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भारतीय विद्वानों की मोदी से मांग, कश्मीर से हटाए जाएं प्रतिबंध ।

रिपोर्ट – सज्जाद अली नायाणी

सैकड़ों भारतीय वैज्ञानिकों और विद्वानों ने इस देश के प्रधानमंत्री से कश्मीर में लगे प्रतिबंधों को समाप्त करने की मांग की है।

देश – भारत के बड़े संस्थानों के 500 से अधिक वैज्ञानिकों और विद्वानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कश्मीर में लगी पाबंदी हटाने की गुज़ारिश की है।  इन भारतीय वैज्ञानिकों एवं विद्वानों का कहना है कि “यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों के हक को बरकरार रखे और सभी नागरिकों के कल्याण की रक्षा करे।”

भारतीय संचार माध्यमों के अनुसार शनिवार को भारत के बड़े संस्थानों के वैज्ञानिकों और विद्वानों ने एक साझा बयान जारी करके कहा है कि कश्मीर में दूरसंचार और इंटरनेट पर अंकुश लगाना, विपक्षी नेताओं को नजरबंद करना तथा कश्मीर में जो हो रहा है उससे असहमत होने वालों पर अंकुश लगाना पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है। 

हस्ताक्षरकर्ता वैज्ञानिकों और विद्वानों ने कहा, “कश्मीरियों को लेकर किसी की कोई भी राय हो सकती है, लेकिन लोकतंत्र का एक बुनियादी उसूल है कि सत्ताधारी दल को यह अधिकार नहीं है कि वह बिना किसी गुनाह के राजनीतिक विरोधियों को कैद में रखे।  वैज्ञानिकों का कहना है कि पाबंदी लगाने से कश्मीर के लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।  वे अपनी जरूरत का सामान और दवाईयां तक नहीं खरीद पा रहे हैं।  साथ ही उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।  उन्होंने कहा, “हमारे संस्थानों में पढ़ने आए कश्मीरी विद्यार्थियों को हमने बहुत दुख में देखा है क्योंकि वे अपने परिवार वालों से बातचीत नहीं कर पा रहे हैं।”  प्रधानमंत्री को पत्र भेजने वाले हस्ताक्षरकर्ताओं में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान कलकत्ता, पुणे और तिरुवनंतपुरम, भारतीय विज्ञान संस्थान, भारतीय सांख्यिकी संस्थान और कई विश्वविद्यालयों सहित कई भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और अन्य शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं।

हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक भौतिक विज्ञानी सुवरत राजू ने अखबार द टेलिग्राफ से कहा, “साझा बयान बहुत जरूरी है, खासतौर से यह उस धारना को तोड़ता है कि भारत में लगभग सभी लोग कश्मीर पर सरकार की नीतियों का समर्थन करते हैं।”  टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) और अंतरराष्ट्रीय सैद्धांतिक भौतिक शास्त्र केंद्र (आईसीटीपी) बैंगलुरु में कार्यरत राजू ने कहा, “साझा बयान यह बताता है कि वैज्ञानिक और शैक्षणिक समूदाय से बहुत सारे लोग सरकार की कश्मीर को लेकर नीति के समर्थक नहीं हैं।”  राजू ने कहा, “आमतौर पर अनुसंधान संस्थानों के सदस्य राजनैतिक मुद्दों से दूर रहते हैं।  इसलिए भी यह खास है कि लगभग 24 घंटे के भीतर 500 सदस्यों ने हस्ताक्षर करके इस मुद्दे पर अपने पक्ष को साफ किया है।” उन्होंने कहा, “इससे इस बात का पता चलता है कि शैक्षणिक और वैज्ञानिक समुदाय के भीतर सरकार की नीतियों को लेकर बड़े स्तर पर असहमति पाई जाती है।”

उल्लेखनीय है कि पांच अगस्त को भारत की केंद्र सरकार ने जम्मू व कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म करके उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया है।  भारत नियंत्रित कश्मीर में पिछले डेढ़ महीने से कर्फ्यू लगा हुआ है।

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