29 C
Mumbai
Wednesday, March 29, 2023

आपका भरोसा ही, हमारी विश्वसनीयता !

एक बड़ा जुआ ऑस्ट्रेलिया ने खेला है, अगर बदला अमेरिकी रुख तो होगा बड़ा नुकसान

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस हफ्ते ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया- यूनाइटेड किंगडम- यूनाइटेड स्टेट्स) सुरक्षा करार को सार्वजनिक करते हुए कहा- ‘ऑकुस का एक ही बड़ा मकसद है- वो यह कि तेजी से बदल रही विश्व स्थितियों के बीच इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे।’

लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक तीन देशों के बीच हुए इस करार का प्रमुख उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ रही ताकत को नियंत्रित करना है। इस करार के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी उपलब्ध कराने में अमेरिका और ब्रिटेन मदद करेंगे। इन पनडुब्बियों को पाने के लिए ऑस्ट्रेलिया 245 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करेगा। बीते 30 वर्ष में किसी रक्षा परियोजना में ऑस्ट्रेलिया ने इतनी रकम खर्च नहीं की है। इसके अलावा 65 वर्षों में यह पहला मौका है, जब अमेरिका ने पनडुब्बी की परमाणु संचालन तकनीक किसी अन्य देश को देने का फैसला किया हो। 65 साल पहले उसने यह टेक्नोलॉजी ब्रिटेन को दी थी।

लेकिन इस करार से ऑस्ट्रेलिया के रक्षा रणनीतिकारों का एक हिस्सा चिंतित है। उनका कहना है कि इस करार में शामिल होकर ऑस्ट्रेलिया ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति की कीमत पर एक बड़ा जुआ खेला है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व उप विदेश मंत्री ह्यूज ह्वाइट ने कहा है- ‘ऑकुस अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहे, इस बात की संभावना अब और अधिक बढ़ गई है। हमारी पनडुब्बियों की भावी क्षमताओं को लेकर गहरा संदेह है।’

इस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया अमेरिका में बनी वर्जिनिया क्लास की तीन पनडुब्बियां खरीदेगा। इसके अलावा उसके पास दो और पनडुब्बियां खरीदने का विकल्प भी रहेगा। खरीदी जा रहीं पनडुब्बियां ऑस्ट्रेलिया के पास अभी मौजूद कॉलिन्स क्लास की पनडुब्बियों की जगह लेंगी, जो 2036 में रिटायर्ड होने वाली हैं।

इस बीच ऑस्ट्रेलिया ब्रिटेन के साथ मिल कर एसएसएन-ऑकुस पनडुब्बियों को विकसित करने के प्रयास में जुटेगा। ये पनडुब्बियां ब्रिटिश डिजाइन पर आधारित होंगी, जिनमें अमेरिकी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा। लक्ष्य है कि 2040 से ऐसी इस श्रेणी को दो पनडुब्बी हर साल बन कर तैयार होगी और यह क्रम 2050 के दशक तक जारी रहेगा।

लेकिन विशेषज्ञों की राय में इन उद्देशों के पूरा होने की राह में अभी रुकावटें हैं। मनोश यूनिवर्सिटी में परमाणु राजनीति की विशेषज्ञ मारिया रोस्ट रुबली ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम को बताया कि अभी इस करार का अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की दो समितियां परीक्षण करेंगी। रुबली ने कहा कि अमेरिकी संसद वहां की दोनों प्रमुख पार्टियों के टकराव में बंटी हुई है। इसके बीच करार को जल्द मंजूरी मिलने की आशा नहीं रखी जा सकती।

रुबली ने कहा कि इस समझौते से ऑस्ट्रेलिया की संप्रभुता को लेकर गहरी चिंता उठी है। अगर अमेरिका बीच में करार से हट गया, तो ऑस्ट्रेलिया को भारी नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका में अक्सर राष्ट्रपति बदलने के साथ विदेशी मामलों में नीतियां बदल जाती हैं।  

सिंगापुर स्थित एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में रिसर्च फेलॉ कॉलिन कोह स्वी ली ने कहा है कि इस समझौते से ऑस्ट्रेलिया की तकनीकी क्षमता तो बढ़ेगी, लेकिन उससे ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पर बहुत भारी बोझ पड़ेगा। उन्होंने कहा- पनडुब्बी का निर्माण एक जटिल औद्योगिक प्रक्रिया से होता है। अगर ऑस्ट्रेलिया इस प्रक्रिया में माहिर हो गया, तो यह उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।

Latest news

ना ही पक्ष ना ही विपक्ष, जनता के सवाल सबके समक्ष

Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here