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क्या सत्ता के खातिर जनमत का वाकई अपहरण ? जाने आरजेडी + का 119 सीट का दावा कहाँ तक सही, कहाँ है चुनाव आयोग की विश्वस्नीयता ?

-रवि जी. निगम

सामाजिक कार्यकर्ता – संपादक

बिहार विधान सभा चुनाव में क्या वाकई में जनमत का सन्मान हुआ है या वापस देश की जनता के जनमत का अपहरण हुआ है जैसा विपक्ष का आरोप है ? क्या हमारे देश में संवैधानिक संस्थानों की विश्वस्नीयता पर जो आरोप लग रहे है वो क्या वाकई में संदेह के घेरे में है ? क्या संवैधानिक संस्थाओं ने अपनी विश्वस्यनीता पर उठ रहे सवालों के प्रति कोई जवाबदेही तय की है कि नहीं ? या कोई जवाबदेही है कि नहीं ? आज क्योंकर उस पर आरोप लग रहे हैं ? क्योंकर उसे मीडिया के समक्ष आ कर उसे सफाई देनी पड रही है ? लेकिन उसके बावजूद सवालों पर सवाल उठ रहे हैं और जो सवाल उठ रहे हैं क्या वो गलत हैं ? जब आयोग मीडिया को ब्रीफ कर कहा था कि वो दबाव में काम नहीं करता है और उसने खुद माना कि एक पार्टी यानी आरजेडी + की तरफ से शिकायत की गयी है कि उनके 119 प्रत्यासी जो जीत गये हैं उन्हे सर्टीफिकेट क्यों नहीं दिये जा रहे हैं और जो दिये भी जा रहे हैं तो उनमें कुछ प्रत्यासी जो जीत गये थे उन्हे हारा हुआ घोषित किया, जिसमे पोस्टल बैलट को लेकर समस्या थी कि उनमे कुछ पोस्टल बैलेट रिजेक्ट हुए हैं उन्हे वेरीफाई किया जायेगा, तो क्या जो घांघली का आरोप लागाया गया वो कितना सच है इसकी पडताल की गयी कि नहीं ? इतना ही नहीं आयोग ने ये भी बताया कि जो भी परिणाम हैं वो उसकी पोर्टल पर उपलब्ध हैं और उसमें साफ-साफ दिया गया है कि कितने लोग जीत हासिल कर चुके हैं और कितने परिणाम घोषित होना शेष है, क्योंकि आयोग ने कहा था कि अभी मात्र लगभग 150 करीब परिणाम घोषित हुए हैं अभी पूरे परिणाम आने में वक्त लग सकता है, हम मध्य रात्रि को 1 बजे वापस ब्रीफ करेंगे.

क्योंकि आयोग तो कहता है धांधली नहीं हुई, तो सवाल ये उठता है कि एक तरफ मीडिया पर दिये गये एग्जिट पोल के नतीजे उपचुनाव में बिल्कुल बिल्कुल सटीक साबित होते हैं जो एक खाश पक्ष के पक्ष में थे क्योंकि सत्ता में काबिज़ हैं और जिनके लिये तो जगजाहिर है कि उनको लेकर तो साफ-साफ कहा जाता है कि सब कुछ मुम्किन है, तो क्या ये उसी मुमकिन प्रक्रिया के तहत संभव हुआ है ? क्योंकि साफ-साफ श्रेय भी उन्हीको खुली तरह से दिया जा रहा है ? तो क्या अब संवैधानिक संस्थान भी सत्ता के गलियारों से हो कर गुजरने लगी हैं ? ये सवाल अब जनता के मन में घर करने लगा है, जिसकी बानगी नीचे दिये गये वीडियो और और इमेज के द्वारा समझने की कोशिस मात्र है –

तो क्या आरजेडी + के आरोप के अनुसार ही यही धीरे मतदान प्रक्रिया का कारण था और 9 सीट का खेल जारी था तो क्या वाकई में जनमत का अपहरण हुआ ?

उक्त वीडियो क्लिप एक प्रतिष्ठित निजी चैनल ‘एबीपी न्यूज’ से लिया गया है जिसमें साफ-साफ बताया व दिखाया गया है कि 10 नव्हेंबर की रात 11 बजे बीजेपी की ओर से प्रेस कांफ्रेस कर जनता को जीत की बधाई दी गयी कि बिहार की जनता ने उन्हे वापस सरकार बनाने का मौका दिया है, और वो कल सरकार बनाने का दावा पेश करेगी, तो सवाल ये उठता है कि उस वक्त तक जब प्रेस कांफ्रेस की जा रही थी तो क्या सारे परिणाम घोषित हो चुके थे, यदि नहीं तो ये घोषणा किस आधार पर हुई ? क्या ये वही विश्वस्त सूत्र के आधार पर घोषणा की गयी जिसके आधार पर मोदी जी ने कम वोटिंग को भी भारी वोटिंग बताया गया था जबकि पोलिंग बूथ पर एक्का-दुक्का लोग ही मौजूद थे.

आयोग द्वारा ब्रीफ मध्य रात्रि को 1 बजे भी की गयी उस वक्त भी आयोग ने बताया था कि 230 सीट की ही घोषणा हुई है. नीचे दिये इमेज पर गौर करेंगे तो ज्ञात होगा कि रात्रि 2.30 बजे तक ही नहीं बल्कि 3 बजे तक 4 परिणाम घोषित होना बाकी था, तो इसे देश की जनता भी जानना चाहती है कि वो आंतिम 4 परिणाम भी NDA + के ही बाकी थे तो 10 तारीख की रात्रि 11 बजे किस आधार पर जीत की घोषणा की गयी ? क्या ये वही 9 सीट थी जिसकी जद्दोजहद आरजेडी + कर रहा था ? क्या येे वही जनमत था जिसका आपहरण किया गया. क्या संवैधानिक संस्थानों को जवाब जनता को नहीं दिया जाना चाहिये ? क्या इस विषय पर संवैधानिक संस्थान संज्ञान लेगी ? या फिर सारी संवैधानिक संस्थानों ने अपने हथियार डाल दिये हैं, क्या हमारी देश की संवैधानिक संस्थानों को अमेरिका जैसे देश के संवैधानिक संस्थानों से सीख नहीं लेनी चाहिये ? कि उन्होने कैसे अपनी विश्वस्नीयता पर आंच नहीं आने दिया, और अपनी निष्पक्षता को बरकरार रखा है, राज नेता तो मात्र 5 वर्षों के लिये आते हैं वो आप पर सिर्फ उतने समय तक ही शासन कर सकते हैं, लेकिन जब हम उनके समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं तो वो सिर्फ आप पर ही नहीं देश की जनता के लिये भी घातक हो जाते हैं, हमें इंसानियत के नाते देश के प्रति वफादार होना चाहिये न कि किसी व्यक्ति विशेष के प्रति, क्योंकि आपको देश के प्रति कई वर्षो तक सेवा प्रदान करनी होती है जवाबदेही होती है. आप अपनी विश्वस्नीयता को किसी व्यक्ति विषेश के लिये नीलाम मत होने दे, गरीब जनता की हाय बहुत बुरी होती है.

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