चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग न्यूजीलैंड के दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि दोनों देशो को अपने मतभेदों को उनके बीच खाई बनने से रोकना होगा। ली का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब न्यूजीलैंड ऑकस गठबंधन में शामिल होने की योजना बना रहा है।
यह एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौता है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। ऑकस का मकसद सुरक्षा और रक्षा हितों का समर्थन करने के लिए प्रत्येक देश की सरकार को मजबूत करना, सूचना और तकनीकी के साझाकरण को बढ़ावा देकर दीर्घकालिक और चल रहे द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना और सुरक्षा व रक्षा से जुड़े विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगिक आधारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं के एकीकरण को बढ़ावा देना है।
न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री से की मुलाकात
बीजिंग मानता है कि तीनों देशों के बीच यह साझेदारी उसे आगे बढ़ने से रोकने के लिए है। ली ने गुरुवार को वेलिंगटन में न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन के साथ बातचीत की। इसके बाद उन्होंने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यह स्वाभाविक है कि दोनों देश हर बात पर हमेशा एक-दूसरे से आंख नहीं मिलाते हैं।
खाई नहीं बनने चाहिए मतभेद: ली
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने ली के हवाले से कहा, ऐसे मतभेद खाई नहीं बनने चाहिए, जो हमारे बीच आदान-प्रदान और सहयोग को बाधित करे। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को एक-दूसरे से सीखने और साथ बढ़ने के लिए मतभेदों को दूर करना चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय ली के हवाले से बयान में कहा, दोनों पक्षों को द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संबंधों के लिए गैर आर्थिक कारकों की गड़बड़ी को दूर करने के लिए काम करना चाहिए और कंपियों के संचालन व विकास के लिए एक अच्छा कारोबारी माहौल प्रदान करना चाहिए। उन्होंने न्यूजीलैंड के लोगों के लिए चीन जाने के लिए वीजा मुक्त नीति का भी एलान किया।
क्वाड और ऑकस का आलोचक रहा है चीन
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी सहयोगी ली की ओर से यह प्रतिक्रिया उन खबरों की पृष्ठभूमि में आई है, जिनमें कहा जा रहा है कि न्यूजीलैंड ऑकस गठबंधन में शामिल होने की योजना बना रहा है। ऑकस समझौते में परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी और अत्याधुनिक तकनीकों का हस्तांतरण शामिल है। इनमें क्वांटम कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हाइपरसोनिक हथियार शामिल हैं। चीन क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) और ऑकस दोनों को ऐसा गठबंधन मानता है, जिसका मकसद बीजिंग के उदय को रोकना है। चीन दोनों का आलोचक रहा है।