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Tuesday, October 3, 2023

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चीन कमा रहा माल EU और रूस की जंग में, कैसे ठगे जा रहे यूरोपीय देश जानिए

यू्क्रेन के ऊपर रूस के हमला करने के बाद यूरोपियन संघ ने रूस से गैस सप्लाई पर बैन लगा रखा है। हालांकि अंदर की बात यह है कि यूरोपियन संघ में गैस रूस की ही पहुंच रही है। बदलाव सिर्फ इतना आया है कि अब यह चीन के रास्ते होकर पहुंच रही है। सीधे शब्दों में कहें तो ईयू को अपनी गैस बेचने में नाकाम रूस, चीन को जरिया बना रहा है। इस तरह उसकी गैस की सप्लाई भी बाधित नहीं हो रही है और उसे मुनाफा भी हो रहा है। वहीं बीच में सौदेबाजी करके चीन भी कमाई कर रहा है। शायद यही वजह है कि रूस-चीन गैस पाइपलाइन की योजना भी नया रूप ले रही है।

दिसंबर 2019 से हो रही है गैस सप्लाई
वैसे तो रूस के ऊर्जा मंत्री एलेक्जेंडर नोवाक ने इस साल की शुरुआत में ही डैमेज हुई नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस लिंक को रिप्लेस करने के बारे में स्पष्ट किया था। रूस से चीन को प्राकृतिक गैस की सप्लाई की शुरुआत दिसंबर 2019 में की थी। यह सप्लाई रूसी गैस कंपनी गजप्रॉम और चीन की नेशनल पेट्रोलियम कारपोरेशन के बीच 2014 में हुए 400 बिलियन डॉलर के कांट्रैक्ट के तहत शुरू हुई थी। यह कांट्रैक्ट 30 साल के लिए साइन किया गया था और रूस 10 बिलियन क्यूबिक मीटर कीमत की प्राकृतिक गैस चीन को सप्लाई कर चुका है। रूस से मिली इस गैस का इस्तेमाल, उत्तरी-पूर्वी चीन के हिलांगजैंग प्रांत, बीजिंग और तियांजिन में हुआ है। 

पूरी होने वाली है गैस पाइपलाइनअब चीन और रूस एक नई गैस पाइपलाइन को पूरा करने के कगार पर है। इसके जरिए साइबेरिया से शंघाई को गैस सप्लाई की जाएगी। रूस की तरफ इस पाइपलाइन को पॉवर ऑफ साइबेरिया कहा जा रहा है। 3000 किमी लंबी यह पाइपलाइन पूर्वी साइबेरिया से पूर्वी चीन में शंघाई के बीच होगी। इसका शुरुआती परीक्षण 25 अक्टूबर को होगा, जिसमें प्रेशर टेस्ट किया जाएगा। पाइपलाइन चीन के पूर्वी तट से होती हुई राजधानी बीजिंग और फिर शंघाई तक पहुंचेगी। चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक इसके मिडिल फेज की शुरुआत दिसंबर 2020 में हुई थी जबकि फाइनल दक्षिण पार्ट 2025 में गैस डिलीवरी की शुरुआत करेगा।तब भविष्य का नहीं था पताजब 2014 में गजप्रॉम और चीन की नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के बीच 2014 में गैस सप्लाई को लेकर समझौता हुआ था तब किसी ने नहीं सोचा था कि 2022 में इसका भविष्य क्या होगा। आज यूक्रेन से युद्ध के चलते रूस यूरोपियन संघ और सहयोगी देशों से प्राकृतिक गैस डिलीवरी का करार खोने के कगार पर है। अगर ऐसा हुआ तो रूस के दो तिहाई गैस खरीद पर असर होगा। वहीं, दूसरी तरफ चीन ऊर्जा स्रोतों को लेकर दूसरी तरफ भी देख रहा है। उधर 2019 से चल रही गैस सप्लाई का वॉल्यूम रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ाया गया है। ऐसे में यह चीन द्वारा रूस की कमजोरी का फायदा उठाने की एक रणनीति लग रहा है। चीन के पास तुर्कमेनिस्तान जैसे अन्य सप्लायरों से भी प्राकृतिक गैस आयात का विकल्प है।

मंगोलिया के रास्ते नई पाइपलाइनचीन और रूस एक और पाइपलाइन बनाने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। उम्मीद है कि यह मंगोलिया से होते हुए जाएगी और नैचुरल गैस के ट्रांसपोर्टेशन में समय और लागत में कमी लाएगी। एक तरफ जहां पॉवर ऑफ साइबेरिया-1 पूर्वी चीन से होकर जाती है, वहीं नई पाइपलाइन मंगोलिया से होकर हाने का अनुमान है। यह यमल-नेनेट्स क्षेत्र से मंगोलिया और चीन तक जाएगी, जो 50 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस हर साल सप्लाई करेगी। इसे पॉवर ऑफ साइबेरिया-2 के नाम से जाना जाएगा। इसको बनाने की तैयारी 2024 के अंत या 2025 की शुरुआत में हो सकती है और इसके 2030 तक कंप्लीट होने का अनुमान है। रुबेल और युआन में ट्रांजैक्शनगजप्रॉम और चीन नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने एक दूसरे को रुबेल और युआन में पे करने का समझौता किया है। इसके पीछे मंशा अमेरिकी डॉलर और यूरो पर निर्भरता कम करना है। गजप्रॉम के सीईओ एलेक्सी मिलर ने एक बयान में कहा कि यह दोनों देशों के लिए लाभदायक, समयबद्ध, भरोसेमंद और प्रैक्टिकल सॉल्यूशन होगा।

क्या चीन रूस की गैस ईयू को सप्लाई कर रहा है?जानकारी के मुताबिक यूरोप की गैस स्टोरेज चीन के एलएनजी एक्सपोर्ट चलते फिलहाल 80 फीसदी तक भरी हुई है। चीन और चीनी एलएनजी कंपनियों के एक्सपोर्ट का आंकड़ा दिखाता है कि यूरोपियन यूनियन को रूस की सप्लाई बंद होने के बाद इसमें इजाफा हुआ है। रिपोर्ट बताती हैं कि यूरोपियन संघ के जरूरत की 7 फीसदी गैस चीन से आयात हो रही है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या चीन रूस से गैस लेकर उसे यूरोपिय संघ को बेच रहा है? अगर ऐसा होता रहा तो रूस चीन को और ज्यादा गैस सप्लाई कर सकता है। ऐसे में एक तरफ रूस का गैस निर्यात भी होता रहेगा और चीन उसे री-सेल करके मुनाफा कमाता रहेगा। डिप्लोमैटिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि रूस इस हालात का इसी तरह से फायदा उठा सकता है। हालांकि यह कितना लंबा चलेगा यह कहना मुश्किल है क्योंकि यूरोपियन संघ के पास नॉर्वे, तुर्कमेनिस्तान, कतर, इजरायल और ईरान जैसे दूसरे विकल्प भी हैं।

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