ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में दायर वाद पर वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने सोमवार को अपना फैसला सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला जज ने सबसे पहले केस की मेरिट पर सुनवाई की। मुस्लिम पक्ष यानी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की तरफ से 7 रूल 11 (7/11) के प्रार्थना पत्र पर अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनी। मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को आधार बनाया था और कहा था कि ऐसे मुकदमे कोर्ट में दायर नहीं किए जा सकते हैं। बहस के बाद मुस्लिम पक्ष की दलील को अदालत ने खारिज कर दिया है। आइए जानें 7 रूल 11 और प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्या है?
7 रूल 11 क्या है
आम भाषा में अगर ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 को समझा जाए तो इसके तहत कोर्ट किसी केस में तथ्यों की मेरिट पर विचार करने के बजाए सबसे पहले ये तय करता है कि क्या याचिका सुनवाई करने लायक है या नहीं। जो राहत की मांग याचिकाकर्ता की ओर से मांगी जा रही है, क्या उसे कोर्ट द्वारा दिया भी जा सकता है या नहीं। अगर कोर्ट को ये लगता है कि याचिका में मांगी गई राहत दी ही नहीं जा सकती तो कोर्ट केस की मेरिट पर जाने के बजाए बिना ट्रायल के ही याचिककर्ता को सुनने से इनकार कर सकता है।
रूल 7 के तहत कई वजह है, जिनके आधार पर कोर्ट शुरुआत में ही याचिका को खारिज कर देता है। मसलन अगर याचिकाकर्ता ने वाद को दाखिल करने की वजह स्पष्ट नहीं की हो या फिर उसने दावे का उचित मूल्यांकन न किया हो या उसके मुताबिक कोर्ट फीस न चुकाई गई हो। इसके अलावा जो एक महत्वपूर्ण आधार है वो है कि कोई कानून उस मुकदमे को दायर करने से रोकता हो।
क्या कहता है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
1991 में लागू किया गया प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी। यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था।
मस्जिद कमेटी का पक्ष
सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद कमेटी के वकील का कहना था कि हिंदू पक्षकारो की ओर से सिविल कोर्ट में दायर मुकदमें को सुना ही नहीं जाना चाहिए, क्योंकि 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट ऐसे मुकदमो का दाखिल करने से रोकता है। इस कानून के मुताबिक देश में किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप वही रहेगा जो 15 अगस्त 1947 को था। इसे बदला नहीं जा सकता।
मस्जिद कमेटी का कहना है कि जब ऑर्डर 7 रूल 11 का हवाला देकर कोर्ट का रुख किया गया तो कोर्ट को सबसे पहले उसे सुनना चाहिए था, लेकिन इसके बजाए कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे और बाद में शिवलिंग के दावे वाली जगह को सील करने का आदेश दे दिया, ये गलत है। इसके बाद मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वो मस्जिद कमेटी की याचिका अपने पास पेंडिंग रखेंगे। साथ ही जिजा जज को निर्देश दिया था कि वो सबसे पहले मस्जिद कमेटी की सिविल प्रोसीजर कोड के ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करेंगे।