-रवि जी. निगम

जनता पूछे ये सवाल…
आज जिस तरह से बिहार में पीएम की रैली के एक दिन पूर्व चुनावी घोंषणाओं और वादों का ऐलान किया गया, सबसे पहले केंद्र सरकार ये बताये कि ये घोंषणा केंद्र सरकार की घोंषणा है या किसी पार्टी पक्ष की घोंषणा है ?
क्या केंद्र सरकार ये बतायेगी कि प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति सरकार की उपलब्धिता को एक विशेष पार्टी/पक्ष की उपलब्धिता बताने के लिये, उन्हे संवैधानिक अधिकार प्राप्त है ?
और यदि ऐसा संविधान में कोई प्रावधान नहीं है तो क्या ये संविधान का उल्लंघन नहीं है या ये भूलवश ऐसा कार्य किया जाता है या फिर जान बूझकर ऐसा करते हैं ?
क्या ये संवैधानिक पद का दुर्पियोग नहीं है ? क्या ऐसे लोगों को संवैधानिक पद का त्याग नहीं कर देना चाहिये और पूरी तनमयता के साथ अपने पार्टी/पक्ष या संगठन को मजबूत करने के लिये स्वतंत्र नहीं हो जाना चाहिये ?
क्या सुप्रीम कोर्ट जो हमारे देश के सर्वोच्च संस्थानों में से एक संस्थान हैं क्या आज उसे इस विषय पर स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिये ?
जब कोरोना को लेकर मुफ्त इलाज़ और टेस्टिंग की बात सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गयी थी तो केंद्र ने अपनी दलील देकर उससे इंकार कर दिया था तो आखिर क्यों ?
आज सत्ता हथियाने के लिये अब अप्रत्यक्ष रूप से इसका इस्तेमाल वोट खरीदने के लिये नहीं किया जा रहा है ? क्या ये केंद्र सरकार की ऐसी मंसा को नहीं दर्शाती है ?
लेकिन सबसे अफ़शोस जनक तो ये है कि जब पूरा देश कोरोना महामारी से कराह रहा है और एक लाख पंद्रह हज़ार से ज्यादा लोगों ने इस महामारी से जान गवां दी हो और ऐसे हालातों में मात्र एक राज्य को ये कह कर वादा किया जाये कि वो (बिहार की जनता) यदि बीजेपी की सरकार बनाती है तो पूरे बिहार को कोरोना का मुफ़्त वैक्सीन का टीका लगायेगी ऐसा ऐलान आखिर क्यों ?
क्या केंद्र की सरकार बिहार के लोगो द्वारा ही सिर्फ चुनी गयी सरकार है ? क्या बिहार के अलावा अन्य राज्य भारत का हिस्सा नहीं है ?
तो क्या अन्य राज्यों की जनता को केंद्र सरकार पडोसी देश पाकिस्तान या चाइना की जनता समझती है ? तो देश की बाकी जनता अपनी जान बचाने की क्या अपने पडोसी देश से गुहार लगाये ?
और क्या यदि बिहार में यदि बीजेपी की सरकार नहीं बनी तो क्या वो इससे वंचित रहेगी ? क्या सम्पूर्ण देश में यही नियम लागू है जहाँ बीजेपी की सरकार है सिर्फ उन्ही राज्यों में वो भी उनके शुभचिंतक ही उसकी अनुकम्पा से लाभांवित होंगे ? बाकी देश द्रोही हैं या पडोसी देश के नागरिक हैं ?
आज ये देश भक्त मीडिया केंद्र सरकार से ये क्यों नहीं पूंछती कि जब देश के भीतर प्रवासी मजदूर, छात्र/छात्रायें व जनता अन्य राज्यों में फंसी थी तब वहाँ किसकी सरकार थी और आज किसकी सरकार है ?
तब उस वक्त जब बिहार की जनता देश के अन्य हिस्सो से पैदल पलायन करने पर मजबूर थी और बिहार की बेटी 1600 किलो. मी. अपने बीमार पिता को सायकल पर लेकर पहुंची थी तब इन बीजेपी के नेताओं के दिल क्यों नहीं पसीज रहे थे ?
बेचारी जनता भूंख प्यास से तडफ कर बीच रास्ते में अपने प्राण त्याग रहे थे और सडक दुर्घटना व ट्रेन से कट्कर दम तोड रही थी, तब क्या केंद्र या राज्य में उसकी सरकार नहीं थी, तब उन्हे मरने के लिये अकेला क्योंकर छोड दिया गया था ?
तो क्या विपक्षियों ने ट्रेन / बस चलाने की अनुमति नहीं दी थी या फिर उनके पास उन्हे भेजने के उपाय नहीं सूझ रहे थे ? तो क्योंकर उन उपायों का समय रहते सदउपयोग किया गया ? यदि समय रहते उन्हे उनके घर पहुंचा दिया गया होता तो क्या बिहार या अन्य राज्य की इतनी स्थिति खराब होती ?
जितनी स्थिति बिहार या अन्य राज्य की खराब हुई थी, तो लॉकडाऊन के वक्त वर्तमान सरकार ने कोरोना से निपटने के पूरे इन्तजाम क्यों नहीं किये ? जिसकी वजह से बिहार के अस्पतालों से लेकर क्वॉरेंटीन सेंटर की दुर्दशा के कारण वहाँ की जनता त्राहिमाम करते नजर आयी थी तो वो नितिश/बीजेपी सरकार की जिम्मेदारी नहीं थी ?
क्या बीजेपी अभी वहाँ पर अपनी सरकार नहीं मानती है वो क्या वहाँ पर वर्तमान सरकार को सिर्फ नितिश सरकार मानती है ? तो क्या अब वो अपनी बीजेपी की सरकार को बनाने के एजेंडे पर कार्य कर रही है ?
क्योंकि देश भक्त मीडिया इस पर कोई सवाल उठायेगा नहीं, क्योंकि फिलहाल मीडिया के लिये ये ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन बटोरने का सीजन चालू है इस लिये क्या…? जो सरकारी विज्ञापनों और अन्य विज्ञापनों की जो झडी लगी है ये देश की जनता ही इसे देखती है और सनझती भी है….