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“एक थे गुलशन कुमार” वो शिव भक्त जिसने अन्तिम सांस भी शिव मन्दिर में ली – रवि निगम /सी पी मेहता

कैसेट किंग गुलशन कुमार को श्रद्धांजलि ……गुलशन कुमार का जन्म 5 मई, 1951 को हुआ था. गुलशन कुमार ने संगीत को नई पहचान दी. उनका पूरा नाम गुलशन कुमार दुआ था. संघर्षपूर्ण जीवन बिताने के बाद अपने संगीत और उसके प्रति लगन से उन्होंने एक खास मुकाम हासिल किया. 12 अगस्त, 1997 में गुलशन कुमार की मुंबई के जीतेश्वर मंदिर में गोली मारकर हत्या कर दी गई।

उनकी हत्या को लेकर म्यूजिक डायरेक्टर नदीम श्रवण का नाम सामने आया, लेकिन बाद में अब्दुल रउफ नामक आरोपी को उनकी हत्या को मामले में गिरफ्तार किया गया। आरोपी ने हत्या की साजिश की बात भी कबूली थी। गुलशन कुमार की मृत्यु के बाद उनके पुत्र भूषण कुमार ने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड का पदभार संभाल लिया। उनकी बेटी, तुलसी कुमार, एक पार्श्व गायिका हैं।

उनकी पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें 

गुलशन कुमार शुरुआती समय में अपने पिता के साथ दिल्ली की दरियागंज मार्केट में जूस की दुकान चलाते थे. इसके बाद ये काम छोड़ उन्होंने दिल्ली में ही कैसेट्स की दुकान खोली जहां वो सस्ते में गानों की कैसेट्स बेचते थे ।

गुलशन ने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी बनायी जो भारत में सबसे बड़ी संगीत कंपनी बन गई। उन्होंने इसी संगीत कंपनी के तहत ‘टी-सीरीज’ की स्थापना की। आज ‘टी-सीरीज’ देश में संगीत और फ़िल्म निर्माण की दिशा में एक बड़ा नाम है।

मात्र 10 साल में ही गुलशन कुमार ने अपनी कंपनी टी-सीरिज के बिजनेस को 350 मिलियन तक पहुंचाया था। जहां एक ओर वह संगीत को शिखर तक पहुंचा रहे थे, वहीं दूसरी ओर उन्होंने कई नए कलाकारों को भी मौका दिया जो आज इंडस्ट्री का जाना माना नाम हैं। गुलशन कुमार ने सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल , कुमार सानू , उदित नारायण और वंदना बाजपेयी जैसे कई प्रतिभावान गायक दिए ।

उन्होंने पहला कदम वर्ष 1989 में ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ नामक फिल्म बनाकर किया। प्रेम प्रसंग पर आधारित इस फिल्म का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ और फिल्म भी कामयाब हो गयी। वर्ष 1990 में प्रदर्शित फिल्म ‘आशिकी’ ने सफलता के सारे कीर्तिमान तोड़ दिए । राहुल रॉय और अनु अग्रवाल द्वारा अभिनीत इस फिल्म ने अपने सुरीले संगीत से नयी बुलंदियों को छुआ। उनकी अगली कुछ फिल्में जैसे ‘बहार आने तक’ और ‘जीना तेरी गली में’ कुछ ख़ास सफल नहीं रहीं पर इनका संगीत कामयाब रहा।

इसके बाद वर्ष 1991 में आमिर खान और पूजा भट्ट अभिनीत ‘दिल है की मानता नहीं’ भी बहुत कमाल नहीं कर सकी परन्तु इस फिल्म के संगीत ने सफलता के नए आयाम स्थापित किये। इस के साथ गुलशन कुमार ने फिल्म उद्योग में खुद को संगीत के बादशाह के रूप में स्थापित कर लिया। उनकी कुछ अन्य फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर विफल रही जिसमें “जीना मरना तेरे संग ” आयी मिलन की रात”, “मीरा का मोहन”, आदि शामिल है।

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उन्होंने कई नए प्रतिभाओं को पेश कर फिल्म जगत में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उन्होंने अपने छोटे भाई किशन कुमार को रुपहले परदे पर “आजा मेरी जान” और “ कसम तेरी कसम” जैसी फिल्मों के मध्यम उतारा । ये दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित नहीं हुईं। पिछली दोनों फिल्मों के निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद गुलशन ने एक बार फिर अपने भाई किशन के साथ एक और फिल्म ‘सनम बेवफा’ बनाई।

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गुलशन कुमार ने अपने धन का एक हिस्सा समाज सेवा के लिए दान करके एक मिसाल कायम किया। उन्होंने वैष्णो देवी में एक भंडारे की स्थापना की जो तीर्थयात्रियों के लिए नि: शुल्क भोजन उपलब्ध कराता है। गुलशन कुमार के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बनने जा रही है।  फिल्म का नाम मुगल रखा गया है। गुलशन के रोल के लिए आमिर खान का नाम सामने आया है।

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