नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के गुरुग्राम में अवैध निर्माण से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया है कि न्याय का निष्पक्ष प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए किसी भी व्यक्ति को सुने बिना उसके अधिकारों पर निर्णय नहीं दिया जा सकता।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “न्याय का निष्पक्ष प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। किसी पक्ष को सुने बिना उसके अधिकारों पर फैसला नहीं दिया जा सकता।” हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि किसी आवासीय क्षेत्र में व्यावसायिक उपयोग या निर्माण नियमों का उल्लंघन किया गया है, तो ऐसे अवैध निर्माणों को किसी भी तरह से संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि जो भी व्यक्ति इस आदेश से प्रभावित है, वह निर्धारित समय के भीतर हाईकोर्ट में आवेदन कर सकता है ताकि उसे मामले में पक्षकार के रूप में शामिल किया जा सके। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि इस आदेश की जानकारी व्यापक रूप से दी जाए, ताकि प्रभावित लोग समय रहते अपने पक्ष को रख सकें।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि दो सप्ताह के भीतर प्रभावित व्यक्ति आवेदन नहीं करते, तो हाईकोर्ट स्वतंत्र रूप से मामले की सुनवाई कर सकता है और उचित निर्णय दे सकता है।
बता दें कि इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह हरियाणा डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन ऑफ अर्बन एरियाज एक्ट, 1975 की धारा 15 के तहत कार्रवाई करे। राज्य सरकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि गुरुग्राम के डीएलएफ सिटी क्षेत्र में कई लोगों ने निर्माण नियमों का उल्लंघन किया है, जैसे कि आवासीय मकानों का व्यावसायिक उपयोग, अनुमत सीमा (FAR) से अधिक निर्माण, और अतिरिक्त मंजिलें बनाना।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन मकान मालिकों के लिए राहत लेकर आया है जिन्हें पहले बिना सुने ही अवैध निर्माण हटाने के आदेश से प्रभावित होना पड़ा था।

