26 C
Mumbai
Saturday, March 25, 2023

आपका भरोसा ही, हमारी विश्वसनीयता !

नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड को सुप्रीम कोर्ट ने भेजा ‘कारण बताओ नोटिस’, 5000 लोगों की हत्या का मामला

नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के खिलाफ कारण बताओं नोटिस जारी किया है। देश में एक दशक तक चले माओवादी विद्रोह के दौरान पांच हजार लोगों की हत्या के मामले में प्रचंड की भूमिका की जांच के लिए रिट याचिकाएं दायर की गई हैं, जिस पर अदालत ने यह आदेश दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने बताया कि वकील ज्ञानेंद्र आरन और माओवादी विद्रोह के अन्य पीड़ितों द्वारा लाई गई याचिका मंगलवार को दर्ज की गई। वकील आरन और बुधथोकी ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग रिट याचिकाएं दायर कर मांग की कि एक दशक लंबे माओवादी विद्रोह के दौरान कम से कम पांच हजार लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार होने की बात स्वीकार करने के लिए प्रचंड की जांच की जाए और मुकदमा चलाया जाए। 

न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा की एकल पीठ ने शुक्रवार को प्रारंभिक सुनवाई के दौरान प्रधानमंत्री सहित प्रतिवादियों को 15 दिनों के भीतर लिखित जवाब देने का आदेश दिया कि वास्तव में क्या हुआ था और याचिकाकर्ताओं की मांग के अनुसार आदेश क्यों न जारी किया जाए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतरिम आदेश जारी करना जरूरी नहीं है, क्योंकि मौजूदा संदर्भ में आदेश पारित करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि अदालत प्रधानमंत्री प्रचंड (68 वर्षीय) को गिरफ्तार करने के लिए अंतरिम आदेश जारी करे। 

‘काठमांडू पोस्ट’ अखबार की खबर के अनुसार, आदेश में आगे कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों, अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं और संक्रमणकालीन न्याय वितरण के संबंध में शीर्ष अदालत के फैसलों के संबंध में याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए विभिन्न सवालों को अंतिम सुनवाई के माध्यम से ही हल करना उचित होगा।

15 जनवरी, 2020 को  काठमांडू में माघी उत्सव समारोह को संबोधित करते हुए प्रचंड ने कहा था कि वह एक दशक लंबे विद्रोह का नेतृत्व करने वाली माओवादी पार्टी के नेता के रूप में 5000 लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेंगे और राज्य को शेष मौतों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। एक दशक तक चले विद्रोह के दौरान करीब 17,000 लोगों की जान जाने का अनुमान है। प्रचंड ने ‘पीपुल्स वॉर’ के नाम पर एक दशक तक सशस्त्र संघर्ष छेड़ा था।

अदालत ने 14 नवंबर को प्रशासन से प्रचंड के खिलाफ याचिकाएं दर्ज करने से इनकार करने पर स्पष्टीकरण देने को कहा था। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश हरि कृष्ण कार्की की एकल पीठ ने इस बारे में रिपोर्ट मांगने का फैसला किया था कि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने वकीलों द्वारा दायर याचिकाओं को दर्ज करने से इनकार क्यों किया था।

हालांकि, तीन मार्च को शीर्ष अदालत ने अपने प्रशासन को दहल के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने का आदेश दिया था और कहा था कि आपराधिक न्याय प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता, इसे किसी भी बहाने से अप्रभावी या निष्क्रिय नहीं बनाया जा सकता। 

पीड़ितों ने अपनी याचिकाओं में अदालत से मांग की है कि दहल के खिलाफ उन हत्याओं के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाए, जिनके लिए वह खुद जिम्मेदार थे। 13 फरवरी 1996 को शुरू हुआ विद्रोह आधिकारिक तौर पर 21 नवंबर 2006 को तत्कालीन सरकार के साथ एक व्यापक शांति समझौते के बाद समाप्त हो गया था। इस बीच, माओवादी नेताओं की मंगलवार को बैठक हुई। ये नेता तीन सूत्री निर्णय पर पहुंचे, जिसमें शांति समझौते के खिलाफ किसी भी गतिविधि का विरोध और मुकाबला करना शामिल है।

Latest news

ना ही पक्ष ना ही विपक्ष, जनता के सवाल सबके समक्ष

Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here