एम्स्टर्डम स्थित ईएफएसएएस थिंक-टैंक में एक शोध विश्लेषक मिशेला मुतोवसिएव ने मंगलवार को पाकिस्तान सेना द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन और अत्याचारों का मुद्दा उठाया है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 54वें सत्र के ‘जबरन या अनैच्छिक गायब होने पर कार्यकारी समूह’ के साथ संवाद के दौरान दखल दिया।
उन्होंने कहा, पाकिस्तान के लोगों की दुर्दशा के प्रति आपकी प्रतिबद्धता की हमारा संगठन सराहना करना चाहता है। मिशेला ने पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व पर हमला बोलते हुए कहा, खासतौर पर चिंता का विषय यह है कि राज्य की नीति के हिस्से के रूप में जबरन गायब करने, मनमाने ढंग से हिरासत में लेने, अपहरण और यातना के जरिए मानवाधिकार समर्थकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को लक्षित करते हुए सभी प्रकार के विरोध और अंसतोष के प्रति इसका रवैया है।
मिशेला ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह ने पाकिस्तान में 800 मामलों की जांच की है, लेकिन देश के जबरन गायब होने के मामलों के जांच आयोग ने 8,000 से अधिक मामले दर्ज किए हैं, जबकि पश्तून और बलूच समूहों का दावा है कि ये हजारों में हैं। शोध विश्लेषक ने संयुक्त राष्ट्र को बताया कि ऐसा लगता है कि ये तरीके विकसित हो गए हैं और यहां तक कि विदेशों में पाकिस्तान से असंतुष्ट लोगों की हत्या भी अब कोई अपवाद नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘स्वीडन में साजिद हुसैन, कनाडा में करीमा बलूच, केन्या में अरशद शरीफ और नीदरलैंड स्थित एक पाकिस्तानी ब्लॉगर की हत्या की कोशिश ऐसे मामले हैं।’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी लोग अत्यधिक भय के माहौल में रहते हैं, जिसे सैन्य प्रतिष्ठान लगातार मजबूत कर रहा है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को कानून का शासन लागू करने और समाज के लोकतंत्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए इस परिषद के तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया जाए, जिससे देश के अंदर और बाहर जबरन गायब होने की घटनाओं को समाप्त करने और मानवाधिकारों के लिए सम्मान की गारंटी मिल सके।