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आगरा के मंटोला बवाल केस में छह आयोजकों को जमानत।

आगरा(यूपी): आगरा के मंटोला बवाल में भीड़ जुटाने के छह आरोपियों ने सोमवार को कोर्ट में समर्पण दिया। पुलिस ने उनके खिलाफ मामूली धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। सुनवाई के बाद सभी को जमानत दे दी गई। समर्पण प्रार्थना पत्र 11 लोगों ने दिया था। पांच आरोपित कोर्ट में हाजिर नहीं हुए।
एक जुलाई को झारखंड में हुई मॉब लिंचिंग के विरोध में मुस्लिम समाज के लोग जामा मस्जिद पर जमा हुए थे। सोशल मीडिया पर बकायदा भीड़ जुटाने के लिए आह्वान किया गया था। एलआईयू ने 150 लोगों के आने की आशंका जताई थी। मौके पर ढाई हजार की भीड़ जुटी थी। ज्ञापन पहले कलक्ट्रेट में दिया जाना था। आयोजकों ने पुलिस से पहले ही सेटिंग कर रखी थी। तय था कि वे मौके पर ही ज्ञापन दे देंगे। कलक्ट्रेट नहीं जाएंगे। इस बात पर भीड़ में शामिल युवा भड़क गए थे। उन्होंने हंगामा किया था।

सदर भट्टी चौराहे पर पथराव हुआ था। छह मुकदमे दर्ज किए गए थे। पुलिस ने दो बार में 26 लोगों को जेल भेजा था। जिनमें से तीन की जमानत हो चुकी है। शेष अभी जेल में हैं।
सोमवार को कोर्ट में समी आगाई, बुंदन मिया, सैयद इरफान, इसरारउद्दीन, किफायतउल्ला, महमूद खां ने समर्पण किया। उनकी ओर से जमानत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता अमीर अहमद, मेहताब खान, मोहम्मद रजा खां, इस्लाम आगई ने तर्क दिए। बताया गया कि इन लोगों को झूठा फंसाया गया है। इन लोगों ने कोई अपराध नहीं किया है। मुकदमा जिन धाराओं में है वे जमानतीय हैं। इसी आधार पर सभी की जमानत मंजूर कर ली गई।
पूरे बवाल में आखिर पिसा कौन?

मंटोला में भीड़ जुटी। दो मिनट पथराव हुआ। लखनऊ तक बवाल मच गया। एसएसपी जोगेंद्र कुमार का ट्रांसफर हो गया। दो दर्जन युवकों को जेल जाना पड़ा। पूरे प्रदेश का तानाबाना जिन्होंने बुना था उनके खिलाफ पुलिस सख्त कार्रवाई की आखिर तक हिम्मत नहीं जुटा पाई। एक भी आयोजक के घर दबिश नहीं दी गई। खास बात यह है कि शांति कमेटी की बैठकों में भी अभी भी उन्हें बुलाया जा रहा है।
मंटोला बवाल में जो युवक जेल में बंद हैं उनके परिजन और रिश्तेदार खफा हैं। चीख-चीखकर बोल रहे हैं कि घटना का असली जिम्मेदार कौन हैं। पुलिस ने भी पहले दिन दनादन छह मुकदमे लिखे।

जब कार्रवाई की बारी तो आई पुलिस उन लोगों के घर ही पहुंच पाई जिनकी कोई सिफारिश नहीं थी। जो अधिकारियों के साथ उठते बैठते हैं। थानों में समझौते कराते हैं। अधिकारी बवाल होने पर उनसे मदद मांगते हैं। भले ही पर्दे के पीछे से वे खेल दूसरा खेल रहे होते हैं। उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
जेल में वे बंद, जिन्हें आंदोलन की भी जानकारी नहीं हैं जिन्होंने न भीड़ बुलाई और न ही उन्हें ये पता था कि आंदोलन क्यों हो रहा है।
सभी आगाई को पुलिस ने आयोजक माना। उनके खिलाफ एक दूसरा मुकदमा आईटी एक्ट का भी दर्ज है। पुलिस ने यह मुकदमा साइबर सेल की रिपोर्ट के बाद लिखा था। इसी मुकदमे में भीम आर्मी के अध्यक्ष चंचल उस्मानी को जेल भेजा गया था। उन्हें भी जमानत मिल चुकी है। जेल में वे युवक बंद हैं जिन्होंने न भीड़ बुलाई और न ही उन्हें ये पता था कि आंदोलन क्यों हो रहा है।

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