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जनजीवन से जुड़ी महत्वाकांक्षी योजनाओं में कटौती ? ———————— भोलानाथ मिश्र

आम जनता को दो वक्त का भोजन मुहैय्या कराना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती है।इधर पिछले कई दशकों के अंदर तमाम लोगों की मौतें भुखमरी के चलते हो चुकी है।देश में भुखमरी से हो रही मौतों को देखते हुए देश सर्वोच्च न्यायालय ने गतवर्षो सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए सरकार से इस पर रोक लगाने के लिए कहा था।सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के अनुपालन में पिछली कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा गारंटी कानून बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों की अस्सी फीसदी तथा शहरों की साठ फीसदी लोगों को हर महीने राशन उपलब्ध कराने का निर्णय लिया था।पात्र गृहस्थी के नाम चलाई जा रही खाद्यान्न गारंटी योजना के तहत अब हर सूचीबद्ध व्यक्ति को पांच किलो चावल व गेहूँ दिया जाता है।इससे पहले सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत एक परिवार को पैतिस किलो राशन मिलता था।पति पत्नी और बच्चों का पेट पैतिस किलो में भी नही भरता था लेकिन जो परिवार दो चार लोगों तक सीमित थे उनका भरण पोषण हो जाता था।जो लोग पति पत्नी या अकेले होते थे उनका काम पूरे महीने चल जाता था।गाँव नगर के कुछ ऐसे भी लोग थे जो गरीबीं की अंतिम सीमा पर थे उन्हें अन्त्योदय योजना के तहत नब्बे सौ रूपये में पैतिस किलो राशन मिल रहा था।सरकार की राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा गारंटी योजना नाम से बहुत ही कल्याणकारी लगती है क्योंकि इसमें खाद्यान्न उपलब्ध कराने की गारंटी है लेकिन धरातल पर यह योजना एक मजाक सी बन गयी है।पांच से दस साल का बच्चा भी दिन भर में ढाई सौ ग्राम राशन खा लेता है।कामकाजी आदमी दिन भर में एक किलो नही तो छः सात सौ ग्राम तो खा ही लेता है।पांच किलो राशन दस दिन की भी खुराक नहीं हो पाती है।सरकार पांच किलो महीने में देकर भुखमरी से न मरने देने की गारंटी ले रही है।अन्त्योदय योजना के विस्तार पर रोक लगा दी गयी है और जो बने हैं वह कार्डधारक के न रहने के बाद समाप्त हो जायेंगे।सरकार की राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा गारंटी योजना के तहत भले ही करोड़ों अरबों खर्च कर रही हो लेकिन पांच किलो महीने राशन देकर इसे लक्ष्य तक नहीं पहुंचाया जा सकता है।राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा गारंटी का मतलब महीने भर का राशन उपलब्ध कराना होता है अगर ऐसा नहीं होता है तो योजना का कोई मतलब नहीं है इससे बेहतर तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली ही थी।कम से कम राशन चीनी नमक के साथ किरोसिन तेल आदि तो मिल जाता था।इधर सरकार गरीबों अमीर बनाकर उनकी मूलभूत सुविधाओं में कटौती करने पर आमादा है।सरकार बड़े बड़े उद्योगपतियों को तरह तरह की छूट देकर उनके माध्यम से डिजिटल इंडिया का ख्वाब देख रही है दूसरी तरफ गाँव गरीबों के हकों पर कटौती की जा रही है।ऐसा पहली बार हो रहा है कि आमजनता से जुड़ी योजनाएं प्रभावित हो रही हैं।लगातार किरोसिन या डिबरी लालटेन में जलने वाले गरीब कू घर की रोशनी मिट्टी के तेल में कटौती होने एवं मूल्यवृद्धि का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।अबतक कम से कम होली दीवाली या लड़की की शादी में नियन्त्रित मूल्य की शकर मिल जाती थी जिससे हर गरीब का भला हो जाता था।हर महीने नही तो साल के छः सात महीने तो मिल ही जाती थी।।सरकार ने कंट्रोल चीनी वितरण व्यवस्था को ही समाप्त कर दिया है और पहली बार दीपावली पर लोगों को शकर नहीं मिली।पहले गाँव के गरीबों की मुफ्त कहकर गैस कनेक्शन दिये गये अब उनकी सब्सिडी से कटौती की जा रही है और उपभोक्ताओं को पूरे पैसे देने पड़ रहे हैं।बची खुचीं हमदर्दी दो दिन पहले नब्बे रूपये प्रति गैस सिलेंडर के मूल्य बढ़ाकर पूरी कर दी गयी।समझ में नहीं आता है कि क्या गाँव गरीब ही ऐसा है जिसकी सुविधाओं में कटौती करना जरुरी है?सरकार व्यवस्था में पग पग पर फैले भ्रष्टाचार को नहीं रोक पा रही है और जनता की सुविधाओं में कटौती करती जा रही है।जिस आमजनता ने सरकार का खासतौर पर मोदी जी का पग पग पर साथ दिया है उसकी सुविधाओं में कटौती करके उसे दुखी करना उचित नहीं है।देश भले ही विकास के शिखर पर पहुंच गया हो लेकिन आज भी लोगों को गाँवों में बिजली न रहने पर डिबरी या लालटेन जलानी पड़ती है।सरकार आजतक यूनिट वार किरोसिन उपलब्ध नहीं करा सकी है और योजना समाप्ति की ओर बढ़ने लगी है।गाँव गरीबों से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं को रोकना ठीक प्रतीत नही होता है।

– भोलानाथ मिश्र
(वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी )

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