गौर से देखो और पढ़ो ये है सीता की जन्म स्थली, इसके बिना देश और राम अघूरे !!!
क्या सत्ता की लोलुप्ता हम पर इस कदर हावी हो गयी है कि हम धर्म , शास्त्र , और इतिहास का भी चीरहरण करने पर अमादा हो जायें ? हम इतिहास के साथ-साथ धर्म और शास्त्रों के साथ भी अपनी स्वेच्छा से कुछ भी तोड़ मोड़ कर भ्रांति फैलाने में आतुर हो जायें ? क्या ये एक अच्छे समाज की पहचान कराता है , या फिर हम धर्म के ठेकेदारों के ऊपर निर्भर हो कर बैठ जायें , कि वो धर्म और शास्त्र पर जो भी ज्ञान हमें देगें वो शत् प्रतिशत सत्य ही होगा , क्या उन्हे ऐसे विषयों के लिये पूर्ण रूप से स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिये ? जिनकी मंशा मात्र सत्ता हो ? ऐसे लोग क्या देश या समाज के हितकर हो सकते है ?
देश के भीतर किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है , गरीब जनता दो जून की रोटी के लिये मोहताज है , शिक्षित वर्ग डिग्रियाँ लेकर 15 से 20 हजार की नौकरी करने को मजबूर है। वहीं सत्ता के खातिर हम घर्म की आड़ में राजनैतिक रोटियाँ सेकने में लगे हैं। यही नहीं नेपाल के जनकपुर में जानकी मन्दिर के लिये सौ करोड़ खर्चने का ऐलान तक किया जाता, और इतना ही नहीं वहाँ से यात्री बस भी शुरू की जाती है, लेकिन अयोध्या में एक बस स्टैन्ड नही बना सके।
और हमारे सरकार विदेशों में कहीं घर्म स्थल के विकास के लिये कहीं राष्ट्रमंडल खेल के उत्थान के लिये और न जाने किस -किस रुप में अरबों रुपये विदेशों पर न्यौछावर कर देश को विकास के पथ पर अग्रणी होकर आगे ले जाने में जुटे हैं। देश के भीतर पानी के खातिर खून बह जता है , लेकिन इन मूलभूत सुविधा के लिये कुछ भी नहीं ?
यहीं हमारे देश के गरीबों के खून पसीने की कमाई को टैक्स के रूप में वसूल कर विदेशों में सौहरत बटोरी जाती है। लेकिन गरीब मजदूर, किसान और जरूरत मंदो के उत्थान के लिये कितना घन खर्चा जा रहा है ये सिर्फ पन्नों पर ही अंकित मिलेगा।