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आपकी अभिव्यक्ति – हर घर में पेयजल पहुंचाना सरकार के बस की बात नहीं । — प्रदीप मांढरे

सौ. चित्र.

चुनाव में प्रत्याशी और राजनैतिक दल सिर्फ वायदे करते हैं और चुनाव बाद सरकारें सिर्फ कागजों पर योजनाएं चलाती हैं, तभी तो देश की बड़ी आबादी पेयजल संकट से जूझ रही है। २०१६ में मोदी सरकार ने कहना शुरू कर दिया था कि हम अगले कुछ वर्षों में हर घर में पीने का पानी नल के रूप में देना शुरू कर देंगे।

आज की स्थिति की बात करेें –

ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र के आरा मिल मौहल्ले के लोगों ने १५ दिन से पानी नहीं मिलने पर रविवार को तानसेन नगर पर प्रदर्शन कर दिया। इस क्षेत्र के विधायक राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रधुम्र सिंह तोमर हैं। उन्होंने विपक्ष में रहते अपने क्षेत्र में पानी नहीं आने पर और गंदे पानी की आपूर्ति के विरोध में सड़कों पर आंदोलन किया था।मगर आज सरकार में रहते हुए भी वह जल समस्या का समाधान नहीं करा पा रहे हैं ।

शहर से बाहर का रूख करते हैं-

फिल्म अभिनेत्री और दो बार से भाजपा सांसद हेमा मालिनी के संसदीय क्षेत्र मथुरा के अनेक गांव पेयजल संकट से जूझ रहे हैं । अलीगढ़ में भी महिलाओं को कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ रहा है। उत्तरी गुजरात में भारत पाक सीमा पर मारवरी गांव के लोग २५ किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाने के लिए मजबूर हैं।

हरियाणा के नूंह जिले के मारस गांव में ,जहां १२०० घर हैं, आजादी के ७२ साल बाद भी साफ पानी का इंतजाम नहीं हो सका है। इसी राज्य के नगीना ब्लॉक के गण्डरी गांव में सुबह होते ही महिलाएं सिर पर मटके रखकर ३ किलोमीटर दूर मीठा पानी लेने निकल जाती हैं।

महाराष्ट्र के पालधर जिले के जव्हार तहसील के पावरवाड़ गांव में भी गहरा जल संकट है। बाहर से टैंकर मंगाने पड़ते हैं। नासिक जिले के त्रियम्बेकश्वर में भी पीने का पानी की कमी होती जा रही है।

ये तो जलसंकट के कुछ नमूने हैं, जो मीडिया में सुर्खी बने हैं। हाल के दिनों में समाचार पत्रों मेें छपे राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश के कुछ जलसंकट प्रभावित क्षेत्रों के जीवंत फोटो ने कथित रूप से तेजी से प्रगति कर रहे देश की शासन व्यवस्था पर तमाचा मारा है – कीचड़ भरी छोटी सी पोखर में से जैसे-तैसे पानी निकाल कर उसे छान कर ग्रामीण महिलाएं अपनी पेयजल जरूरतें पूरी कर रही हैं। एक अन्य चित्र में गहरे कुए में बचे थोड़े- बहुत पानी को भरने के लिए महिलाएं-बच्चे जद्दोजहद कर रहे हैं। क्योंकि रस्सी,बाल्टी से पानी निकल नहीं सकता। खतरनाक सीढिय़ों से चड़-उतर कर बच्चे पानी भर रहे हैं।

अब विदेश की ओर रूख करते हैं-

रेगिस्तानी देश सऊदी अरब में सब कुछ है,सम्पन्नता है। बस, पानी नहीं है। वहां धरती के नीचे भी पानी नहीं है। पुराने कुए सूख चुके हेंै । वर्षा वर्ष भर में मात्र २-३ दिन होती है । तेल के कुओं से लबालब भरे इस देश को समुद्र के बेहद खारे पानी को डिसालिनेशन (विलवणीकरण) करके अपनी पानी जरूरत पूरी करनी पड़ती है। इस प्रक्रिया से समुद्री पानी से नमक निकाल दिया जाता है।

हालांकि यह बहुत खर्चीली प्रक्रिया है। विश्व के १५० देश , जिनमें ज्यादातर खाड़ी के देश हैं, इजरायल है, ऐसा करने पर मजबूर हैं। सऊदी अरब हर रोज ३०.३६ लाख क्यूबिक मीटर समु्रदी जल से नमक निकालता है। इस जलशोधन प्रक्रिया में हर रोज ८०.६ लाख रियाल सऊदी मुद्रा खर्च होती है।

भारत में वर्षा लगातार कम होती जा रही है । मानसून चक्र भी बिगड़ रहा है। इस बार ८ दिन की देरी से मानसून वर्षा केरल के तट पर पहुंची है। हमारी खेती व्यवस्था और हमारी पानी व्यवस्था एक तरह से मानूसन पर निर्भर है।

तो क्या प्यासे भारत को भी खाड़ी देशों की तरह समुद्र से पानी को डिसालिनेशन करके काम में लाना होगा?

अभी भले ही इसका उत्तर एकदम हां में नहीं मिले, लेकिन आगे जाकर यह उपाय भी करना ही पड़ेगा।

कुछ वर्षों से चैन्नई में पेयजल संकट के कारण कुछ लोग केरल रहने चले गए हैं। प्रशासन ने मेट्रो ट्रेन के ऐसी बंद कर दिए हंै,ताकि तापमान न बढ़े। अब यहां चर्चा होने लगी है कि समुद्री पानी को काम में लाया जाए।

४०० साल पहले कवि रहीम ने अपने दोहे में पानी की जो महत्ता प्रतिपादित की थी, वह आज अक्षरश सच साबित हो रही है। उन्होंने लिखा था -‘ रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।

अब सरकार क्या कर सकती है?

केन्द्र व राज्यों की सरकारों को तुरंत सभी घरों, भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को कानूनन: अनिवार्य कर देना चाहिए। इससे वर्षा का पानी जमीन के नीचे संरक्षित रहेगा। भूमिगत जल स्तर को बढाने में सहायक होगा। नदियों को जोडऩे की सरकारी प्रक्रिया में तेजी लानी होगी । नदियों में मिलने वाले गंदे नाले व अन्य बाहरी सामग्री को रोकना होगा । पुराने कुओं, बावडिय़ों, तालाब को ‘रिचार्च करने के वैज्ञानिक उपाय अपनाने होंगे। होटलों, कोठियों के स्वीमिंग पूल पर प्रतिबंध लगाने होंगे। मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब, डेम बनाने पर जोर देना होगा। सोर उर्जा निर्माण पर जोर देना होगा, ताकि बिजली बनाने के लिए पानी की निर्भरता को कम किया जा सके। ट्यूबवैल व्यवस्था में ऐसी तकनीक ईजाद होनी करनी होगी, जो खारे पानी को मीठे पानी में बदल सके। यदि ऐसा हो गया तो ग्रामीण महिलाओं को मीठे पानी की तलाश के लिए कई किलोमीटर दूर नहीं जाना पड़ेगा।

हमारे यहां वृक्षारोपण-पौधारोपण तो बड़े पैमाने पर होता है, लेकिन उनकी देखभाल की परम्परा नहीं है। इसलिए कुछ ही दिनों में पोैधे-सूख जाते हैं, पशुओं का चारा बन जाते हैं। इस समस्या पर शासन की ओर से ध्यान देने की जरूरत है।

जल है तो हम हैं, जल है तो भारत है।

अफसोस की बात है कि देश में अधिकतर स्थानों पर मानसून पहुंचते ही सरकार जल-संकट को खत्म मान लेती है।

याद रखिए, पानी तेजी से खत्म हो रहा है और सरकारें तनिक भी गंभीर नहीं हैं।

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