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संपादक की कलम से -ये कुर्सी क्या न कराये थोड़ा ही है ! —- रवि जी. निगम

ये कैसी विडम्बना है कि हम कुर्सी की खातिर क्या – क्या नहीं करते, जब चुनावी समर शुरू होता है तो नेताओं के अजीबो गरीब करतब देखने को मिलते है पप्पू दलितों के घर जा कर खाना खाते हैं , लेकिन २०१४ में परिणाम जीरो ही हाथ लगता है , और सत्ता हाथ से छिन जाती है। जिसके बाद उन्होने अपना अन्दाज बदला और विगत पांच विधान सभा के चुनाव में तीन राज्यों में बाजी मार ली और पप्पू पास हो गया।

अब २०१९ का चुनावी समर शुरू हो चुका है और गंगा मईया के लाल ने कुम्भ में डुबकी लगाकर ताल ठोक दी, और यही नहीं दलित कार्ड को पप्पू के चौके के सामने जवाब में छक्का जड़ दिया है पांच दलितों के थाली में पैर धो कर। लेकिन मेरी स्मरण शक्तिनुसार ये प्रथा हिन्दू घर्म में बहुत ही चर्चित प्रथाओं में से एक प्रथा है , लेकिन माननीय द्वारा दलितों का इतना बड़ा सम्मान विश्व में एक नया इतिहास रच गया !

लेकिन इसे प्रथा के अनुसार अघूरा ही कर्म माना जायेगा क्योंकि प्रथानुसार चरण घुलने के बाद उस जल को प्रसाद स्वरूप आचमन (ग्रहण) भी करना होता है , क्योंकि जब हम अपने ईश्वर के चरण धुलते हैं और जो भी द्रव्य उससे हम एकत्र करते है उसे हम चरणाअमृत कहते हैं और उस चरणा अमृत को हम आचमन (गृहण) करते हैं न कि उसे फेकते हैं बल्कि अपने परिवार के सदस्यों में उसका वितरण कर देते हैं, लेकिन कोई बात नही क्योंकि इसी लिये तो कहते हैं कि कुर्सी क्या न कराये थोड़ा ही है !!!

ये तो जनता जनार्दन ( ईश्वर) है , ये तो दो चार महिने के मान और मेहमान होते हैं सिर्फ वोटिंग के दिन तक के लिये , उसके बाद तो “हम आपके हैं कौन” फिर ये “दाता” और बेचारी जनता भिखयारी

लेकिन देखने योग्य तो ये है कि जनता जनार्दन ने तो पप्पू को सत्ता से बेदखल कर दिया था और उनका दलित कार्ड धरा का धरा रह गया था , लेकिन अब गप्पू का क्या होगा ये तो वक्त बतायेगा , क्योंकि किसी ने खूब कहा है कि “ये तो पब्लिक है सब जानती है , कि अन्दर क्या है बाहर क्या है “ये सब कुछ पहचानती है…. ये पब्लिक है”….. जनता एक बार तो बेवकूफ बनती है बार – बार नहीं , ये बड़े बड़ो को बेवकूफ बना देती है । जिसका प्रमाण प्रत्यक्ष है मध्य प्रदेश , राजस्थान , और छत्तीसगढ़ के रूप में जिसे नहीं भूलना चाहिये। लेकिन यदि कोई काला चश्मा लगा कर देख रहा है और खुश है तो उसका कोई…..

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