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भारतीय मीडिया के दोहरे चरित्र पर उठे सवाल ! कहीं पत्थरबाज़ अच्छे और कहीं पत्थर चलाने वाले आतंकी ?

भारत में आज-कल पत्थर चलाने वालों की प्रशंसा हो रही है, अब यह ना सोचिएगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि कश्मीर में जो युवा पत्थर चलाते हैं उनकी तारीफ़ हो रही है। नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है।

केन्द्रीय सरकार द्वारा सीएए विवादित क़ानून बनाया गया है, जिसे नागरिकता संशोधन क़ानून कहा जाता है। इसी के साथ दो और चीज़ें हैं जिनका नाम है एनआरसी और एनपीआर, जिसे लेकर पूरे भारत में करोड़ों की संख्या में लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच सरकार ने भी इस क़ानून के समर्थन में कई बड़ी-बड़ी रैलियां कीं और बड़े-बड़े विशाल मार्च निकाले, लेकिन सब बेकार साबित हुए और दिल्ली स्थित शाहीन बाग़ सहित पूरे भारत में और अधिक शक्ति के साथ आम नागरिक इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच कई ऐसी घटनाएं देखने को मिली जहां पुलिस और कुछ अन्य कट्टरपंथी संगठनों के लोगों ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर पत्थर चलाए। इस पत्थरबाज़ी में कई प्रदर्शनकारी घायल भी हुए।

इसी तरह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष कन्‍हैया कुमार ने भी लगातार सीएए, एनआरसी व एनपीआर के विरोध में 26 जनवरी से जन मन यात्रा आरंभ की हुई है। तब से कहीं न कहीं उनके ऊपर पथराव की ख़बरें सामने आ रही हैं। इन सबके बीच जो बात निंदनीय और चिंताजनक है वह यह है कि इस पत्थरबाज़ी को भारतीय मीडिया के कई चैनल और समाचारपत्र ऐसे लिख रहे हैं जैसे कि पत्थरबाज़ों ने बड़ी बहादुरी का काम किया है और उन्हें पुरुस्कार मिलना चाहिए। जानकारी के मुताबिक़, सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में कन्हैया कुमार की जन मन यात्रा के अंतर्गत शु्क्रवार 14 फ़रवरी को बिहार के बक्‍सर व आरा में कार्यक्रम निर्धारित था। इसी क्रम में वे बक्‍सर में सभा को संबोधित कर आरा जा रहे थे। आरा के रमना मैदान में कार्यक्रम होने वाला था। आरा-बक्सर हाईवे पर गजराजगंज ओपी के बामपाली गांव के समीप बाइक सवार लोगों ने कन्‍हैया कुमार के क़ाफ़िले में जमकर पथराव कर दिया। कन्हैया इन पत्थरबाज़ों से अपनी जान बचाकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे और तै कार्यक्रम में भाषण भी दिया।

इन सबके बीच भारतीय मीडिया, जो कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन करने वाले युवाओं को, जब वह पत्थर चलाते हैं, जो ग़लत है और निंदनीय भी है, उन्हें चीख़-चीख़कर आतंकी साबित करने में लगी रहती है, वही मीडिया जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों और छात्राओं, सीएए का विरोध करने वाले आम नागरिकों और कन्हैया कुमार पर पत्थर चलाने वाले और गोलियां चलाने वाले लोगों की प्रशंसा करती नज़र आती है तो चिंता की बात है। क्योंकि भारतीय मीडिया, जिसे इस महान देश के चौथे स्तंभ के तौर पर जाना जाता है उस स्तंभ में दरार आ रही है और किसी भी इमारत का आगर कोई एक स्तंभ गिरता है तो पूरी इमारत पर ख़तरा मंडराने लगता है।

साभार पी.टी.

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