चीन की सत्ता पर काबिज होने के 10 साल में ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग दुनिया के ताकतवर नेताओं में से एक बन गए हैं। बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं नेशनल कांग्रेस के उद्घाटन के मौके पर शी जिनपिंग ने आगे के वर्षों की आक्रामक रणनीति की तरफ इशारा कर दिया है। माना जा रहा है कि अगले पांच साल के लिए भी उनके हाथ में सत्ता की कमान सौंप दी जाएगी। या यूं कहें कि वह इतने ताकतवर हो गए हैं कि उनके हाथ से सत्ता लेकर किसी और को सौंपना फिलहाल किसी के वश में ही नहीं है।
शी जिनपिंग पार्टी के जनरल सेक्रटरी तो हैं ही साथ ही चाइना मिलिट्री कमीशन (CMC) के अध्यक्ष हैं। रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि माओ जेडोन्ग के बाद सबसे ताकतवर नेता के रूप में शी जिनपिंग उभरे हैं। वह चीन के संस्थापक माओत्से तुंग से ज्यादा शक्तिशाली हो गए हैं। बता दें कि शी जिनपिंग का कार्यकाल मार्च 2023 में समाप्त हो रहा है। हालांकि वह फिर से पांच साल के लिए राष्ट्रपति बन सकते हैं।
विरोधियों को रौंदकर आगे निकले जिनपिंग
माओ की मौत के बाद चीन के लोगों ने सोचा था कि अब इस तरह सत्ता का केंद्रीकरण कभी नहीं होने देंगे। इसके लिए एक रिटायरमेंट एज और कार्यकाल की सीमा निर्धारित की जाएगी। इसके अलावा आसानी से सत्ता के स्थानांतरण की भी व्यवस्था की जाएगी। हालांकि शी जिनपिंग ने इन सब बातों को गलत साबित कर दिया है। 69 साल के जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी पर 10 सालों में काफी मजबूत पकड़ बना ली है। उन्होंने अपने विरोधियों को भ्रष्टाचार के आरोपों में दबा दिया।
पूरी दुनिया में जासूसी का जालशी जिनपिंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी में पूरे देश में जासूस बैठा दिए । इसके अलावा दुनिया के ज्यादातर देशों में चीन ने जासूसी का जाल बिछा रखा है। भारत समेत कई देशों में चीन के जासूस पकड़े भी गए हैं। वहीं बात करें मानवाधिकार की तो चीन पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। अपने भाषण में भी शी जिनपिंग ने उइगर मुसलमानों का जिक्र तक नहीं किया। शी जिनपिंग की अगुआई में चीन की विदेश नीति भी काफी आक्रामक रही है। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल से ही चीन और अमेरिका के बीच की नोकझोक जग जाहिर है। वहीं जापान को लेकर भी चीन आक्रामक ही रहता है। जिनपिंग के कार्यकाल में ही दक्षिण कोरिया ने भी काफी विरोध झेला। अब चीन ताइवान और हॉन्गकॉन्ग को लेकर आक्रामक है। बीते दिनों ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन एक बार फिर आमने सामने आ गए थे। चीन कई बार मिलिट्री ड्रिल भी कर चुका है।