नेपाल में मतगणना के शुरुआती रूझान से संकेत मिला है कि नई बनी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी से बड़े दलों को गंभीर चुनौती पेश आ रही है। इस पार्टी ने सिर्फ संसदीय चुनाव में भाग लिया है। उसे मिल रहे वोटों को देखते हुए अनुमान है कि अगली संसद का समीकरण गड़बड़ा सकता है।
राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी का गठन रबि लमिछाने ने कुछ समय पहले किया था। 20 नवंबर को हुए मतदान से पहले उन्होंने अपना एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने बताया कि प्रांतीय चुनावों में उनकी पार्टी ने उम्मीदवार क्यों खड़े नहीं किए। उन्होंने कहा कि उन्हें मौजूदा प्रांतीय व्यवस्था से हमेशा एतराज रहा है, इसलिए उन्होंने प्रांतीय असेंबलियों के लिए प्रत्याशी न उतारने का निर्णय लिया।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर लछिमाने की पार्टी को संसद में नुमाइंदगी मिली, तो नेपाल की संघीय व्यवस्था को लेकर वे वहां बहस खड़ी करने की कोशिश करेंगे। नेपाल में ऐसे और भी कई नेता और समूह हैं, जो देश में संघीय व्यवस्था नहीं चाहते। लेकिन राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के पहले सिर्फ चित्र बहादुर केसी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनमोर्चा ही ऐसी राजनीतिक पार्टी थी, जो खुल कर इस व्यवस्था का विरोध करती थी। मौजूदा व्यवस्था के तहत नेपाल का शासन तंत्र तीन स्तरों पर चलता है। संघ, प्रांत और स्थानीय सरकारों का प्रत्यक्ष रूप से जनता चुनाव करती है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मतगणना के शुरुआती रूझान का संकेत है कि संघीय व्यवस्था के विरोध को मुख्य मुद्दा बनाने का उनका दांव एक हद तक कामयाब रहा है। इससे संघीय व्यवस्था के समर्थकों की चिंता खुल कर जाहिर हो रही है। मधेश प्रांत के मुख्यमंत्री लाल बाबू राउत ने कहा है- ‘किसी नई पार्टी को अपनी प्रासंगिकता बनाने के लिए नए मुद्दे की जरूरत होती है। राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के संघवाद विरोध को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन ऐसी राय रखने वाली यह अकेली पार्टी नहीं है। नेपाली कांग्रेस, यूएमएल, माओइस्ट सेंटर जैसे दलों में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो संघीय व्यवस्था को खर्चीला प्रयोग मानते हैं।’
मतगणना के शुरुआती ट्रेंड के आधार पर अखबार काठमांडू पोस्ट ने एक विश्लेषण में कहा है कि निर्दलीय और नए दलों के उम्मीदवारों के बेहतर प्रदर्शन से बड़ी पार्टियों को झटका लग रहा है। ऐसे में इस बात की संभावना है कि नए दल और निर्दलीय सांसद किंगमेकर बन कर उभरें। इस विश्लेषण के मुताबिक मौजूदा चुनाव में राष्ट्रीय स्वंतत्र पार्टी ने ही सबका ध्यान खींचा है।
राजनीतिक विश्लेषक भीम भुर्तेल ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘परंपरागत पार्टियां नौजवान मतदाताओं को आकर्षित करने में नाकाम रहीं। इसका मतलब यह है कि इन मतदाताओं ने या तो नए दलों को वोट दिए हैं या फिर निर्दलीय उम्मीदवारों को।’
पूर्व मंत्री और कम्युनिस्ट नेता राधा कृष्ण मैनाली के मुताबिक अब से पहले के चुनावों में मैदान में उतरे निर्दलीय उम्मीदवार मोटे तौर पर राजनीतिक दलों से ही जुड़े होते थे। ये वो उम्मीदवार होते थे, जिन्हें पार्टियों से टिकट नहीं मिल पाता था। लेकिन इस चुनाव में खड़े हुए अनेक निर्दलीय उम्मीदवार वैसे युवा हैं, जो राजनीतिक दलों के प्रति असंतोष जताने के लिए मैदान में उतरे।