- कार्यसमिति की बैठक संपन्न, छात्रवृत्ति की राशि 50 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये की गई
- जीवन में सफलता के लिए शिक्षा को एक हथियार बना लें मुसलमान: मौलाना अरशद मदनी
नई दिल्ली: देश में वर्तमान स्थिति को देखते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यसमिति की आज एक महत्वपूर्ण बैठक जमीयत उलेमा-ए-हिंद के केंद्रीय कार्यालय के मुफ्ती किफायतुल्ला मीटिंग हॉल में आयोजित की गई। मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में देश की वर्तमान स्थिति, शासन प्रशासन की ओर से लगातार जारी लापरवाही के साथ अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों, विशेष रूप से शिक्षा और मुसलमानों के शैक्षिक पिछड़ेपन पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। इस बैठक में, सदस्यों ने सभी मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। एजेंडे के अनुसार, बैठक में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अगले कार्यकाल की अध्यक्षता के लिए राज्य इकाई की कार्य समिति की सिफारिशों की समीक्षा भी की गई। इस सभा में सभी राज्य इकाइयों ने सर्वसम्मति से केवल हजरत मौलाना अरशद मदनी के नाम की सिफारिश की। अतः कार्य समिति ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अगले कार्यकाल की अध्यक्षता के लिए मौलाना अरशद मदनी के नाम की घोषणा की।
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नियमों के अनुसार जमीयत उलेमा-ए-हिंद की हर दो साल में सदस्यता होती है। लॉकडाउन में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से नागरिकों की गई निःस्वार्थ सेवा, दिल्ली दंगा पीड़ितों और अभियुक्तों को कानूनी और सामाजिक सहायता, तब्लीगी जमात पर नकारात्मक प्रोपेगंडा करने वालों के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद की क़ानूनी संघर्ष आदि की वजह से अतीत में जमीयत की तरफ नए लोगों का आकर्षण बढ़ा है, यही वजह है कि लोग जमीयत की सदस्यता पाने में बहुत उत्सुक हो रहे हैं और प्रत्येक प्रांत में जमीयत के कार्यालयों के साथ महत्वपूर्ण संख्या में नए लोग लगातार संपर्क में हैं। ध्यान योग्य है कि पिछले कार्यकाल में जमीयत के सदस्यों की संख्या लगभग 1 करोड़ 15 लाख थी जबकि इस वर्ष इस संख्या में वृद्धि की प्रबल संभावना है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्य समिति ने आज से 31 जुलाई तक इस पद की सदस्यता की घोषणा की है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद पहले दिन से शिक्षा के प्रचार प्रसार पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिसमें स्कूलों और मदरसों की स्थापना के साथ-साथ आधुनिक और तकनीकी शिक्षा लेने वाले गरीब और जरूरतमंद छात्रों को लगातार छात्रवृत्ति देने का काम शामिल है। और इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इस प्रवृत्ति को जारी रखते हुए, इस वर्ष 50 लाख रुपये से बढ़ा कर 1 करोड़ की राशि छात्रवृति के लिए आवंटित की गई थी, जिसके लिए देश भर से लगभग 600 छात्रों का चयन किया गया है, जिनमें से अब तक लगभग 500 छात्रों को छात्रवृति दी जा चुकी है और उन्हें छात्रवृति जारी कर दी गई है, जबकि यह सिलसिला अभी भी जारी है।
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बैठक को संबोधित करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने छात्रवृति की आवश्यकता और उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी इस छोटी सी कोशिश से बहुत से ऐसे होनहार और मेहनती बच्चों का भविष्य किस हद तक संवर सकता है जिन्हें अपनी आर्थिक परेशानियों की वजह से अपने शैक्षिक सिलसिले को जारी रखने में मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में जिस तरह धार्मिक उन्माद और विचारधारा का विद्वेष फैल चुका है उस का मुक़ाबला किसी हथियार या जंग से नहीं किया जा सकता, इसके साथ मुक़ाबले का एक मात्र रास्ता यह है की हम अपनी नई नस्ल को उच्च शिक्षा दिला कर इस क़ाबिल बना दें कि वह अपनी शिक्षा और हुनर के हथियार से इस विचारधारा की लड़ाई में अपने प्रतिद्वंदी को परास्त कर सके और वह कामयाबी की मंज़िल को हासिल कर सके जिस तक हमारी पहुँच को सियासत के रूप में कठिन से कठिन बना दिया गया है।
मौलाना ने कहा आज़ादी के बाद से ही आने वाली सभी सरकारों ने एक निर्धारित नीति का पालन करते हुए मुसलमानों को शिक्षा के क्षेत्र में पीछे कर दिया है। सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में दलितों से भी पीछे हैं। मौलाना ने सवाल किया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्यों पैदा हुई और इस के क्या कारण हो सकते हैं इस पर हमें गंभीरता से गौर करने की आवश्यकता है। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि मुसलमानों ने खुद जान बूझ कर शिक्षा से किनारा नहीं कर लिया क्यूंकि अगर उन्हें शिक्षा से लगाव न होता तो वह मदरसे क्यों खुलवाते। दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई यह भी है कि आज़ादी के बाद सत्ता में आने वाली सरकारों ने मुसलमानों को शिक्षा से दूर रखा है, उन्होंने कहा कि शायद सरकारों ने यह बात महसूस कर ली थी कि अगर मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढे तो अपनी काबिलियत के बल पर वह तमाम उच्च पदों को हासिल कर लेंगे इसलिए हर तरह के बहानों और रूकावटों के द्वारा मुसलमानों को शिक्षा के राष्ट्रीय धारे से अलग-थलग कर देने की कोशिशें होती रहीं जिस का परिणाम यह हुआ कि मुसलमान शिक्षा में दलितों से भी पीछे हो गए।
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मौलाना मदनी ने कहा कि हम एक बार फिर अपनी यह बात दोहराना चाहेंगे कि मुसलमान पेट पर पत्थर बाँध कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाएं और जीवन में कामयाबी के लिए हमारी नई नस्ल को शिक्षा का असली हथियार बनायें। हमें ऐसे स्कूलों और कालेजों की बहुत ज़रुरत है जिन में धार्मिक पहचान के साथ-साथ हमारे बच्चे उच्च शिक्षा भी बिना किसी रूकावट के हासिल कर सकें। उन्होंने राष्ट्र के उच्च पदस्थ लोगों का आह्वान किया कि वह ऐसे स्कूल खुलवाएं जहाँ बच्चे अपनी धार्मिक पहचान के साथ आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें। हर शहर में कुछ मुसलमान मिलकर कॉलेज खोल सकते हैं, उन्होंने कहा बदक़िस्मती यह है जो मुसलमान इस पर गौर नहीं करते दूसरी चीज़ो पर तो गौर करने में दिलचस्पी होती है मगर शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं करते। यह हमें अच्छी तरह समझना होगा कि देश की वर्तमान बद तर दशा का मुक़ाबला सिर्फ और सिर्फ शिक्षा के द्वारा ही किया जा सकता है। मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत का दायरा बहुत बड़ा है और वह हर क्षेत्र में कामयाबी के साथ काम कर रही है। अतः एक तरफ जहाँ यह मकतब और मदरसा खोल रही हैं वहीँ दूसरी तरफ उसने अब ऐसी शिक्षा पर भी ज़ोर देना शुरू कर दिया है जो रोज़गार प्रदान करता है।
रोज़गार प्रदान कराने वाली शिक्षा से तात्पर्य यह है कि तकनीकी और हुनर प्रदान करने वाली शिक्षा है ताकि जो बच्चे इस तरह शिक्षा प्राप्त करके निकलें उन्हें तुरंत रोज़गार मिल सके और नौकरी हासिल कर सकें। शिक्षा के तहत जमीयत उलेमा ए हिंद आज़ादी के बाद से ही बहुत संवेदनशील रही है, अतः जमीयत के बुज़ुर्गों ने 1954 में एक धार्मिक संस्था की आधार शिला रखी थी जिसका मक़सद मुसलमानों में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाना और देश की धरती पर मकतबों और मदरसों को आबाद करना था। अतः पूरे देश में मकतबों और मदरसों का जाल बिछा देख रहे हैं यह उन्हीं कोशिशों का नतीजा है लेकिन अब इस सिलसले में हमें नए सिरे से मुहिम शुरू करने की आवश्यकता है इसीलिए अब हमने फैसला लिया है कि जमीयत उलेमा ए हिंद अपने प्लेटफार्म से मुसलमानों में शिक्षा को आम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाएगी और जहाँ कहीं भी आवश्यकता हुई वहां स्कूल और मदरसे बनाएगी और उच्च शिक्षण संस्थाएं भी खोलेगी, जिन में राष्ट्र के उन गरीब मगर क़ाबिल बच्चो को भी अवसर प्रदान किया जायेगा ताकि वह भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें जिन के अभिभावक शिक्षा का बोझ वहन नहीं कर सकते और जो खर्च नहीं उठा सकते उन्हें भी मौक़ा दिया जायेगा।
उन्होंने आगे कहा कि जीवन में घर बैठे इंक़लाब नहीं आते बल्कि उस के लिए कार्य क्षमता के साथ कोशिश की आवश्यकता होती है और क़ुर्बानियां भी देनी पड़ती हैं। आखिर में मौलाना मदनी ने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों और दलितों के लिए बहुत खतरनाक हो चुकी है। एक तरफ जहाँ संविधान और न्याय पालिका को समाप्त करने की साज़िश की जा रही है वहीं दूसरी तरफ इंसाफ और न्याय का दमन भी हो रहा है। भारत सदियों से अपनी धार्मिक संस्कृति और सामाजिक ताने बाने से विश्व में प्रसिद्ध रहा है, सद्भावना और भाईचारा यहाँ की पहचान रही है और यही पहचान इसकी रूह भी रही है, यहाँ विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग हमेशा से ही आपसी सौहार्द के साथ रहते आये हैं। यहाँ किसी एक धर्म की सरकार नहीं चल सकती, आज हमारे सामने सब से बड़ा सवाल यह है कि देश किसी एक विचारधारा की नीव पर चलेगा या राष्ट्र की बुनियाद पर या सेकुलरिज्म के उसूलों पर। मौलाना मदनी ने कहा ये देश सबका है भारत हमेशा से गंगा जमुना की संस्कृति वाला देश रहा है इसी रह पर चल कर ही विकास हो सकता है। मौलाना मदनी ने आखिर में विशेष कर मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि वह जहाँ भी रहें अमन और सौहार्द का वातावरण बनायें, नफरत से नफरत का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता याद रखो नफरत को सिर्फ मोहब्बत से ही जीता जा सकता है।
वर्किंग कमेटी ने जिला स्तर पर राज्यों, जिलों और स्थानीय यूनिटों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि वह जमीयत उलेमा ए हिंद के बुनियादी कार्यक्रमों खासकर सामजिक कार्यों के प्रोग्रामों को आंदोलन की तरह चलाएं ताकि समाज में फैली बुराइयों को समाप्त किया जा सके। बैठक में जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलान सय्यद अरशद मदनी के अलावा मुफ़्ती सय्यद मासूम साकिब नाज़िम उमूमी जमीयत उलेमा ए हिन्द, मौलाना हबीबुर्रहमान क़ासमी, मौलाना सय्यद असजद मदनी, मौलाना अशहद रशीदी, मौलाना मुश्ताक़ अंफ़र, मुफ़्ती गयासुद्दीन, मौलाना अब्दुल्लाह नासिर, हाजी हसन अहमद क़ादरी, हाजी सलामतुल्लाह आदि उपस्थित थे।