दक्षिण कोरिया में शनिवार को हैलोवीन के दौरान हादसे में 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। अब इस हादसे से जुड़ी दूसरी डिटेल्स सामने आने लगी हैं। जिस वक्त सियोल में यह हादसा हुआ था, तीन ऑफ ड्यूटी अमेरिकी सोल्जर्स भी वहां मौजूद थे। हादसे में यह तीनों अमेरिकी जवान बाल-बाल बच गए हैं। अब इन सोल्जर्स ने हादसे के दौरान इटेवॉन शहर का मंजर बयां किया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने करीब 27,000 सोल्जर्स को दक्षिण कोरिया में तैनात किया हुआ है। इन्हीं में से तीन अमेरिकी सिपाही अपने वीकऑफ के दौरान फेस्टिवल में पहुंचे थे, जब यह हादसा हो गया।
सुरक्षा इंतजाम था कम
इन अमेरिकी जवानों ने बताया कि लाखों की भीड़ यहां पर जुटी हुई थी और उस हिसाब से सिक्योरिटी बहुत कम थी। जवानों के मुताबिक वह भी गली में नीचे उतर रही भीड़ का हिस्सा थे। इन जवानों में एक हैं 40 साल के जेरेमी टेलर। टेलर ने बताया कि जो लोग ऊपर थे वह जल्दी से जल्दी नीचे आना चाहते थे। गली पूरी तरह से जाम हो चुकी थी। इसके बाद लोग अचानक से एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे। टेलर बताते हैं कि ऐसा लग रहा था कि गली में इंसानों की परत जैसी बिछ गई थी। लोगों की मदद करने के लिए वहां कोई मौजूद नहीं था। इसके चलते समस्या और ज्यादा हो गई।
पैनिक करने से बिगड़े हालात
अमेरिकी सिपाही टेलर ने बताया कि भीड़ में मौजूद लोग पैनिक करने लगे थे और इसके चलते हालात और ज्यादा बदतर हो गए। लोग चीख रहे थे। हर तरफ शोर-शराबा था और किसी की आवाज तक सुनाई नहीं दे रही थी। टेलर के मुताबिक वह और उनके दोस्त लोगों की मदद की कोशिश में लगे थे। गली से लोगों को उठाकर बाहर पहुंचा रहे थे, जहां उनकी जान बचाने के लिए सीपीआर दिया जा रहा था। एक अन्य अमेरिकी सोल्जर 32 साल के डेन बीदर्ड ने बताया कि हम लोग भी काफी ज्यादा नर्वस हो रहे थे। हम भीड़ के बिल्कुल बीच में थे। हमने पूरी रात लोगों को बाहर निकालने में मदद की। बीदर्ड के मुताबिक इंसानों की करीब 15 फीट ऊंची परत बन गई थी।
20 से कम उम्र की महिलाएं ज्यादा शिकार
वहीं, अथॉरिटीज का कहना है कि हादसे के शिकारों में ज्यादातर 20 साल की उम्रवाली महिलाएं हैं। 34 साल के जेरोमी ऑगस्टा ने बताया कि कुचले गए लोगों में ज्यादातर महिलाएं हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं की लंबाई चूंकि कम थी, इसलिए वह दब गईं। साथ ही, यह लोग बहुत ज्यादा घबरा रही थीं। वहीं, इस मौके पर सुरक्षा इंतजाम भी सवालों के घेरे में है। हादसे की शुरुआत में पुलिस और इमरजेंसी वर्कर्स ना के बराबर थे। इसके चलते लोगों को मदद मिलने में भी देरी हुई और इससे मरने वालों की संख्या भी ज्यादा हुई।