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श्रीलंका को भारत ने सौंपे डोर्नियर एयरक्राफ्ट, समुद्री सुरक्षा निगरानी में करेगा मदद

भारत ने 77वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में बुधवार को श्रीलंका को आधिकारिक तौर पर डोर्नियर-228 समुद्री निगरानी विमान सौंप दिया। इसकी जानकारी देते हुए एक बयान में, राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यालय ने कहा कि कटुनायके में श्रीलंका वायु सेना अड्डे पर आयोजित एक समारोह में भारत द्वारा विमान को श्रीलंका को सौंप दिया गया।

नौ जनवरी, 2018 को नई दिल्ली में भारत और श्रीलंका के बीच हुई द्विपक्षीय सुरक्षा चर्चा के दौरान, भारत से डोर्नियर प्रकार के समुद्री निगरानी विमानों के संभावित अधिग्रहण पर चर्चा की गई थी। बयान में कहा गया है कि इसका उद्देश्य समुद्री निगरानी में श्रीलंका की क्षमताओं को बढ़ाना है।

श्रीलंका के अनुरोध के जवाब में, भारत सरकार ने इन विचार-विमर्श के दौरान सक्रियता से कदम उठाए और उन्होंने एक डोनियर-228 समुद्री निगरानी विमान, जो भारतीय नौसेना के बेड़े का हिस्सा था, श्रीलंका को दो साल की अवधि के लिए निःशुल्क प्रदान करने का निर्णय लिया। इसकी डिलीवरी के बाद, डोनियर-228 विमान ने पिछले वर्ष श्रीलंका के भीतर विशेष कार्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद, इसे भारत में अनिवार्य वार्षिक रखरखाव सेवाओं के भेजा गया था।

श्रीलंका को विमान के आधिकारिक हस्तांतरण में श्रीलंकाई सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल में राष्ट्रपति के वरिष्ठ सलाहकार और राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ सागला रत्नायका, श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त गोपाल बागले और रक्षा मंत्रालय के सचिव जनरल कमल गुणरत्ने (सेवानिवृत्त) और अन्य अधिकारी शामिल थे।

श्रीलंका में अपने प्रारंभिक आगमन के बाद से, डोनियर-228 समुद्री निगरानी विमान ने कई अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनमें समुद्री और तटीय निगरानी कार्यों के माध्यम से श्रीलंका के हवाई क्षेत्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र की निगरानी और सुरक्षा, खोज और बचाव अभियानों को निष्पादित करना और समुद्री प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण जैसी गतिविधियों का एक स्पेक्ट्रम शामिल है।

भारत ने आगे बढ़कर हमारी मदद की
सागला रत्नायका ने इस अवसर पर कहा कि यह केवल इस विमान के लिए ही नहीं है कि हमें भारत से सहायता मिली है। यह एक दीर्घकालिक संबंध रहा है, लेकिन हाल के दिनों में, जब हम आर्थिक संकट से गुजर रहे थे, भारत ने कर्तव्य की सीमा से आगे बढ़कर हमारी मदद की।

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