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किस पर करु यकीन ? —— कृष्णा पंडित की कलम से ( आपकी अभिव्यक्ति )

जिस देश की मिट्टी जीवन की असीम प्रयोग्यात्मक सच के साथ बढ़ते उम्र को भरोसा देती हो की आज की चिंतन कल की रखवाला बन सुंदर आज का निर्माण करेगा ! जहाँ न्याय व्यवस्था एक प्रक्रिया नही बल्कि समाज के विश्वाश का पुरोधा है ! लेकिन कानून का लचर होना संवैधानिक पदों का दुरूपयोग कर माननीय संवेदना के साथ कुठाराघात करना और तो और सिंहासन पर बैठे खुद को उसका मालिक समझना उस गरिमामय पद का भरपूर दुरूपयोग करना हमारी संस्कृती सभ्यता और रिवाजो को चोटिल कर उनका परम्परागत विधाओ को नस्ट कर रहा है !

घट रही घटनाओ से दुखी युवा

युवा एक नाम नही एक वर्ग नही बल्कि बदलाव का वह झोका है जो आंधी तूफान को भी मोड़ने की कौशल कला रखता है ! जहाँ चिड़ियों की चहचहाने और मौसम की सुगबुघाहट से समय बदलता है वह देश भारत आज अपनी युवांओ की सोच को प्रबल धार के बजाय खुद को छला हुआ महसूस कर रहा है शासन और सत्ता से साथ ही अपने बड़ों द्वारा दी गई सीख से जो कभी नही बदलता जो कभी नही रुकता जो कभी नही टूटता ? @ सच की राह फिर वह आज गुमराह क्यों है ? यह सवाल एक सच्चे युवक जो अपने मातृभूमि को अपनी आत्मा का समर्पण के साथ कल की लाइन को सजाता हो वह युवा आज भटक रहा है इन झूठे चका चौंध की रौशनी में !

सोच बदलो देश बदलो

सच कहा किसी ने सोच बदलो मगर यह बदलाव किस तरफ का बैनर और पोस्टर के साथ पाखण्ड का ! कदापि नही ! सच के साथ अटल होकर जीवन की अनुभूति के साथ अपने किये हुये कार्यों के अवलोकन और उसकी गरिमा ही विकास की सच्ची बदलाव का कारण हो सकता है ! जो पूरक बन विवेकानंद जी का भारत हो सकता है !

युवाओ को इतिहास के पुरोधाओं को जानने की अति आवश्यक्ता जो हमारे रगो में लहू बन निरंतर दौड़े जिससे किसी और को जीवन में गति प्रदान करें ! और दुसरो को भी गति दे ! मन उदास था तो कलम ने अपनी आवाज कुछ शब्दों में छाप के रूप में आकार लिया !

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