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संपादक की कलम से : 104 सीट और अतंरआत्मा के बल पर बनेगी सरकार ? —- रवि जी. निगम

कर्नाटक में “कर-नाटक” अंतरआत्मा के बल पर अब बनने लगेगीं सरकारें ? या  “जिसकी लाठी-उसकी भैस” की परम्परा स्थापित होगी ? लोकतंत्र के नाम पर ऐसे ही जुगाड़ से यदि जब बनने लगेगीं सरकार तो जनमत परिक्षण का क्या मतलब होगा ? कर्नाटक को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य । 

कर्नाटक में विगत कुछ दिनों से जो भी कुछ चल रहा है वो वाकई में लोकतंत्र को बरकरार रखने में कारगर नहीं लग रहे । क्या राजनेताओं के प्रति जनता में उनकी छवि किस प्रकार की बनती जा रही है, क्या राजनेताओं को इसपे गौर नहीं करना चाहिये ?

अटल जी की बीजेपी “पार्टी विथ डिफरेन्स”  के साथ जनता के सामने अपनी छवि लेकर जो आई थी , तो क्या मोदी की बीजेपी उस छवि को बरकरार रख पायेगी ? लेकिन विगत वर्षों में जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई है ? उन्हे देखते हुये ऐसा अब उम्मीद कर पाना अब संभव सा नहीं लग रहा है । अटल जी की नज़ीर पेश कर बचायेगें येदुरप्पा बीजेपी की लाज़ ? तो क्या बीजेेपी ने येदुरप्पा को ताज पहनाकर बनाया बलि का बकरा ? जब बहुमत नहीं था तो क्यों गये थे राज्यपाल के पास दावा पेश करने ?

क्या अतंरआत्मा की आवाज साथ देगी ?

क्या सत्ता ही सब कुछ ?

आज की परिस्थितियों को गौर करने योग्य है कि जो घटनाक्रम कुछ दिनों में देखने को मिली , वो देश के भविष्य के लिये शुभ संकेत नही है । क्या जनता इस पर गौर नहीं कर रही है क्या ? लेकिन सत्ता ही अंतिम स्थान ? नैतिकता का सबक / पाठ पढ़ाने वाली पार्टी , क्या सत्ता की लोलुप्ता में इतना विलीन हो गयी है कि उसे उसके सिवाय कुछ भी मंजूर नहीं ।

आज जो बीजेपी नज़ीर पेश कर रही क्या इससे वो अपनी छवि अपने ही हाथों धूमिल नहीं कर रही ? वो बारबार कांग्रेस की पिछली सरकारों लेकर अपना बचाव करती नज़र आती है, तो क्या उससे उसकी बिगड़ती छवि साफ हो जाती है ?

क्या बीजेपी को सत्ता बस सत्ता के आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, बस “एन केन प्रकारेण” सिर्फ सत्ता बस सत्ता की चाह में उसे ये तक ज्ञात नही रह गया कि काँग्रेस की जो आज परिस्थिति है वो सब उसी इसी नीति का ही कारण है । जिसकी दुहाई यही बीजेपी दिया करती थी जो आज काँग्रेस को करनी पड़ रही है ।

लेकिन वही सब कुछ बीजेपी में परिलक्षित होते देखा जा सकता है ।

कहीं इन्दिरा गाँधी को तो नही दोहराया जा रहा है मोदी रुप में, ये उसी दिशा में बढ़ते कदम है ? क्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे ही दोहराया जा रहा है ?

लेकिन इन्दिरा गाँधी जिन्हे नेता प्रतिपक्ष के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने दुर्गा की संज्ञा दी थी । क्या आज ऐसा कुछ मोदी जी द्वारा किया गया हो जिसे नेता प्रतिपक्ष उसे ऐसे ही किसी संज्ञा से संबोधित करती ।

क्या सत्ता सिर्फ सत्ता का कारण ये तो नहीं की कॉंग्रेस ने अपनी केन्द्र सरकार के रहते 18 राज्यों में ही सरकार बनायी थी , हम उससे ज्यादा सरकार बना कर दिखायेगें । क्योंकि इस वक्त बीजेपी लगभग 20 राज्यों में सरकारें हैं , जिसमें कुछ राज्यों में समर्थन देकर सरकारें बनी हैं ।

लेकिन बीजेपी ऐसा करने पर क्यों गंभीर ? सायद उसे इस बात का डर सता रहा होगा की 2018 में लगभग 7 राज्यों में चुनाव होने बाकी हैं यदि उनमें कुछ राज्य उसके हाथ से निकल गये तो राज्य सभा में बहुमत उसे नही मिल पायेगा और संख्या बल कम हो गये तो वो अपने चुनिन्दा बिलों को पास नही करा पायेगी ?

वहीं बीजेपी को 2019 के चुनाव में ये साबित करना कि मैने कॉंग्रेस मुक्त भारत बनाने में पाँच साल लगा दिये , अब पाँच साल का मौका मुझे फिर दे तो हम गरीबी नहीं गरीब मुक्त भारत अवश्य बना देगें ।

लेकिन बीजेपी व उनके समर्थक जो आकड़ा प्रस्तुत कर रहे हैं कि कॉग्रेस ने अपने कार्यकाल में सिर्फ 18 राज्यों में ही सरकरें बना पायी थी, बीजेपी ने मोदी जी के नीति के  सहारे 21 राज्यों में सरकार बनायी है । जबकि आकड़ा इसके उलट ये है कि उत्तर प्रदेश – उतराखण्ड , विहार – झारखण्ड, मध्य प्रदेश – छत्तिसगढ़ पहले ये राज्य एक ही थे अब दो हो चुके हैं , और यदि उसके अनुसार आकलन करें तो अभी 17 ही राज्यों में सरकार मानी जायेगीं ।

कर्नाटक में जो नाटक चल रहा है यदि वो यहाँ भी “एन केन-प्रकारेण” की नीति के सहारे यदि बहुमत साबित कर ले जाती है तो वो कॉग्रेस की बराबरी कर लेगी । लेकिन इसके लिये आज सायं 4 बजे के बाद पता चल सकेगा ।

लेकिन उसके बाद जो प्रश्न चिन्ह उस पर व उन विधायकों पर लगेगें जिनके सहारे बीजेपी अपना बहुमत साबित करने में सफल होगी , उसका भी आकलन भी बहुत मायने रखेगा।

क्या कॉग्रेस की ही तरह अब ये भी उसी मोड की तरफ बढ़ती दिख रही है ? क्या इसके भी पतन के आसार दिख रहे हैं ?

 

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