अपने विद्यार्थी की पढ़ाई से ज्यादा सरकारी योजनाओं में व्यस्त रहते हैं। क्या सरकारें ये बतायेगीं की इनकी सेलरी कहाँ से आती है।
क्या वो गरीबों की खून पसीने से कमायें गये रुपयों से जो नमक , आटा , दाल , चावल , माचिस जैसे दैनिक उपयोगी सामान की खरीदी करती है और उसके माध्यम से जो टैक्स वसूला जाता है ये उससे अर्जित की गई निधि से ही दिया जाता है , उसके बवजूद सरकारें गरीब जनता को ऐसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखती है।