Site icon Manvadhikar Abhivyakti News

आपकी अभिव्यक्ति : जे. ऐ. खान के टूटे फूटे कलम से ।

प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया के पूर्व अध्यक्ष व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कण्डेय काटजू द्वारा पत्रकारों के सम्बंध में राज्यों के सचिवों को पत्र के माध्यम से निर्देश भेजा गया बताया जाता है। फिर ऐसी संस्था के अध्यक्ष के निर्देशों का पालन क्यों नही। अक्सर पत्रकारों के साथ अभद्र व्यवहार व बदसलूकी के साथ अनेक प्रकार के उत्पीड़न के मामले प्रकाश में आते है। प्रेस काउंसिल ऑफ इण्डिया ऐसी संस्था है जिसके खिलाफ किसी अदालत में वाद नही दाखिल किया जा सकता है। फिर ऐसी संस्था के अध्यक्ष और भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस्ट के अपने पद से हटने के बाद क्या उनके निर्देश Null and Void हो गये। जस्टिस्ट काटजू द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन होना चाहिये। पत्रकार संगठनों को केंद्र व राज्य सरकारों से पत्रकार सुरक्षा बिल की मांग करनी चाहिये।

आज कल नये पत्रकारों के विषय में तरह तरह की चर्चाएं होती हैं। पत्रकार संगठनों के अलग अलग नज़रिये इन पत्रकारों के लिये हैं। कुछ लोगों का मत है कि ये पढ़े लिखे लोगों का पेशा है। पत्रकारों की जो नयी पौध फील्ड में काम कर रही है वो सव्वेदनशील मुद्दों पर कैसे रिपोर्टिंग की जाये इससे वे अनभिज्ञ हैं। किसी का कहना है कि अमुक पत्रकार कम पढ़ा लिखा है और उसने पत्रकारिता से संबंधित कोई कोर्स भी नही किया है। कुछ पत्रकार इस तर्क को सिरे से नकारते हैं।उनका मानना है कि हर व्यक्ति में प्रतिभा छुपी होती है। बस उचित अवसर और सही मार्गदर्शन मिलने पर वो प्रतिभा निखर कर सामने आ जाती है। हम जब मोटर बाइक की सर्विसिंग कराने जाते हैं तो उसने भी कोई ऑटोमोबाइल का डिप्लोमा नही किया होता है। लेकिन सर्विस सेन्टर के ट्रेंड और डिप्लोमाधारी के बराबर और हो सकता है कि अच्छा भी काम करता हो।

पत्रकार संगठनों के माध्यम से ऐसे युवा नये पत्रकारों की काउंसिलिंग कर उन्हें एक आदर्श पत्रकार बनने के लिये प्रेरित करना चाहिए। आप सम्मानित पत्रकारों के कुछ कीमती टिप्स द्वारा नयें पत्रकारों के लिये सफलता का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।

आप के छोटे से प्रयास से जिसे आप डग्गामार पत्रकार समझतें हैं हो सकता है कल वो आदर्श पत्रकार की कतार में खड़ा हो, छोड़ ऊंच नीच धर्म जाति के भेदभाव से ऊपर उठ कर नयें पत्रकारों को गले लगाइये। इससे पत्रकारिता की गुणवत्ता और गरिमा दोनों में अपेक्षित सुधार होगा। भाई चाय वाला देश का प्रधानमंत्री हो सकता है तो समोसे वाला पत्रकार क्यों नही हो सकता ।

कबीरदास सूरदास तुलसीदास ने कहां से पी एच डी की थी। वाल्मीकि तो क्या थे और क्या बन गये। उन्होंने कैसे ग्रंथ की रचना कर डाली। पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी कहा करते थे कि केन्द्र से एक रुपये की दी जाने वाली सहायता गन्तव्य तक पहुंचने पर कितनी हो जाती है। ये सभी को पता है। भैय्या हम्माम में सभी—– इस लिये जिओ और जीने दो। असली नकली फ़र्ज़ी आर एन आई नही बनाता इसके ज़िम्मेदार हम सब हैं। चिन्ता से नही गम्भीर चिंतन से पत्रकारिता की दिशा और दशा दोनों सुधरेगी।

Exit mobile version