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हिजाब भी सिखों की पगड़ी की तरह अहम, पर अधिकार नहीं छीन सकते; अच्छा लगे या ना लगे; बोले सुप्रीम कोर्ट में वकील

कर्नाटक के एक कॉलेज से शुरू हुआ हिजाब मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है और लगातार सुनवाई चल रही है। सातवें दिन की सुनवाई में याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने हिजाब को सही ठहराने के लिए कई तर्क रखे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से सिखों लिए पगड़ी अहम है उसी तरह मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि यह उनका विश्वास है। कोई तिलक लगाना चाहता है, कोई क्रॉस पहनना चाहता है तो यह उनका अधिकार है और यही सामाजिक जीवन की सुंदरता है।

दवे ने जब कहा कि क्या किसी के हिजाब पहनने से देश की अखंडता और एकता को नुकसान पहुंचता है? इसपर जस्टिस धूलिया ने कहा कि ऐसा किसी ने कहा है। यहां तक कि हाई कोर्ट के फैसले में भी यह नहीं कहा गया। इसके बाद दवे ने कहा कि अंत में यह केवल एक एक प्रतिबंध है। जस्टिस धूलिया ने कहा कि यहां आपका तर्क विरोधाभासी हो सकता है क्योंकि अनुच्छेद 19 के तहत हिजाब को सही बताया जा रहा है तो यह केवल  आर्टिकल 19 (2) के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है। 

बता दें कि जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। वकील दवे ने कहा कि हिजाब पहनने से किसी की भी भावनाओं को चोट नहीं पहूंचती है और यह मुस्लिम महिलाओं की पहचान से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि एक तरफ संविधान स्वतंत्रता की बात करता है तो दूसरी तरफ सरकारें प्रतिबंध की। 

क्यों दिया अकबर का उदाहरण?
दुष्यंत दवे ने कोर्ट में कहा कि हाल यह है कि कोई युवक और युवती अगर हिंदू और मुस्लिम है और वे साथ में जीवन गुजारना चाहते हैं तो लोगों को इससे भी परेशानी है। हालांकि भाजपा के भी कई बड़े मुस्लिम नेताओं की जीवनसथी हिंदू हैं। मुगल बादशाह अकबर की भी पत्नी हिंदू राजपूत थीं। अकबर ने तब भी उन्हें भगवान कृष्ण की पूजा करने की इजाजत दी थी और मंदिर भी बनवाया था। 

कोर्ट में किसे निशाना बना रहे थे दवे?
दुष्यंत दवे ने कहा कि बहुत सारे लोग चाहते हैं कि गांधी को भूल जाया जाए और केवल सरदार  पटेल को याद रखा जाए। हालांकि सरदार पटेल धर्म निरपेक्ष व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि दुनियाभर के इस्लामिक देशों में अब तक 10 हजार से ज्यादा आत्मघाती हमले हुए हैं लेकिन भारत में ऐसा केवल एक। इसका मतलब है कि अल्पसंख्यकों का भारत में यकीन है। अखबार पढ़ने पर रोज ही पता चलता है कि ईराक और सीरिया में बम धमाका हुआ लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता। 

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