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संपादक की कलम से : बीजेपी ने सत्ता सुख के खातिर, कहीं लोगों की भावना से खिलवाड़ तो नहीं किया ? —– रवि जी. निगम

क्या जनता अपने आपको ठगा सा महसूस नहीं करती, कि जिस आधार कार्ड को हर जरूरी दस्तावेजों से लिंक कराने में मोदी सरकार आमादा है, यही नहीं ऐसे दस्तावेजों के साथ भी आधार को लिंक करना अनिवार्य कर दिया गया है, जो जटिल प्रक्रिया से होकर निर्मित किये जाते थे। अब वही आधार कार्ड बीजेपी को काफी लुभा रहा है, एक समय वो था जब यही बीजेपी विपक्ष में बैठकर सत्ता सुख की कुजीं पाने के लिये मनमोहन सरकार को घेरा करती थी और इसका पुरजोर विरोध करती थी, लेकिन सत्ता की कुजीं पाते ही विरोध खत्म और पुरजोर वकालत करने लगी।

यदि आघर लोगों के लिये जब इतना ही हित कर था, तो फिर बीजेपी इसका विरोध क्यों करती थी, यदि कुछ खामी थी तो उसका विरोध कर इसे लागू कराने में तत्कालीन सरकार का समर्थन कर देशहित में कार्य करना चाहिये था, ताकि जो लाभ जनता को आज प्राप्र होने की बात कही जा रही है, वही लाभ जनता को क्या पांच / छ: वर्ष पूर्व सुनिश्चित नहीं कराया जा सकता था। क्या ये बीजेपी द्वारा जनता की भावनाओं के साथ विश्वास घात या खिलवाड़ जैसा नही किया गया।

यदि आधार कार्ड को मा. मंत्री महोदय पारदर्शिता का हथियार मानते हैं और विपक्षियों के विरोध के बावजूद उसे अपने मनमाने तरीके लागू किया जा रहा तो इसे वोटर कार्ड / लिस्ट से जोड़ने के लिये सरकार सख्त कदम क्यों नहीं उठाना चाहती है, विपक्ष के नाम को जोड़कर क्यों बचना चाहती है। क्या चुनावों को पारदर्शिता की दरकार नही ? चुनाव के समय विरोधियों द्वारा लगाये जाने वाले आरोप को इसकी जरूरत नहीं ? या सरकारें सत्ता सुख से वंचित होने के डर के कारण इसे लिंक नही करना चाहती हैं ? क्या ये जनता के अधिकारों का हनन नही ?

क्या जनता को अपने हाथों की कठपुतली बनाकर रखना चाहती हैं सरकार ? क्या सिर्फ जनता को ही कानून के दायरे में रखना चाहती हैं सरकार ? क्या खुद को कानून के दायरे से मुक्त रखना चाहती हैं सारकार ? यदि ऐसा कुछ नही है तो जल्द से जल्द वोटर कार्ड / लिस्ट को भी आधार कार्ड से लिंक कराया जाये। तब सही मायने में स्पष्ट हो सकेगा कि सरकार पारदर्शिता की पक्षधर है।

( कितना उचित मंत्री रविशंकर प्रसाद का तंज ? – आधार से मत जोड़ें वोटर कार्ड, वरना…

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि वह आधार कार्ड और वोटर कार्ड को जोड़ने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं यह बात एक आईटी मिनिस्टर के तौर पर नहीं कर रहा हूं… यह मेरा व्यक्तिगत विचार है। मुझे लगता है कि आधार कार्ड को वोटर कार्ड से लिंक नहीं किया जाना चाहिए, दोनों कार्ड्स का अपना अलग मतलब है।’ प्रसाद ने कहा कि वह नहीं चाहते कि लोग केंद्र सरकार पर जासूसी करने का आरोप लगाएं। उन्होंने कहा, ‘अगर हम आधार और वोटर कार्ड को जोड़ने की बात करेंगे तो हमारे विरोधी कहेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों के ऊपर जासूसी कर रहे हैं। वह यह जानना चाह रहे हैं कि लोग क्या खाते हैं और कौन सी फिल्म देखते हैं… और भी ऐसी बहुत सी बातें कही जाएंगी। मैं नहीं चाहता कि ऐसा कुछ हो।’ उन्होंने कहा कि वोटर कार्ड चुनाव आयोग के वेब पोर्टल से लिंक है, ऐसे में आपको पोलिंग बूथ और चुनाव से जुड़ी हुई जानकारियां मिलती हैं। आधार का इससे कोई मतलब नहीं है।

हालांकि रविशंकर ने बैंक अकाउंट से आधार को जोड़ने का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि ऐसा करने से पारदर्शिता आएगी। प्रसाद का कहना है कि बैंक अकाउंट से आधार को जोड़ने पर यह पता चलेगा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लोगों को मिल भी रहा है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘पीएम मोदी के आधार और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के आधार में बहुत बड़ा अंतर है। मनमोहन सिंह के आधार को कानून का समर्थन नहीं था जबकि मोदी का आधार कानून द्वारा समर्थित है। इसके अलावा यह पूरी तरह से सुरक्षित भी है।’

केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी कि करीब 80 करोड़ मोबाइल फोन को बैंक अकाउंट से लिंक किया जा चुका है। इसके साथ ही करीब 31 करोड़ जन धन अकाउंट खोले जा चुके हैं और 12 करोड़ मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराया जा चुका है। इस मामले पर उन्होंने आगे कहा, ‘एक बार पीएम राजीव गांधी ने कहा था कि लोगों के कल्याण के लिए अगर सरकार एक रुपए जारी करती है तो जनता तक केवल 15 पैसे ही पहुंचते हैं और अब सरकार अगर जनता को 1000 रुपए देना चाहती है तो वह सीधे उनके अकाउंट में पहुंचेंगे।’)

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