राजनीति भी क्या अजीबोगरीब बला है जो समय समय पर गिरगिट की तरह रंग बदलती रहती है और जहाँ पर जब जिस रंग की जरूरत राजनैतिक स्वार्थपूर्ति एवं सत्ता के लिये होती है उस रंग में रंग जाती है।वसूल सिद्धान्तों विचारधारा की राजनीति के जमाने लद गये हैं और अब राजनीति का मतलब जैसे ऐनकेन प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना हो गया है और उसके लिये जिस भी रंग में रंगना पड़े कोई एतराज एवं फर्क नही पड़ता है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं और ” एक शेर और सौ लंगूर” जैसी स्थिति बनती जा रही है।केन्द्र की मोदी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने के विपक्षी गठबंधन बन गया है लेकिन इसमें कुछ मुख्य विपक्षी दलों के शामिल न होने से बाधा खड़ी हो रही है।मुख्य विपक्षी की भूमिका वाली कांग्रेस इधर काफी सक्रिय है और उसके अगुवा राहुल गांधी तो ” सतुआ पिसान लेकर” मोदी सरकार के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं।राहुल के आक्रामक राजनैतिक हमलों से सरकार तिलमिला रही है तो जबाबी हमले कर भाजपा भी उनकी और उनकी पार्टी की बखिया उधेड़ने में जुटी है।तारीफ की बात तो यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव फतह करने के लिये जहाँ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल जी अपना और पार्टीके चेहरें को हिन्दुत्वपूर्ण साबित करने के लिये कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ही मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों की यात्रा करने में जुटे हैं तो मोदी भी अपने हिन्दुत्व वाले चेहरे को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष एवं दलित मुस्लिम महिला हितैषी साबित करने में जुट है। अभी दो दिन पहले शिया मुस्लिम समाज के बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में उन्होंने जो कसीदे पढ़े और पुराने रिश्ते नाते बताये वह बदलते राजनैतिक परिदृश्य का एक नमूना माना जा रहा है। एकतरफा एससी एसटी एक्ट कानून बनाकर अगड़ों पिछड़ो के हितों को नजरअंदाज करना बदलती राजनैतिक स्वरूप का जुँआ खेलने जैसा माना जा रही है। राजनैतिक पिपासा पूरी करने के लिये इस समय राजनीति पग पग पर रंग बदल रही है और पिछले दिनों एससी एसटी में सहारनपुर में संशोधन के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में फैले जातीय दंगे के मुख्य आरोपी को उत्तर प्रदेश सरकार ने रासुका लगाने के बाद हटाकर समय से पहले जेल से आजाद को आजाद कर दिया गया है।रामराज्य की कल्पना को मूर्ति रूप देने के प्रयास का दावा करने वाली सरकार ने रावणराज्य की कल्पना करने वाले रावण को मुक्त कर दिया है। चन्द्रशेखर आजाद रावण ने जेल से बाहर निकलते अपने पुराने तेवर में आकर प्रदेश और केन्द्र की सरकारों के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया है।सरकार द्वारा उसे जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिये रिहा किया गया है उसकी पूर्ति होती है या नहीं यह लोकसभा की मतगणना के बाद ही पता चलेगा।इस समय राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये राजनेताओं द्वारा जिस तरह राजनैतिक परिवेष बदले जा रहे हैं उसे लोकतंत्र के भविष्य के लिये कतई शुभ एवं हितकर नहीं कहा जा सकता है। राजनीति का ही प्रतिफल है कि समाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण खत्म हो रहा है और जातीय एवं साम्प्रदायिक उन्माद बढ़ने लगा है। एक समय जबकि इतिहास में एक ही जयचंद था लेकिन आज के इस राजनैतिक प्रदूषित वातावरण में जयचंदों की संख्या एक नहीं बल्कि अनेकों हो गयी हैऔर आये दिन सुरक्षा बल उनके चेहरों पड़े नकाब को उतार रहे हैं।अभी दो दिन पहले समाजिक चिकित्सक का लबादा ओढ़े कानपुर में हिजबुल के संदिग्ध आतंकी डा० हुरैरा उर्फ कमरूद्दीन उर्फ कमरूज्जमा को पुलिस ने बेनकाब किया है। यह बदलता राजनैतिक परिवेष ही है कि इधर कुछ राजनेता देश के मान सम्मान, मर्यादा, अक्षुण्णता, समाजिक समरसता, भाईचारा एवं कौमी एकता को नजरअंदाज कर आपस में बैर पैदा करने और विदेशों में जाकर राजनैतिक रोटियां सेंकने से गुरेज नही कर रहे हैं।
– वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी