रिपोर्ट – रवि जी. निगम
मुम्बई (महाराष्ट्र) – शिवसेना का तीस वर्षों के गठबन्धन को तोड़ना सार्थक होता दिख रहा है आज नेहरू सेन्टर पर चल रही बैठक के बीच बाहर आकर NCP प्रमुख शरद पवार ने पत्रकारों से वार्ता करते हुये मुख्यमंत्री पद से पर्दा उठाते हुये कहा कि उद्धव ठाकरे के नाम पर तीनों पार्टियों में सहमति बन गई है, लेकिन इसका ऑफीसियल घोषणा कल तक कर दी जायेगी।
जिस पर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि सायद इस पर उद्धव ठाकरे की भी सहमति मिल गयी होगी क्योंकि इस बैठक से पहले ही शिवसेना के विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे ने साफ कर दिया था कि उद्धव ठाकरे हमारे पक्ष प्रमुख हैं और उन्हे महाराष्ट्र का नेतृत्व करना चाहिये हमारे सभी नेताओं ने भी उन्हे मुख्यमंत्री बनाने की इच्छा जताई है और इस पर फैसला लेने का पूरा अधिकार उन्हे सौंप दिया है।
साथ ही NCP प्रमुख शरद पवार पहले ही दिन से ठाकरे परिवार के साथ खड़े दिखे, लेकिन उन्होने उसे जाहिर तक नही होने दिया कि अब बक्त आ गया है कि जिस तरह उनके दोस्त बाल ठाकरे ने उनकी बेटी सुप्रिया के राजनीतिक सफर के शुरुवात की जानकारी मिलते ही उन्होंने अपनी दोस्ती का फर्ज निभाया था और अब वक्त आ गया है कि वो भी अपने फर्ज को निभाने में कोई कोर कसर बाकी नही रखना चाहते, जिसके लिये उन्होने शिवसेना के स्टैण्ड का समर्थन किया ।
लेकिन वो इसका दुष्प्रभाव अपनी पार्टी पर भी नहीं पड़ने देना चाह रहे थे जिसके लिये उन्होने फूंक-फूंक कदम रखे, ताकि कल को बीजेपी उन पर या उनकी पार्टी पर गठबन्धन के टूटने का ठीकरा न फोड़ दे, जिसके लिये उन्होने कांग्रेस को ढाल बनाकर सामने किया और सही वक्त का इन्तजार करने लगे ताकि बीजेपी ये तौहमत लगा सके कि कांग्रेस एनसीपी की वजह से नहीं बन पायी हमारी सरकार, अतः शरद पवार कहते रहे कि सरकार बनाना हमारा काम नही, जनता ने जनादेश बीजेपी शिवसेना को दिया, हमें विपक्ष में बैठने का जनता ने दिया आशिर्वाद ।
जब राज्यपाल ने बीजेपी को दिया न्यौता तो चुपचाप बैठकर देखते रहे सारा खेल, जब बीजेपी ने सरकार बनाने से किया इन्कार उसके बाद ही उन्होने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनाने के लिये कमर कस ली साथ ही उन्होने ठाकरे परिवार के साथ अपने फर्ज अदा करने का वीणा उठाया और ये साफ किया कि एनसीपी कांग्रेस उद्घव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार गठन के लिये सहमत हो सकते हैं, और आज नेहरू सेन्टर में चली बैठक के बीच बाहर आकर घोषणा कर दी और वहाँ से चले गये और निभा गये अपनी दोस्ती का फर्ज।
अब ये स्पष्ट होता जा रहा है कि राजनीति का चाणक्य आखिर कौन ?