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मोदी और योगी के दावे खोखले, कानपुर का डॉ मुरारी लाल चेस्ट हॉस्टपीटल बनता जा रहा मौत का घर ? —- रवि निगम

कानपुर – टीबी अस्पताल के रूप में बिख्यात डॉ मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पीटल टीबी का एक मात्र अस्पताल है। जहाँ टीबी जैसे संक्रमित बिमारी का सुचारू रूप से इलाज होता है जो खास इसी बिमारी से झूझ रहे लोगो का इलाज करता है।

यहाँ चेस्ट , दमा , सांस और फेफड़े (लन्ग) से सम्बन्धित बिमारी से ग्रसित लोगों इलाज होता है। सरकारें कहती हैं टीबी अब कोई लाइलाज बिमारी नहीं हैं , यदि सरकार द्वारा बनाये गये संस्थानों में जा कर इसका नियमित रूप से इलाज कराया जाये तो लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। ऐसी घोषणा ब्रांड एम्बेस्डर महानायक अमिताभ बच्चन के माध्यम से सरकारें दावा करती आ रहीं हैं।

वहीं मोदी चिकित्सा के नाम पर विश्व में पहली ऐसी योजना अयुस्मान भारत चला रहें है , जिसके चलते देश के कोने-कोने तक इसका लाभ 5 करोड़ लोगों तक सीधे-सीधे पहुंचाया जा रहा है।

ये हमारे देश की विडम्बना ही है कि विज्ञापनों और आकडों के खेल में माहिर सरकार यथार्त में उसके सारे दावे नाकारा ही सावित होते दिखते हैं ।

मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पीटल को ही ले लीजिये ये कानपुर जैसे मैट्रोपोलिटन सिटी का टीबी का एक मात्र अस्पताल है जिसकी खस्ता हालत को देखते ही मरीज तो क्या उसका तीमारदार भी दम तोड़ देगा यदि वो वहाँ कुछ दिन टिक जाये। जो किसी सुअर बाड़ा से कम नही है । जहाँ वार्ड ही नहीं अपितु इमरजेन्सी के साथ-साथ इमरजेन्सी की गैलरी तक में मरीज जमीन पर लेटकर इलाज करवाने के लिये मजबूर हैं, कहते हैं कि मरता क्या न करता।

इस पूरे अस्पताल में मात्र 60 से 70 बेड हैं जनरल वार्ड में , आई सी यू में मात्र चार बेड का इन्तजाम है और इमरजेन्सी वार्ड की तो बात ही मत पूछिये यहाँ तो राम भरोसे इलाज जमीन पर लिटाकर होता है।

डॉक्टरों के मुताबिक सभी सरकारें जनता को बेवकूफ बनाने का काम करती हैं, वर्तमान समय में लगभग 70 बेड हैं और मरीजों की संख्या 120 से ज्यादा है तो वो क्या करें उन्हे मजबूरन जमीन पर लिटाकर इलाज करना पड़ता है, एक सिफ्ट में पांच लोगों का स्टॉफ है, जिसमें सीनियर स्टॉफ का भी लोड भी उनके ऊपर दबाव बस बना रहता, व दूसरी सिफ्ट में लगभग पांच लोगों का स्टॉफ सिर्फ लैब में ही उलझा रहता है और आई सी यू को तो वो कैसे कर चला रहे हैं, यदि उसे बन्द कर दिया जाय तो प्रति दिन ऐसी मौतों की संख्या और भी बढ़ जायेंगी। एक रेजीडेन्ट डॉक्टर का तो यहाँ तक कहना है कि वो जब से यहाँ आये हैं उनके सामने ही लगभग पांच लोगों का रिटायर्मेन्ट हुआ और ऐसे ही आठ / दस लोगों की जगह रिक्त है जिसे आज तक भरा नहीं गया है।

आप जिस व्यक्ति की तस्वीर देख रहें हैं वो अपनी बेटी की सगाई के दौरान उसकी हालत बिगड़ जाने के पश्चात उसे उसके परिजन उपचार हेतु अस्पताल लेकर आये थे जिसे डॉ. शिवम द्वारा उपचार दिया जा रहा था, जिसे ऑक्सीजन लगा हुआ था तभी डॉ. शिवम ने उसके परिजन से भाप देने के लिये बाहर से किराये पर नेबुलाइजर मशीन मगांकर भाप देना शुरू कर दिया जिसके पश्चात उसकी हालत और भी बिगड़ती चली गयी , मरीज के परिजन डॉ शिवम से कह – कह कर थक गये कि उसके मरीज की हालत बिगड़ रही है लेकिन वो सुनने को तैयार तक नहीं हुआ। क्या तस्वीर में दिख रहा शख्स को ये माना जा सकता है कि उसकी चंद मिनटो पश्चात मृत्यु हो जायेगी, लेकिन वो लापरवाही का शिकार हो गया।

वहीं उसी के बायें हांथ पर जमीन पर लेटे हुये मरीज संतोष निगम का भी इलाज चल रहा था , जो “मानवाधिकार अभिव्यक्ति” के संपादक रवि निगम के रिस्तेदार थे , जब रवि निगम ने भी उस कृत को देखा तो उन्होने डॉ. शिवम से उस पर नाराजगी व्यक्त की तो डॉ. शिवम का कहना था कि उन्हें अपने मरीज का यदि इलाज कराना है तो करायें अन्यथा वो अपने मरीज को वहाँ से ले जा सकते हैं, अभद्रता करते हुये बोला कि यदि वो अस्पताल से बाहर नहीं गये तो उनके मरीज पर पांच सौ रुपये जुर्माना लगा देगें।

वहीं जब उक्त व्यक्ति की सिस्टम की लापरवाही के चलते मौत हो गई तो उसे देख संतोष निगम के परिजन भी घबरा गये , क्योंकि उक्त व्यक्ति की मृत्यु कोई स्वभाविक मृत्यु नहीं थी, जिसके पश्चात रवि निगम ने भी अपने सम्बन्धियों से सलह मशविरा कर उन्हे वहाँ निकालना ही उचित समझा।

जिस डॉ. शिवम को कायदे से बात तक करना गवांरा नहीं था, वो उसके बाद डॉ. मित्तल से कहने के पश्चात संतोष निगम को हैलट (LLR) हॉस्पीटल को रिफर करने के लिये तैयार हो गया। लेकिन संतोष निगम को उपचार हेतु हैलट में भर्ती तो किया गया , लेकिन सरकारिया मशीनरी आखिर सरकारिया होती है , और अन्ततोगत्वा 21 फरवरी की रात को लगभग 9:30 बजे उन्हेने अन्तिम सांस ली।

शासन और प्रशासन जल्द नही चेता तो वो दिन दूर नहीं जब डॉ. मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पीटल मौत का घर बन जायेगा। और गरीबों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ बनता रहेगा, डॉ. मित्तल के अनुसार मरीज यहाँ आता है तो वो या तो ठीक होकर घर जाता है या फिर…….

…..क्योंकि सरकारी सिस्टम होता ही ऐसा है। उनके मुताबिक इतनी पढ़ाई करने के बाद कोई समाज सेवा करने नहीं आता है। सरकारें स्वास्थ को लेकर आकड़ो के जाल तो बुनती हैं पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती दिखती हैं।

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