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Thursday, May 2, 2024

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पूरा पढें जरूर – मा. प्रधानमंत्री जी की ट्वीट की गयीं पंक्तियों को आम जनता की नज़र से…. विचार अवश्य करें !!!

-रवि जी. निगम

सामाजिक कार्यकर्ता / संपादक

आज मा. प्रधानमंत्री जी की ट्वीट की गयी पंक्तियां कुछ न कुछ कह अवश्य रही हैं, ये समय की आवश्यता को भी बयां भी कर रही हैं, कि कम से कम हमारे देश के प्रिय प्रधानमंत्री जी ने अपने कालखंड का भी जिक्र किया है, और इतना ही नहीं उन्होने ये भी स्वीकारा है कि इतने बडे कालखंड में महत्वपूर्ण पदों को भी विभूषित किया / आसीन रहे हैं, तो मनुष्य होने के नाते उन्होने अपनी गलतियों को भी स्वीकार किया है, ये भी पूर्ण सत्य है कि “बडे-बडे शहरों में छोटी-मोटी घटनायें हो ही जाती हैं” जिसमे कुछ क्षम्य होती हैं कुछ अक्षम्य भी होती हैं कि नहीं…

ये आज के जनमानस के विवेक पर निर्भर करता है, क्योंकि वर्तमान के कालखंड पर ही यदि हम गौर करें तो पूर्व के कालखंड का आंकलन अपने आप ही हो जाता है, और उस पर ज्यादा मंथन करने की आवश्यकता नहीं पडती है, क्योंकि ये हर व्यक्ति विशेष के साथ ये जुडा होता है कि वो जो आज है वो कल भी रहा होगा और वो कल भी वैसा ही रहेगा….

ये हमारे प्रधानमंत्री जी के निश्चल प्रेम को दर्शाता है कि वो कितने उदारवादी हैं और देश के लिये कितना समर्पित हैं ये उनके समर्पण भाव से ही महशूस किया जा सकता है कि वो देश के 5 प्रतिशत पूंजीपतियों के लिये कितना समर्पित हैं और 95 प्रतिशत आम मध्यम वर्गीय, गरीब, दबे-कुचले, अगडे-पिछडे लोगों के लिये कितना समर्पित हैं, इसका आंकलन देश के भक्त मीडिया हाऊसों के माध्यम से किया जा सकता है क्योंकि एक पैमाना तैयार किया जा चुका है कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ इसे हम जैसे बकलोल अपने आप को जोडकर यदि देखते हैं तो इससे बडी बेवकूफ़ी सायद ही कोई होगी, यदि आप देश भक्त दरवारी बनने की कुब्बत रखते हैं तो आप अपने आपको जोडकर इसका लुफ़्त उठा सकते हैं, लेकिन इसका विरोध करने की किंचित मात्र कोशिस मत कीजियेगा अन्यथा आपको देश भक्त, देश द्रोही की उपमा से भी अलंकृत भी कर सकते हैं….

“सबका साथ, सबका विकास” इसका सबसे बडा जीवंत उदाहरण आपके समक्ष और क्या होगा कि इस कोरोना कालखंड में जब हमें लॉकडाऊन में घरों में व जो जिस जगह था वहाँ पर लॉक कर दिया गया, तब हमें महाभारत की कहानी सुनाई गयी, ताली, थाली, घंटा, शंख, मंजीरा बजवाये गये, इससे भी जब काम नहीं बना तो अगरबत्ती, मोमबत्ती, दिया-बत्ती यहाँ तक मॉर्डन जमाने का एहशास करते हुए मोबाइल की टॉर्च तक जलवायी गयी, और जब हम आर्थिक रूप से टूटने लगे तो पांच किलो गेहूं / चावल, और दो किलो चने की दाल के लिये लाइनों में लगा दिया गया, दावा किया गया कि देश के अस्सी लाख लोग आज भी इसका लाभ उठा रहे हैं और इसी कोरोना के नाम पर जनता की सहायता हेतु सायद विदेशों से और देश के उसी जनता से आर्थिक फंड भी जुटाया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के लाख कहने का बावजूद देशभर में समस्त लोगों के कोरोना का मुफ्त उपचार के लिये व्यवस्था करने में दम फूल गयी, देश की अर्थ व्यवस्था चकना-चूर हो गयी, -23.9 प्रतिशत के स्तर पर देश की जीडीपी आ गयी, जो कोरोना कालखंड के पहले 4.5 प्रतिशत पर कराह रही थी, लेकिन इस कालखंड में दो लोगों का विकास हुआ वो भी छोटा-मोटा नहीं इतना बडा विकास हुआ कि वो विश्व में महान पूंजीपति की लाइन में कोई 6वें कोई अन्य स्थान बनाने की लाईन लगा रहे थे और इतिहास गढा रहे थे, लेकिन गरीब जनता के लिये इनके (पूंजीपतियों) पास कुछ नही था…

कुछ देश भक्त टीआरपी और विज्ञापन बटोरने की लाईन लगाकर अपना विकास कर रहे थे और कर रहे हैं लेकिन बेचारी जनता चीख-चीखकर चिल्ला रही थी अपने जनार्दन से गुहार लगा रही थी, कि हुजूर हम प्रवासी मजदूरों को कोरोना जैसी महामारी से मेरी जान बचाओ, माई-बाप मेरे, मुझे मेरे घर तो पहुंचाओ मेरे बूढे मां-बाप, भाई-बहन, बीबी-बच्चों तक पहुंचाओ, उधर गुठलाई आवाज और पथरायी आंखे आपनों के इंतजार में तिल-तिल घुट रहे थे, लेकिन यही बेबस जनता थी न हुजूर जो मज़बूर होकर सैकडों किलोमीटर पैदल पलायन करने पर मज़बूर थी, ये इसी कोरोना कालखंड की ही बात हैं न हुज़ूर, जब सडकों पर सैकडों ने जान तक गंवायी, ट्रेनो की पटरी पर कटकर, राह में भूखे प्यासे पैदल चलते-चलते दम तोड दिया, लेकिन जनार्दन ने किंचित मात्र सुध भी नहीं ली!

क्योंकि सत्ता का नशा आखिर कहते किसे हैं ? क्योंकि जनार्दन को तो जनता सिर्फ चुनाव के समय ही जनार्दन दिखती है, सत्ता मिलते ही प्रभू खुद जनार्दन बन जाते हैं और यही जनता प्रजा सी दिखने लगती है, और यहीं से शुरू हो जाता है सत्ता, शासन और कानून का खेल…. ( विदित हो कि प्रवासी मजदूर को पहुंचाने और उन्हे उनके गृह जनपद में ‘मनरेगा’ के तहत काम देने का सुझाव तक इनके सलाहकारों के पास नहीं था, ये सुझाव सामाजिक कार्यकर्ता – रवि जी. निगम द्वारा ही सुझाया गया, जिसकी वाह-वाही! सरकार ने लूटी और लूट रहे हैं, यही नहीं सरकार को ये लॉकडऊन लगाने के चंद दिनों पश्चात उपलब्ध करा दिया गया था यदि समय रहते इसे लागू किया गया होता तो इस भतावह स्थिति से बचा जा सकता था और लोगों को बचाया जा सकता था, इसके बावजूद हमारे मा. प्रधानमंत्री जी ने एक प्रशस्ति पत्र या दो लाईन का पत्र लिख कर देना मुनासिब नहीं समझा, वहीं एक ऑटो ड्राइवर को कोरोना काल में कुछ लोगों की जान बचाने के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार से सन्मानित किया गया ये उसका हक़ था उसे मिलना ही चाहिये)

प्रभू अभी भी सात परतों से बाहर नहीं निकल रहे हैं, वीडिओ कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये यूनाइटेड नेशन / यूएन की सभा को संबोधित कर रहे हैं, लेकिन बेचारी जनता को आत्मनिर्भर बना कर देश के लिये रेवेन्यू कलेक्ट कर रहे हैं, क्योंकि ये ठहरी बेचारी काम-काज की मारी जनता, ‘मरती क्या न करती’ क्या देश भक्त बतायेंगे कि खाली पांच किलो गेहूं/चावल और दो किलो दाल से यदि दो हफ्ते ही उन्हे गुजारने पड जाये तो सायद जिंदगी हाँफ़ते-हांफ़ते नजर आयेगी की नहीं…?

क्या गरीब पैसा छापने की मशीन है ? खराब हो जायेगी तो उसके जगह नयी मशीन आ जायेगी ? वो क्या हाड-मांस के इंसान नहीं हैं ? तो क्योकर कोरोना के आकडों का खेल-खेलकर उनकी जिंदगी के साथ खेला जा रहा है ? क्योंकर टेस्टिंग की संख्या घटाकर आकडों का खेल खेला जा रहा है, क्या चुनाव के खातिर कम टेस्टिंग कर जनता की आंखो में धूल नहीं झोंका जा रहा है हमें टेस्टिंग की संख्या बढानी चाहिये या घटानी ? क्या हम ऐसा करके कोरोना बम नहीं तैयार कर रहे हैं ? क्या ये और भयावह स्थिति का निर्माण नहीं करेगी, जो गलती हम पहले कर चुके हैं हम उसे दोहरा नहीं रहे हैं ? यदि सब कुछ ठीक है स्थिति समान्य है तो प्रभू जो धुआंधार रैली के लिये प्रख्यात हैं वो नज़र क्यो नहीं आ रहे हैं अब ट्वीटर से जनता को लुभा रहे हैं और मैसेज पहुंचा रहे हैं…

हुज़ूर हाथरस जैसे मुद्दे पर पीडित परिवार से कब मिलने जा रहे हैं, पिछडो की और दलितों की अब क्योंकर सुध नहीं आ रही है, कभी दलितों के पैर धोये अब उनकी मरी हुई बेटी की अस्मत जब खतरे में है, जिस पर हाईकोर्ट तक स्वत: संज्ञान ले रहा है, जब देश का सुप्रीम कोर्ट इसे हृदय बिदारक घटना से संबोधित कर रहा हो, तो प्रभू का मौन रहना किस ओर इंगित करता है ? ऊपर वाले के ऊपर कार्यवाही करने से क्यों घबरा रहे हैं ? सवाल कई हैं ….

कालखंड अध्याय इतिश्री !!!

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