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आपकी अभिव्यक्ति : मुख्यमंत्री आवास में हुयी तोड़फोड़ पर मचे राजनैतिक घमासान और महामहिम की भूमिका पर विशेष- भोलानाथ मिश्र

लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है इसीलिए जनप्रतिनिधियों को विशेष अधिकार दिये गये हैं। शायद इसीलिए सरकार जनप्रतिनिधियों को उनके रहने खाने सुरक्षा यात्रा फोन आदि पर करोड़ों रुपये खर्च करती है।जनप्रतिनिधि चाहे विधानसभा लोकसभा का हो चाहे विधान परिषद या राज्यसभा का सदस्य हो या फिर मंत्रिमंडल का अंग हो सभी जनप्रतिनिधि होने के नाते सरकार के विशेष मेहमान के रूप में होते हैं और सरकार उनकी मेहमान नवाजी करती है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि के लियेे विशेष सुविधा होती है और अबतक उन्हें आजीवन रहने के लिए विशालकाय बंगला ही नहीं बल्कि उन्हें सभी प्रकार की सुखसुविधायें प्रदान की जाती थी।इधर मुख्यमंत्री की इच्छा के अनुरूप उनके आवासों का निर्माण होने लगा था और इसकी शुरुआत बसपा सुप्रीमो मायावती जी ने अपने कार्यकाल में किया था क्योंकि उस समय कोई पूर्व मुख्यमंत्री का आवास खाली नहीं था। इसी तरह सपा मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अपने कार्यकाल में अपने लिये आवास का निर्माण करोड़ों रुपये सरकारी खजाने का खर्च करके बनवाया था और कानून में संशोधन करके पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिये आजीवन आवास सुविधा का अधिकार दे दिया गया था। इस अधिकार को गत माह सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले के माध्यम से समाप्त करके सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवासों को खाली कराने के आदेश दिये गये हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद राज्य सम्पत्ति विभाग द्वारा नोटिस भेजकर एक पखवाड़े के अंदर आवास खाली करने के लिए कहा गया था। पहले तो आवास खाली करने के नाम पर टाल मटोल राजनिति की गयी किन्तु बाद में अधिकांश पूर्व मुख्यमंत्रियों ने अपने आवास खाली कर दिये है।पूर्व स्वतंत्रता सेनानी पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर सभी के आवास खाली हो गये हैं और सभी अपना अपना सामान आदि लेकर अलग शिफ्ट हो गये हैं। अन्य मुख्यमंत्रियों की तो नहीं लेकिन अखिलेश यादव के सरकारी आवास छोड़ने के बाद राजनैतिक हंगामा खड़ा हो गया है और इसमें भी आगामी लोकसभा चुनाव दिखाई पड़ने लगा है। अखिलेश यादव पर सरकारी आवास में तोड़फोड़ आदि करने का आरोप सरकार की तरफ से लगाया गया है और मामला इतना तूल पकड़ने लगा की महामहिम को इसकी जाँच कराने के निर्देश सरकार को देना पड़ा। महामहिम राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद मामला पूरी तरह से राजनैतिक स्वरूप धारण करने लगा है और राज्यपाल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आत्मा बसने का आरोप लगाया जाने लगा है।महामहिम के हस्तक्षेप से आहत होकर अभी परसों सपा मुखिया अखिलेश यादव पहली बाद लोकतांत्रिक मर्यादाओं को लांघ गये।उनका कहना है कि यह सब कुछ चुनाव में हुयी करारी हार से बौखलकर उन्हें बदनाम करने के लिए एक साजिश के तहत किया जा रहा है तो भाजपा उनसे पूंछ रही है कि आखिर दीवार में कौन सी ऐसी वस्तु छिपाई गयी थी जिसे निकालने के लिए दीवार को तोड़ना पड़ा।सरकार ने अखिलेश यादव पर उल्टा चोर कोतवाल को डांटने जैसा बताते हुए उन पर चोर की दाढ़ी में तिनका होने का आरोप लगा रही है तो अखिलेश इसे सरकार की घबराहट बताकर हमलावर हो रहे हैं। सरकारी सम्पत्ति देश प्रदेशवासियों की सम्पत्ति होती है और किसी के बाप की बपौती नहीं होती है। सरकार मुख्यमंत्रियों को आवास उनकी सुविधा के लिए देती उसे तोड़ने फोड़ने के लिये नहीं देती है।आवास छोड़ने की दशा में उसकी सूरत सीरत से छेड़छाड़ करना उचित नहीं है।अखिलेश यादव जैसे स्वच्छ छबि वाले राजनैतिक नेता से इस तरह की ओछी हरकत करने की स्वप्न में भी उम्मीद नहीं की जा सकती है।अगर उन्होंने ऐसा किया तो वह निश्चित तौर पर निंदनीय एवं भड़ास निकालने जैसा है उनका यह तर्क कि आवास में तमाम सामान उन्होंने अपनी जेब से लगवाया था उचित प्रतीत नहीं होता है। हालांकि अखिलेश यादव ने तोड़फोड़ करने के आरोपों का खंडन करते हुए एक फिर इसे सरकार पर चुनावी हार का बदला लेने का आरोप लगाया है।अगर सरकार अखिलेश यादव को बदनाम करने के लिए तोड़फोड़ करने का आरोप लगा रही है तो इसे भी उचित नहीं कहा जा सकता है।राजनीति में वसूलों सिद्धान्तों एवं छबि का बड़ा महत्व होता है और इन्हें बदनाम करना राजनैतिक मूल्यों के खिलाफ है। 

– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी

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