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राजनीति में गिरते लोकतांत्रिक मूल्यों एवं जम्मू कश्मीर सरकार गठन में राज्यपाल की भूमिका पर विशेष – भोलानाथ मिश्र

लोकतंत्र में संविधान किसी को भी मनमानी धोखाधड़ी करके सत्ता हथियाने का अधिकार नहीं देता है क्योंकि लोकतंत्र में जनमत का मुख्य स्थान होता है।लोकतंत्र में जनमत जिसके पास सबसे ज्यादा और दो तिहाई बहुमत होता है उसी को सरकार बनाने का हक होता है। लोकतंत्र में चाहे राष्ट्रीय राजनैतिक दल हो चाहे क्षेत्रीय राजनैतिक दल हो दोनों को समान अधिकार मिले हुए हैं इसीलिये बहुमत के आधार पर दोनों सरकार बना सकते हैं।इ़धर हमारी राजनीति ऐसे मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है जहाँ पर वसूल सिद्धान्तों विचार एवं ईमानदारी का कोई महत्व नहीं रह गया है और चुनाव जीतने तथा सत्ता में पहुचंने के लिये सारे वसूल सिद्धान्तों विचारों को ताख पर रख दिया जा रहा था।जिस तरह चुनाव में मतदाता बिना किसी से पूंछे अपनी विचारधारा बदलकर दूसरी पार्टी में चला जाता है बिल्कुल उसी तरह चुनाव जीतने के बाद कुछ विधायक सासंद भी विचारधारा को त्यागकर सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को नजरंदाज कर देते हैं।अबतक यह माना जाता था कि महामहिम राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के पद ऐसे गरिमामयी होते हैं जिनके दिल में राजनैतिक विचारधारा की जगह राष्ट्रीय लोकतांत्रिक विचारधारा होती है और वह सभी राजनैतिक दलों के साथ ही आम नागरिकों को संवैधानिक अधिकार प्रदान कराते हैं। इधर कुछ महामहिम राज्यपालों पर राजनैतिक छीटाकशी होने तथा उन पर सत्ता के इशारे पर फैसले लेने के आरोप लगने लगे हैं जबकि दोनों पद लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र के प्रमुख अंग माने जाते हैं। अभी दो दिन पहले बुधवार को जम्मू कश्मीर में चल रहे राष्ट्रपति शासन की अवधि पूरी होते देख एक बार पुनः राजनैतिक दलों को सरकार गठन करने का दावा पेश करने के निर्देश दिये गये थे।यहाँ पर भाजपा के सहयोग से चल रही महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली सरकार समर्थन वापस लेने के कारण अपदस्थ हो गई थी और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। उस समय भाजपा को ऐसा लगा था कि जैसे महबूबा मुफ्ती अपने देश विरोधी काश्मीरी ऐजेंडे को महत्व देकर देशविरोधी लोगों को बचाने और देश को कमजोर कर उनके ऐजेंडे को दबा रही हैं क्योंकि उन्होंने ऐलानिया कहा था कि हमने पत्थरबाज काश्मीरियों के बचाव के लिए भाजपा से साथ किया था। इस बार भी जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने के लिए सभी दलों ने अपने अपने अपने दावें सारी राजनैतिक दुश्मनी को भुला कर एकजुट होकर पेश किया था।महबूबा मुफ्ती वाली पीडीपी ने इस बार अंतिम दौर में सत्ता में पुनः वापसी के लिए सपा बसपा की तरह सारी दुश्मनी भुलाकर कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करने की तैयारी की थी और भाजपा भी सरकार बनाने के लिए दावा कर रही थी। सारे राजनैतिक दलों की गतिविधियों को देखते हुए महामहिम राज्यपाल ने गृहमंत्री से मिलकर राष्ट्रपति शासन की संस्तुति कर दी है। इधर महामहिम के इस फैसले से महबूबा मुफ्ती वाला गठबंधन सकते और गुस्से में आ गया है और उसका मानना है कि जानबूझकर उन्हें सरकार बनाने का अवसर न देकर राष्ट्रपति शासन की संस्तुति कर दी गई हैं। महबूबा मुफ्ती का कहना है कि उन्होंने महागठबंधन होने तथा सरकार बनाने के लिए दावे की सूचना फैक्स द्वारा राज्यपाल को दी गई थी लेकिन उसे वहाँ पर रिसीव ही नहीं किया गया।जब उन लोगों ने राज्यपाल से मिलने का प्रयास किया तो वह भी नहीं मिले और बताया गया कि वह दिल्ली चलें गये हैं।सभी जानते हैं कि जम्मू कश्मीर समस्या के अबतक हल न हो पाने के पीछे वहाँ के राजनैतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उन्हें राष्ट्रभक्तों के राष्ट्रद्रोहियों से भी तालमेल रखना पड़ता है।राजनीति का ही प्रतिफल है कि वहाँ पर हमारी सेना पर पत्थरबाजी करने तथा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वालों को भूला भटका कहकर माफ कर दिया जाता रहा है। यह जम्मू कश्मीर सरकार की खूबी रही है कि जो भी दल केन्द्रीय सत्ता में आता है वहां की सत्ता उससे जुड़ जाती है ताकि धारा35 ए और धारा 370 के साथ वहां के गलत राह पर चलने वाले लोगों को बचाया जा सके। लोकतंत्र में बहुमत वाले दल अथवा गठबंधन को सरकार बनाने का अवसर मिलना चाहिए इसलिए अगर जानबूझकर उनकी सूचना को रिसीव न करके एकतरफा फैसला लिया गया है तो वह भी लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत और लोकतंत्र की हत्या करने जैसा है।

– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी

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