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इटावा सदर की निर्दलीय चैयरमेन पद प्रत्याशी शोभा दुबे ने उठाया चर्चा का मुद्दा। ———————————— संदीप मिश्रा

इटावा – देश के राजनैतिक दलों में महिला विंग के होने का क्या मतलब है उस स्थिति में जब महिला सीटों पर इन दलों को अपने परुष नेता व कार्यकर्ताओं की पत्नियों को ही प्रत्याशी बनना है।दलो की यह परम्परा आज की नही पुरानी है।लेकिन आज यह मुद्दा चर्चा का प्रमुख केन्द्र इसलिये बन गया क्योंकि इस मुद्दे को इटावा बीजेपी की सबसे पुरानी नेता व इटावा सदर की निर्दलीय चैयरमेन पद प्रत्याशी शोभा दुबे ने उठा दिया है।शोभा जी की इस बात में बेहद दम है।और यह परम्परा देश के प्रत्येक दल में है।इन दलों की महिला विंग से जुड़ी महिला नेत्रियां सारे जीवन अपने अपने दल के लिये मेहनत करती है और किसी सीट से प्रत्याशिता चयन करने का समय आता है पार्टी हाईकमान परुष नेता को पत्नियों को प्रत्याशी बना देता है।इस ज्वलन्त मुद्दे पर किसी भी दल के किसी भी बड़े नेता के पास कोई भी सटीक जवाब नही है।इस नगर निकाय के चुनाव में खास तौर से इटावा जिले की महिला सीटों पर जिन जिन परुष नेताओं की पत्नियां चुनाव लड़ रहीं हैं,उन्हें राजनीति की ए बी सी डी तक नही आती।ऐसी पत्नी प्रत्याशियो को अपने दलो के चुनाव घोषण पत्रों तक की जानकारी नही होती।बल्कि यहां यह कहना सटीक होगा कि ऐसी पत्नी प्रत्याशी नाम के लिये चुनाव लड़ रही है वास्तव में तो फ्रंट में परोक्ष रूप से यह चुनाव उनके पति ही लड़ रहे है।यह कहने में मुझे कतई संकोच नही इटावा नगर पालिका में तीनों प्रमुख दल सपा भाजपा व कोंग्रेस की महिला प्रत्याशी अपने अपने पतियों की कठपुतली प्रत्याशी बनकर मतदाताओ के समाने हैं।और इन महिला प्रत्याशियो में जो भी जीतेगी वो इटावा सफर नगर पालिका की कठपुतली चैयरमेंन होगी।बस इटावा आम आदमी पार्टी ने ही अपनी महिला विंग को पूरा सम्मान दिया है जो उसने अपने दल की महिला नेता को इस चुनाव में मैदान में उतारा है।बाकी दल तो कठपुतली पत्नी उम्मीदवारों की दम पर इस चुनाव मैदान में है।हर दल से यह सवाल आपके यहाँ महिला विंग का क्या मतलब?

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