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Saturday, July 27, 2024

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आपकी अभिव्यक्ति : ‘मोदी जो मनमोहन को सिखाते थे, उस पर अमल करें…’ । —– उमेश त्रिवेदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों का सांख्यिकी-विश्लेषण अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन उनके बारे में लोकप्रिय थीसिस अथवा परसेप्शन यह है कि देश पर राज करने वाले भारत के सभी पंद्रह प्रधानमंत्रियों में नरेन्द्र मोदी भाषणबाजी में सबसे अव्वल माने जा सकते हैं। दूसरी धारणा यह है कि दो मर्तबा यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सबसे कम बोलने वाले प्रधानमंत्री में शुमार किया जा सकता है। वैसे कांग्रेस के पीवी नरसिंहराव भी अल्पभाषी प्रधानमंत्री थे, लेकिन मोदी की नजर में मनमोहन सिंह सबसे कम बोलने वाले प्रधानमंत्री थे। अपने राजनीतिक भाषणों में मोदी मौन-मोहन सिंह कहकर मनमोहन सिंह की हंसी उड़ाते रहे हैं।
केन्द्र में एनडीए का प्रधानमंत्री बनने के बाद हालात उलटे हो गए हैं। देश के ज्वलंत और विवादास्पद मसलों पर चुप्पी ने मशहूर भाषणबाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी कटाक्षों के घेरे में ले लिया है। सवालों की गंगा उलटी बहने लगी है। मनमोहन सिंह ने ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ की तर्ज पर कठुआ और उन्नाव की बलात्कार की घटनाओं पर मोदी पर प्रहार करते हुए कहा है कि ‘मोदीजी मुझे जो सबक सिखाते थे, उन्हें अब उस पर अमल करना चाहिए।’ इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में सिंह ने कहा था कि ‘मौन मोहन सिंह जैसे बयान मैने जिंदगी भर सुने हैं। मुझे इसकी आदत है। लेकिन मुझ लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपनी उस सलाह का पालन करना चाहिए, जो वो मुझे दिया करते थे। मेरे मीडिया के माध्यम से नहीं बोलने पर वो मेरी आलोचना करते थे। कठुआ या उन्नाव जैसे मसलों पर उन्होंने जो बोला है, उससे अधिक बोलना चाहिए, करना भी चाहिए।’ यूपीए सरकार ने तो निर्भया कांड के बाद कानूनों में सख्ती के कई प्रावधान किए थे। सिंह ने पूछा कि महिला-सुरक्षा, दलितों की पिटाई, बेरोजगारी या लोकतांत्रिक संस्थाओं के दुरुपयोग को रोकने जैसे मसलों पर मोदी की खामोशी की वजह क्या है?
मनमोहन के शांत और संयत कटाक्ष से भाजपा तिलमिला सी गई है। मोदी पर मनमोहन सिंह का कटाक्ष निशाने पर लगा है। उनके पैने कटाक्षों पर पलटवार करते हुए केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि ‘मोदी-राज में देश की ताकत बढ़ी है। इसलिए हमेशा चुप रहने वाले मनमोहन सिंह सवाल नही करें।’ यहां सिंह के कटाक्षों का सीधा जवाब देने में असफल केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सवालों के दाएं-बाएं गलियों से बाहर निकलने का प्रयास करते दिख रहे हैं। अब यह क्या बात हुई कि देश की ताकत बढ़ रही है, इसलिए सिंह को सवाल नहीं पूछना चाहिए…?
मोदी मान-अपमान की लक्ष्मण-रेखाओं को लांघ कर मनमोहन सिंह पर कटाक्ष करते रहे हैं। मोदी ने एक मर्तबा संसद में भ्रष्टाचार के मसलों पर उन्‍हें घेरते हुए प्रहार किया था कि ‘बाथरूम में रेनकोट पहन कर नहाने की महारथ हमें मनमोहन सिंह से सीखना होगी, क्योंकि भ्रष्टाचार की गंगोत्री में रहते हुए भी उन पर कोई आरोप नहीं लगा पा रहा है।’ गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान तो मोदी ने मनमोहन सिंह पर आरोप लगा दिया था ‘वो अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने के लिए पाकिस्तान की साजिश में शरीक हैं।’ इस पर लोकसभा में हंगामा मचने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि वो महज एक चुनावी-भाषण था, जिसे उसी अंदाज में लिया जाना चाहिए।
बहरहाल, मोदी के भाषणों की अपनी बानगी होती है। आकाश में शब्दों के इंद्रधनुष का सम्मोहन बिखेरना उनकी राजनीति का मुख्य औजार है। इसी सहारे उन्हे 2014 में भारी जन समर्थन मिला था। देश का शीर्षस्थ नेता होने के कारण लोग अपने प्रधानमंत्री को गंभीरता से सुनते हैं। भाषणों की मीमांसा में आज भी लोग देश-काल और परिस्थितियों के संदर्भ में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के कोटेशन पेश करते हैं। उनके भाषण के अंशों को लोकतंत्र की आत्म-अभिव्यक्ति माना जाता है। इन नेताओं की गिनती राजनीति में सुभाषित गढ़ने वाले जन-नायकों में होती है। प्रधानमंत्री के नाते पिछले चार सालों मोदी ने जितने भाषण दिए हैं, वो किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा हैं। लेकिन उनके भाषण देश और प्रजातंत्र की धरोहर बन सकेंगे, यह कहना मुश्किल ही है। यह त्रासदी है कि मौजूदा राजनीति में सबसे उत्कट वक्ता होने के बावजूद उनके कथोपकथन या संवादों को लोग जुमला मानने लगे हैं। मितभाषी सिंह के कटाक्ष शब्दों के पेशेवर खिलाड़ी मोदी पर भारी पड़ने लगे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव अक्सर कहा करते थे कि ‘कम बोलना या नहीं बोलना भी मेरी कूटनीति का हिस्सा है। आप इसे कैसे लेते हैं, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता है?’

वैसे मोदी के पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की इतनी खिल्ली नहीं उड़ाई थी, जितना मोदी ने सिंह की उड़ाई है। ‘अपने कहे शब्द भी कभी-कभी वापस लौटकर अपने ही माथे का तिलक करते हैं।’ मोदी के शब्द ही मोदी का मस्तकाभिषेक कर रहे हैं।

– लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।

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