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संपादक की कलम से – सड़कों में गढ्ढे या गढ्ढों में सड़क ! उस पर भारी भरकम जुर्माना !! तौबा रे तौबा !!! —- रवि जी. निगम

देश में इन दिनों जनता की परेशानी का शबब बन चुकी नया मोटर वाहन कानून 139 ने आम जनमानस के मस्तिक पर एक गंभीर रेखा उकेर दी है, जिसे लेकर आज चर्चा का बजार गरम है, जिससे लोग काफी नाराज़ नजर आ रहे हैं, यहाँ तक भाजपा के समर्थक भी इसकी कड़ी आलोचना करने से चूक नहीं रहे हैं, जिनकी तल्ख टिप्पणी सोशल मीडिया पर प्रदर्शित हो रही हैं।

अब उन्होने ने भी सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुये, सड़कों के गढ्ढों की हालत बयां करना शुरू कर दिया है उनका कहना है कि सरकार भारी भरकम जुर्मानें से पहले बेहतर सड़कों का प्रावधान करें उसे पश्चात नये मोटर वाहन कानून 139 का प्रावधान करे।

वहीं नया मोटर वाहन कानून इन दिनों केंद्र और राज्यों के बीच भी विवाद का विषय बना हुआ है। इस नए कानून में लाइसेंस प्रणाली में सुधार, दुर्घटना में घायलों की मदद करने वालों को सुरक्षा और विशेषकर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी भरकम जुर्माने आदि कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। सबसे ज्यादा विवाद भारी भरकम जुर्माने को लेकर उठा है। इससे असहमत होकर कुछ राज्यों में इस कानून को अपने यहां लागू करने से मना कर दिया है। इसमें मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब और राजस्थान शामिल हैं। इनके अतिरिक्त कुछ भाजपा शासित राज्य भी हैं जो इस कानून पर अपनी असहमति व्यक्त कर चुके हैं।

इस मोटर वाहन कानून में कुल तिरानवे प्रावधान हैं, जिनमें तिरसठ केंद्र सरकार की अधिसूचना द्वारा ही राज्यों पर लागू हो जाते हैं। बाकी के प्रावधान तभी लागू हो सकेंगे जब राज्य सरकारें उसके लिए अधिसूचना जारी करेंगी, जो विवादित विषय कठोर जुर्माने का है। राज्य सरकारों ने इसे लागू नहीं करने के लिए अपने तर्क दिए हैं। इसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रमुख है। यह भी सार्वभौमिक सत्य है कि जुर्माना राशि बढ़ने से जरूरी नहीं है कि सभी इसको स्वीकार करने लगें। यदि जुर्माने की राशि बढ़ाई जाती है तो सड़कों की गुणवत्ता भी अच्छी होनी चाहिए। हाईवे पर स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता उच्च होनी चाहिए। इसके साथ सभी राज्य एक जैसे नहीं हैं। कुछ राज्य अभी भी काफी पिछड़े हैं। ऐसे में भारी-भरकम जुर्माना सभी राज्यों में तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि जुर्माना वसूलना नियमित आय का साधन नहीं है। यदि इस विषय पर राज्य और केंद्रों के बीच मतभेद हैं तो केंद्र सरकार को पहल करनी चाहिए और बातचीत के माध्यम से राज्य सरकार की चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए।

इसी प्रकार ऑटो चालकों में भी आक्रोश साफ-साफ देखा जा सकता है, उनका मानना है कि आज के आर्थिक मंदी के दौर में ऑटो चला कर अपना व अपने बच्चों का जीवन यापन करना ही भारी पड़ रहा है, उस पर इतना भारी भरकम जुर्माना वो कहाँ से भरेगें, जितना वो महिने भर में कमा नहीं पाते उससे कहीं ज्यादा जुर्मानें की राशि होती है। तो क्या इसे जनविरोधी कानून माना नहीं जाना चहिये।

भारत में केंद्र और राज्य सरकारें सड़कों के निर्माण पर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा खर्च करती हैं, जिसे विकास का पर्याय माना जाता है, लेकिन फिर भी सड़कें ऐसी बनती हैं जिनमें कुछ अन्तराल पश्चात ही गड्ढों का जाल बिछ जाता है, जिसे देख ये अनुमान लगाना भारी होता है कि सड़कों में गढ्ढे हैं या गढ्ढों में सड़क ! सड़कों पर इन गड्ढों की वजह से हर साल हजारों हादसे होते हैं, जिनकी वजह से हजारों मौतें भी होती हैं ।

सौ. फाईल चित्र NBT

एक अनुमान के मुताबिक देश भर में इसकी अधिकता तादाद से ज्यादा है अकेले मुंबई में ही सड़कों पर हजारों गड्ढे देखे जा सकते हैं, मानसून में ये गड्ढे रौद्र रूप धारण कर लोगों के मौत का शबब बन जाते हैं, देश भर में गड्ढों के चलते औसतन प्रतिदिन लगभग 10 जानें चली जाती हैं, महाराष्ट्र में गड्ढों के चलते होने वाली मौतों का आंकड़ा भी काफी है, सड़क दुर्घटनाओं में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात की स्थिति भी ऐसी ही है, यही नहीं देश भर में कमोबेस ऐसे ही हाल हैं।

महाराष्ट्र के मुम्बई में 2016 में  सड़क घोटाले का मामला सामने आया था जिसमे मुंबई के दो इंजीनियरों ने सुधर चुकी सड़कों की जांच किए बगैर ही ठेकेदारों के बिल मंजूर कर दिए थे. इस कथित घोटाले में 354 करोड़ रुपये की लागत से दक्षिण मुंबई, पश्चिमी और पूर्वी उपनगरों में 34 सड़कों की मरम्मत के कार्य में लगे ठेकेदारों का घटिया काम प्रकाश में आया था।

इसी प्रकार दोपहिया चालकों की भी ऐसे कानून से कमर तोड़ी जा रही है, जो आर्थिक मंदी के तो शिकार पहले से ही हैं, उस पर नये कानून का हथौड़ा भारी पड़ता दिख रहा है, सरकार की आखिर मंशा क्या है ऐसे कानून बनाकर राजस्व इक्कठा करना जिससे सरकार को आर्थिक मदद मिल सके या फिर इस कानून के माध्यम से चालकों के द्वारा ट्रॉफिक नियम के उल्लघंन पर अंकुश लगाना मात्र है तो क्या इससे पूरी तरह से अंकुश लगाया जा सकता है ? क्या इसकी जगह जुर्माना न बढ़ा कर कोई दूसरी सजा का प्रावधान नहीं किया जा सकता था ? क्या इससे भ्रष्टाचार को और बढ़ावा नहीं मिलेगा, जिसकी पहली बानगी दिखाई पड़ चुकी है। वैसे जुर्माना वसूलने लायक पहले देश भर में वैसी सड़को को बनाना चहिये की नहीं ?

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