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भारत को जापान का भी साथ मिला, जताया चीन के नए नक्शे पर एतराज; पहले ही ये देश जता चुके हैं आपत्ति

पिछले महीने चीन द्वारा जारी किए नए ‘मानक मानचित्र’ पर विवाद गहराता जा रहा है। इसमें उसने पूर्वी चीन सागर के विवादित सेनकाकू द्वीप समूह को भी अपने क्षेत्र के हिस्सा बताया है। इसके खिलाफ अब जापान ने भी अपना कड़ा विरोध जताया है। भारत, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और ताइवान पहले ही इस मानचित्र पर आपत्ति जता चुके हैं। 

जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव हिरोकाजू मात्सुनो ने मंगलवार को टोक्यो में मीडियाकर्मियों से बात की और बताया कि उनके देश ने इस नए नक्शे पर राजनयिक चैनलों के जरिए चीन के सामने कड़ा विरोध जताया है। जापानी मीडिया ने मात्सुनो के हवाले से कहा कि टोक्यो ने बीजिंग से नक्शे को रद्द करने का आग्रह किया है, क्योंकि इसमें दक्षिण जापान के ओकिनावा प्रांत के सेनकाकू द्वीप पर चीन के एकतरफा दावों के आधार पर विवरण है। 

इस मानचित्र में सेनकाकस के द्वीपों को दियाओयू (चीनी नाम) समूह के रूप में वर्णित किया गया है। पूर्वी चीन सागर में जापानी प्रशासित द्वीपों पर बीजिंग अपना दावा करता है। मात्सुनो ने कहा, ये द्वीप ऐतिहासिक रूप से और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत निर्विवाद रूप से जापानी क्षेत्र का एक अंतर्निहित हिस्सा हैं।

उन्होंने कहा कि जापान, लोगों के जीवन और संपत्तियों के साथ-साथ देश की भूमि, समुद्र और हवाई क्षेत्र की रक्षा में दृढ़ता से खड़े रहने की अपनी नीति के आधार पर शांत और मजबूत तरीके से जवाब देता है।

जापान के विरोध पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने द्वीपों पर टोक्यो के दावे को खारिज कर दिया। माओ ने बुधवार को एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि दियाओयू द्वीप समूह और पड़ोसी द्वीप चीन के क्षेत्रों का हिस्सा हैं। चीन के लिए उन्हें हमारे मानक मानचित्रों में शामिल करना उचित है। हम इस तरह के बयानों को स्वीकार नहीं करते हैं।

इससे पहले फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और ताइवान की सरकारों ने चीन के नए राष्ट्रीय मानचित्र को खारिज करने में भारत का साथ दिया और कड़े शब्दों में बयान जारी कर बीजिंग पर उनके क्षेत्र पर दावा करने का आरोप लगाया। चीन ने पिछले हफ्ते अपने राष्ट्रीय मानचित्र का एक नया संस्करण प्रकाशित किया था।

भारत ने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर दावा करने वाले तथाकथित ‘मानक मानचित्र’ को लेकर चीन के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया और कहा कि इस तरह के कदम केवल सीमा से जुड़े सवालों के समाधान को जटिल बनाते हैं।

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