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महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण से बच्चों की मौत पर बंबई हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि शून्य से छह माह की उम्र के 65 बच्चों की मौत बेहद भयावह स्थिति को दर्शाती है। कोर्ट ने कहा कि सरकार का रवैया “बेहद लापरवाह” है और यह मुद्दा गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।
जस्टिस रेवती मोहिटे डेरे और जस्टिस संदीश पाटिल की खंडपीठ ने कहा — “राज्य सरकार का रवैया कैजुअल है, जबकि यह स्थिति अत्यंत भयावह है। सरकार को उतनी ही चिंता करनी चाहिए जितनी हमें है।” अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि कुपोषण से होने वाली मौतें दिखाती हैं कि सरकार कागजों पर तो सब कुछ ठीक दिखा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।
2006 से जारी है मामला
अदालत ने कहा कि इस मामले पर साल 2006 से आदेश पारित किए जा रहे हैं, लेकिन अब तक स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है। कोर्ट ने टिप्पणी की — “यह सरकारी लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। यह बेहद दुखद स्थिति है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दे को सरकार ने हल्के में लिया है।”
अदालत ने यह भी कहा कि कुपोषण से बच्चों की मौतें अस्वीकार्य हैं, और राज्य सरकार को अब तत्काल और ठोस कदम उठाने होंगे।
अधिकारियों को पेश होने का आदेश
कोर्ट ने राज्य सरकार के चार विभागों — जन स्वास्थ्य, आदिवासी कार्य, महिला एवं बाल विकास और वित्त विभाग — के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है। अदालत ने निर्देश दिया कि सभी अधिकारी इस मुद्दे पर उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट शपथपत्र के रूप में पेश करें। कोर्ट ने कहा कि अब “जवाबदेही तय करना जरूरी है।”
डॉक्टरों को प्रोत्साहन देने का सुझाव
खंडपीठ ने सुझाव दिया कि आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत डॉक्टरों को अतिरिक्त वेतन या प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, ताकि वे इन कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए प्रेरित हों। अदालत ने कहा कि यह बेहद जरूरी है कि ऐसी जगहों पर नियुक्त डॉक्टरों को बेहतर सुविधाएं और सुरक्षा दी जाएं और सरकार स्पष्ट जवाबदेही तंत्र विकसित करे।

