देश के रत्न और देश भक्त सरकार के साथ ?
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संपादक की कलम से – वाकई में देश के रत्न हों या भक्तजन हों वो सरकार के पक्ष में बोलें तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये, क्योंकि रत्न को समांनित करता कौन है ? सरकार! जनता तो नहीं ? बकलोल जनता तो उसे (देश के रत्न को) सिर्फ सिर पे बिठाती है और क्या करती है ? लेकिन कोई इनसे ये पूँछे कि यदि आज जो पैरोकारी करने की जरूरत आन पडी वो यदि पहले जाहिर कर देते, कुछ अन्नदाता के पक्ष में भी बोल देते तो इन विदेशियों के बीच में आने की हिम्मत पड पाती ?
देश में तो ऐसे भक्त भी हैं जो कमाते देश में हैं और नागरिक विदेश के हैं सरकार को चुनती जनता है और हक़ वो जताते हैं ? आज देश की सरकार जिस किसान ने कोरोना काल में भी जीडीपी में अपना अहम योगदान दिया उसे ठेंगा दिखाती है और जो उद्योगपति कोरोना काल में देश में कंजूसी दिखाये और कोरोना काल में भी विश्व का नंबर वन बन जाये वो भी जब देश की आर्थिक कमर टूट गयी हो तो उसके बावजूद सरकार उसके लिये देश का खजाना खोल कर लुटाये और उसे ही सबल और समृद्ध बनाये तो अफ़शोस नहीं करना चाहिये ! क्योकि आदान और प्रदान हमारे देश की ईमानदार प्रथा है !
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फिर चाहे देश की एकता और अखण्डता भले ही खतरे में पड जाये उससे किसी को क्या सरोकार ? उसको तो देश भक्त मीडिया भी न दिखायेगा और न ही सवाल पूछेगा ! उसका सबसे बडा उदाहरण तो ये है कि यदि देश की अस्मत को ऐसे लोगों के सुपुर्द न किया गया होता तो देश के सिरमौर लाल किले पर इतना बडा दुष्साहस कोई कर पाता जिस तिरंगे के अपमान की बात भक्त जन करते हैं, उनसे कोई ये पूँछे यदि उसकी देख रेख सरकार के पास होती तो क्या ऐसा कुछ हो पाता जो 26 जन. 2021 को हुआ ?
सायद हम भूल जाते हैं कि हमारे देश के संसद भवन पर जो आतंकी हमला हुआ उसमें आतंकी क्या सफल हो पाये ? नहीं. क्योंकि उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार के पास थी और देश के जवान उसकी रक्षा करने में सक्षम थे, लेकिन लाल किले की देख रेख की जिम्मेदारी सरकार ने ऐसे व्यक्ति को दे रखी है जो समय पर अपनी भी सुरक्षा के लिये आखिर में उसे देश के जवानों से लेनी पडे, तो ऐसे लोगों के हाथ में देश की अस्मत क्यों ? लाल किले और तिरंगे के अपमान का दोषी कौन ?
नई दिल्ली : देश के रत्न और देश भक्त सरकार के साथ, मोदी सरकार के तीन कृषि बिलों के खिलाफ जारी प्रदर्शन के बीच विदेशी हस्तियों के किसान आंदोलन के समर्थन पर प्रतिक्रिया स्वरुप भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने भी ट्वीट किया था। तेंदुलकर (देश के रत्न) ने लिखा था, ‘भारत की सम्प्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता। विदेशी ताकतें दर्शक हो सकती हैं लेकिन प्रतिभागी नहीं। भारत को भारतीय जानते हैं और वे ही भारत के लिए फैसला लेंगे। एक देश के रूप में एकजुट होने की जरूरत है।’
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सचिन के इस ट्वीट के बाद पक्ष विपक्ष में कई प्रतिक्रियाएं आईं। राजद के नेता शिवानंद तिवारी ने जहाँ यह कहा कि तेंदुलकर भारत रत्न के लायक नहीं हैं वहीं सचिन के ट्वीट से नाराज केरल लोगों ने उनकी तस्वीर पर कालिक पोत दी।
दरअसल किसानों के आंदोलन की ओर ध्यान आर्किषत करने वाली रिहाना के ट्वीट के बाद बॉलीवुड की हस्तियां स्पष्ट रूप से बनती हुई नजर आईं। अमेरिकी गायिका की टिप्पणी पर जहाँ (देश के रत्न) अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे बड़े फिल्मी सितारों ने सरकार का समर्थन किया और देश का आंतरिक मामला बताया वहीँ (देश की जनता) अभिनेत्री तापसी पन्नू, फिल्मकार ओनिर, अभिनेता अर्जुन माथुर और अन्य ने बड़े फिल्मी सितारों द्वारा सरकार का समर्थन किए जाने की निंदा की।