संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़े यौन शोषण कांड पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मात्र 20 लाख रुपये (26,000 डॉलर) खर्च कर पर्दा डाल दिया है। यह जानकारी डब्ल्यूएचओ के आंतरिक दस्तावेजों से मिली है। अफ्रीकी देश कांगो में इबोला वायरस के प्रकोप को रोकने के लिए भेजे गए संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों ने 104 महिलाओं का यौन शोषण किया। डब्ल्यूएचओ ने मुआवजे के तौर पर इनमें से प्रत्येक महिला को करीब 20 हजार रुपये (250 डॉलर) दिए और मामले को रफा-दफा कर दिया। यौन शोषण के मामलों को निपटाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रयासों का नेतृत्व डॉक्टर गाया गैमहेवेज ने किया।
डब्ल्यूएचओ के गोपनीय दस्तावेजों में कहा गया था कि ज्ञात पीड़ितों में से करीब एक तिहाई का अब पता भी नहीं लगाया जा सकता है। वहीं, एक दर्जन महिलाओं ने मुआवजे के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। हैरानी की बात यह है कि डब्ल्यूएचओ ने यौन शोषण पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए 16 करोड़ रुपये (20 लाख डॉलर) का एक सर्वाइवर असिस्टेंस फंड बनाया था। इन पीड़िताओं की मदद के लिए इस फंड की एक फीसदी राशि भी खर्च नहीं की गई और महज 20 लाख रुपये खर्च कर मामले को खत्म कर दिया गया। कई पीड़िताओं ने फंड को अपर्याप्त बताया है।
प्रशिक्षण के नाम पर मजदूरी कराई
यूएन अधिकारियों को दंड से छूट को खत्म करने के लिए कोड ब्लू अभियान चलाने वाली पाउला डोनोवन कहती हैं किशर्मनाक यह है कि इस तुच्छ से रकम के लिए भी पीड़िताओं से प्रशिक्षण के नाम पर मजदूरी कराई गई।
शर्मनाक मानक
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कांगो में भोजन की लागत सहित अन्य मानदंडों के आधार पर पीड़िताओं को राहत पैकेज दिया गया है। इसके अलावा पीड़ितों को ज्यादा नकदी नहीं देने के संबंध में वैश्विक नियमों का पालन किया गया है, ताकि नकदी के चलते कोई उन्हें नुकसान न पहुंचा पाए। संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी यौन शोषण के अपराधियों को अब तक सजा दिलाने में नाकाम रही है। मामले की जांच के लिए डब्ल्यूएचओ की तरफ से नियुक्त पैनल ने पाया कि कुल 83 लोग हैं, जिन्होंने यौन शोषण किया, जिनमें 21 डब्ल्यूएचओ कर्मी भी शामिल हैं।