Home देश/विदेश न्यूयार्क टाइम्ज़ की रिपोर्ट – बाइडन जानते हैं कि ईरान से प्रतिबंध हटाना चाहिए लेकिन वो ये काम क्यों नहीं कर रहे हैं ? विचारणीय सवाल…

न्यूयार्क टाइम्ज़ की रिपोर्ट – बाइडन जानते हैं कि ईरान से प्रतिबंध हटाना चाहिए लेकिन वो ये काम क्यों नहीं कर रहे हैं ? विचारणीय सवाल…

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न्यूयार्क टाइम्ज़ की रिपोर्ट – बाइडन जानते हैं कि ईरान से प्रतिबंध हटाना चाहिए लेकिन वो ये काम क्यों नहीं कर रहे हैं ? विचारणीय सवाल…
जो बाइडेन

अमरीका के समाचार पत्र न्यूयार्क टाइम्ज़ ने ईरान से प्रतिबंध पर बाइडन की समस्याओं पर रोचक लेख।

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जो बाइडन ने पिछले साल (ईरान से प्रतिबंध पर सवाल) वचन दिया कि अमरीका की हमेशा चलने वाली लड़ाई को खत्म कर देंगें, उनकी बात सही भी थी लेकिन युद्ध से उनका आशय बहुत सीमित था।

दशकों तक अमरीका ने मिसाइली हमलों और स्पेशल आप्रेशन जैसे काम अपने दुश्मनों के खिलाफ किये हैं दूसरी शैली में वाशिंग्टन ने अपने कमज़ोर दुश्मनों का आर्थिक बहिष्कार भी किया है अमरीका वास्तव में इस तरह से दूसरे पक्ष को घुटने टेकने पर मजबूर करना चाहता है।

कुवैत पर सद्दाम हुसैन के हमले के बाद अमरीका ने शीत युद्ध के बाद पहला आर्थिक बहिष्कार किया। उसके 13 साल बाद वह इराक़ को जो युद्ध से पहले अपनी ज़रूरत की 70 प्रतिशत दवाओं और खाद्य सामाग्री का आयात करता था, किसी भी चीज़ के आयात के लिए संयुक्त राष्ट्र की अनुमति की ज़रूरत पड़ने लगी। अमरीका ने इस बहाने से कि पानी के टैंकर से लेकर दांतों के डाक्टरों के लिए ज़रूरी सामानों और दवाएं तक सैन्य उद्दश्यों के लिए प्रयोग हो सकती हैं, सरां पर अपने प्रभाव को इस्तेमाल करके यह नियम बनाया था। इस तरह से उसने पूरे इराक़ी राष्ट्र को तबाह करने का इंतेज़ाम कर दिया था।

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ईरान से प्रतिबंध पर

सन 2003 में इराक़ पर अमरीकी हमले के साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस देश का आर्थिक बहिष्कार खत्म कर दिया। अमरीका दावा तो यही करता है कि उसकी तरफ से आर्थिक प्रतिबंध सीमित होता है और कुछ ही लोगों पर उसका प्रभाव पड़ता है कहीं कहीं उसकी यह बात सही भी है लेकिन ईरान, वेनेज़ोएला, उत्तरी कोरिया, क्यूबा और सीरिया जैसे अमरीका के चुने हुए दुश्मनों के बारे में यह दावा सच नहीं और इन देशों  में अमरीकी प्रतिबंधों की वजह से जनता की वही दशा है जो इराक़ में हुई थी।

सन 2018 में लास एंजलिस टाइम्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सीरिया का एक बड़ा सरकारी अस्पताल, एमआरआई और आईसीयू और सीटी स्कैन मशीनों के लिए ज़रूरी कल पुर्ज़े खरीदने की बहुत कोशिश कर रहा है लेकिन कोई भी कंपनी उसे यह चीज़ें बेचने पर तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं गलती से अमरीकी प्रतिबंधों का उल्लंघन न हो जाए।

कोरोना के काल में सीनेटर क्रिस मर्फी ने चेतावनी दी थी कि अमरीकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान तक चिकित्सा साधन पहुंचना अगर असंभव नहीं तो बेहद कठिन ज़रूर हैं। सन 2019 में कैलीफोर्निया की एक संस्था ने शिकायत की कि वह व्हील चेयर और लाठी उत्तरी कोरिया नहीं भेज पा रही है। वैसे इस तरह के प्रतिबंधों से अमरीका में बहुत से लोगों को बिल्कुल ही शर्म नहीं आती क्योंकि उन्हें लगता है कि यह अत्याचारी सरकारों को दंडित करना का तरीक़ा है।

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अगर अमरीका के आर्थिक बहिष्कार की संभावना होती तो उस दशा में यह रणनीति किसी हद तक उचित कही जा सकती थी लेकिन बात यह है कि एसा नहीं है। ईरान के खिलाफ अमरीका के प्रतिबंधों से ईरानी जनता को नुक़सान पहुंचा है जबकि इन प्रतिबंधों का उद्देश्य यह था कि ईरानी सरकार को अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ने पर मजबूर करे मगर अंत में अमरीका को इसमें भी सफलता नहीं मिली।

मादूरो और बश्शार असद को हटाने के लिए अमरीका की कोशिशों के बावजूद आज इन नेताओं का अपने देश और अपनी जनता पर पहले से अधिक निंयत्रण है। उत्तरी कोरिया पर कड़े प्रतिबंध लगाए गये ताकि वह परमाणु हथियार न बना सके और आज उसके पास 60 से अधिक परमाणु हथियार हैं। ईरान भी आज अपने खिलाफ ट्रम्प की ओर से अधिकतम दबाव की नीति के आंरभ की तुलना में परमाणु बम से अधिक निकट है।

ईरान से प्रतिबंध पर – बाइडन दोबारा ईरान के साथ परमाणु समझौते में शामिल होना चाहते हैं लेकिन यह तेहरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने पर निर्भर है जबकि अमरीकी विदेशमंत्री का कहना है कि ईरान के खिलाफ गैर परमाणु प्रतिबंध यथावत बाक़ी रहेंगे।

लेकिन सवाल यह है कि उन नीतियों को छोड़ना इतना मुश्किल क्यों हैं जिनका अनैतिक और प्रभावहीन होना साबित हो चुका है? जवाब भी स्पष्ट है। इस प्रकार की नीतियों को छोड़ने का साफ अर्थ यह है कि वाशिंग्टन कड़वी सच्चाईयों को स्वीकार कर रहा है। एक सच्चाई तो यह है कि उत्तरी कोरिया अपना परमाणु हथियार छोड़ने वाला नहीं है , ईरान भी एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में खड़ा रहेगा और बश्शार असद, निकोला मादूरो और हवाना में कम्यूनिस्ट सरकार बाकी रहेगी। एसा लगता है कि अमरीकी नेता, अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करने के बजाए, इन देशों को सज़ा देने को अधिक तरजीह देते हैं।

सब से अच्छी बात तो यह है कि अमरीका चाहिए कि कमज़ोर राष्ट्रों की घेराबंदी को छोड़ दे क्योंकि इससे आम जनता को नुकसान पहुंचता है लेकिन अफसोस की बात यह है कि जब तक खुद हमें नुकसान नहीं पहुंचेगा एसा होना संभव नहीं है।

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