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आपकी अभिव्यक्ति – राजनैतिक पिपासा की पूर्ति के लिये बिगड़ता समाजिक तानाबाना और नक्सलियों के बढ़ते हौसले पर विशेष – भोलानाथ मिश्र

इस देश में जिस तरह राजनैतिक पिपासा पूर्ति करने के उद्देश्य से राजनैतिक पैतरेबाजी करके समाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करके जातीय एवं साम्प्रदायिक वैमनस्यता पैदा की जा रही है इससे हमारा धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बिगड़ता जा रहा है। राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिये राजनैतिक दल खुद अपनी जमीन तैयार करते हैं तो उनके सहयोगी गैर राजनैतिक संगठन आग में घी डालकर उनका सहयोग करते हैं। यहीं कारण है कि जातीय एवं साम्प्रदायिक आग घटने की जगह फैलती ही जा रही है और जब कोई चुनाव आता है तो उसकी लपटों में बेगुनाह झुलस जाते है तथा समाजिक भाईचारा टूटने लगता है। उग्र राजनीति के चलते ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एवं उनके सुपुत्र पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्याएं हो चुकी हैं। इसी तरह अबतक कई राजनेताओं की हत्याएं आतंकी माओवादियों नक्सलियों आदि द्वारा की जा चुकी है। माओवाद एवं वामपंथ समर्थित नक्सली हमारे लिये जम्मू काश्मीर जैसी समस्या बनते जा रहे है और इनका विस्तार हर क्षेत्र में दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। पत्रकार वकील लेखक प्रोफेसर बुद्धजीवी सभी रूपों में नक्सलियों की घुसपैठ होती जा रही है जो भविष्य के लिये शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है। अभी पिछले 31 दिसम्बर को कोरागाँव में हुयी जातीय हिंसा की घटना की प्रस्तुति नक्सली हमलों जैसी थी और इस घटना के पीछे नक्सली साजिश की आशंका उसी समय से व्यक्त की जा रही थी।इस घटना के बाद तीन दिनों तक महाराष्ट्र में जातीय हिंसा, बंद और दंगों का दौर चला और तमाम लोग इसके शिकार हुये थे। इस सिलसिले में पुलिस द्वारा कुछ माओवादियों को गिरफ्तार करके जब उनसे पूंछतांछ की गयी तो दंगें के पीछे नक्सली साजिश होने की पुष्टि हुयी थी। इस दौरान पुलिस को कुछ ई-मेल भी मिले थे जिनमें प्रधानमंत्री मोदी की हत्या करने की धमकी दी गई थी। इस धमकी एवं साजिश के भंडाफोड़ होने के आधार पर महाराष्ट्र पुणे पुलिस ने पिछले मंगलवार को एक साथ देश के छः राज्यों में एक साथ छापेमारी करके साक्ष्यों की तलाश तथा कई लोगों को गिरफ्तार किया गया । इनमें कोरागाँव मुकदमें के एक पैरोकार वकील, पत्रकार, साहित्यकार जैसी नामचीन हस्तियाँ आदि शामिल हैं जिनके ऊपर जल्दी कोई नक्सली माओवादी होने की कभी आशंका भी नहीं कर सकता है। हांलाकि गिरफ्तार लोगों में कुछ इसके पहले भी गिरफ्तार हो चुके हैं। पुलिस एवं सरकार भले ही कह रही हो कि गिरफ्तारी साक्ष्यों के आधार पर की गयी है लेकिन कांग्रेस माकपा इन गिरफ्तारियों की निंदा करते हुये सरकार पर भीमा कोरेगाँव घटना में दलितों का केस लड़ने की वजह से निशाना बनाने का आरोप लगा रही है। पुलिस एवं सरकार का दावा है कि गिरफ्तार किये गये लोग प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रचने वालों में शामिल थे। इन गिरफ्तारियों को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इसे साक्ष्य विहीन गिरफ्तारी बताते हुये, गिरफ्तार किये गये लोगों को हिरासत से छोड़कर घर पर नजरबंद करने के निर्देश दिये हैं। इतना ही नहीं साक्ष्य प्रस्तुत न कर पाने के कारण महाराष्ट्र सरकार एवं पुणे पुलिस को फटकार लगाई और साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये अगली सुनवाई छः सितंबर को होगी। सच्चाई क्या है यह तो अदालत ही तय करेगी लेकिन बढ़ती नक्सली समस्या का हल या इसको खालिस्तान समस्या की तरह ही हल करना सरकार का दायित्व बनता है। राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी और राजनीति के चलते नक्सली समानांतर सरकार ही नहीं चला रहे हैं बल्कि अपना रूप प्रचंड करके प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश तक पहुंच गये हैं।

– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी

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