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संपादक की कलम से – सम्पूर्ण भारत में लॉक डाऊन करने से पूर्व सरकार को करना चाहिये था अप्रवासी मज़दूरों को उनके घरों पर भेजने का इन्तजाम ? – रवि जी. निगम

इसे पूरा अवश्य पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया अवशय व्यक्त करें ।

आपकी अभिव्यक्ति – आज वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस की महामारी से लगभग ३१ हजार से ज्यादा लोगों की जहाँ मौत हो गई वहीं लाखों लोग इस संक्रमण से ग्रसित हैं, तमाम देशों के वैज्ञानिक इस महामारी से बचाने के लिये वैक्सीन व दवाओं के शोध में लगे हुये हैं , लेकिन पूर्ण रूप से सफलता फिलहाल किसी के भी हाँथ नहीं लगी, कुछ दिन पूर्व उड़ती हुई खबर लगी कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने बताया है कि उनके वैज्ञानिकों के मुताबिक कोरोना वायरस पर मलेरिया की दवा कारगर साबित हुई है , ऐसा ही दावा रूस के वैज्ञानिकों की ओर से भी किया गया है कि कोरोना में एन्टी मलेरिया की दवा कारगर साबित हुई है लेकिन अभी हमारे देस के वैज्ञानिक किसी भी नतीजे पर नही पहुँचे हैं सायद ?

वहीं हमारी केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें इस लाइलाज बिमारी से निपटने के लिये युद्ध स्तर पर प्रयत्नशील हैं , जिसके लिये कहीं किसी राज्य ने कर्फ्यू लगा रखा है तो भारत सरकार के प्रधानमंत्री द्वारा पहले एक्सपेरीमेन्टल जनता कर्फ्यू लगाया गया तद् पश्चात २५ मार्च से सम्पूर्ण देश में लॉक डाऊन का ऐलान कर दिया गया ।

लेकिन इस भयावह स्थिति का आकलन पूर्व में नहीं किया गया , जबकि २७ फरवरी को WHO (विश्व स्वास्थ संगठन) द्वारा इससे लड़ने की तैयारी करने के लिये PPE (पर्सनल प्रोटेक्टेड इक्युपमेन्ट) पर उत्पाद बढ़ाने को लेकर भारत को आगाह भी किया गया, लेकिन उत्पाद बढ़ाना तो दूर निर्यात पर भी रोक नहीं लगाई गयी, जब स्थिति अत्यन्त भयावह हो गई तब जा कर १९ मार्च से पाबन्दी लगाई गयी तब तक काफी देर हो चुकी थी जबकि भारत में पहला कोरोना संक्रमित मरीज ३० जनवरी को पाया गया था।

यदि समय रहते इस पर गंभीरता दिखाई गयी होती तो सायद आज ये संकट इतना बिकराल रूप न ले पाता इस पर समय रहते ही काबू पा लिया गया होता क्योंकि इसका प्रकोप ३१ दिसम्बर २०१९ में चाइना के बुहान में देखने को मिल गया था जिसे देख चाइना के भी हाँथ-पाँव फूल गये थे यही नहीं WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने कोरोना वायरस को अंतरराष्ट्रीय जन-स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ट्रेडोस अदनोम ने कहा है कि न्यू कोरोना वायरस से ग्रस्त निमोनिया को डब्ल्यूएचओ ने कोविड 19 नाम दिया है।

लेकिन देर से ही सही जो निर्णय लिये गये वो सब आनन-फानन में लिये हुये दिखते हैं अन्यथा आज जो स्थिति उत्पन्न हुई है सायद वो ना होती, जिस कारण राज्यों ने एक-एक कर लॉक डाऊन किया उसके बाद कर्फ्यू में तपदील कर दिया, आनन-फानन में सभी ट्रान्सपोर्ट (हवाई , रेलवे , सड़क यातायात) बन्द कर दिये, वहीं पहले स्कूल , कॉलेज बन्द कर दिये व सरकारी , गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में ५०% उपस्थिती लागू की और रातों-रात सम्पूर्ण भारत में लॉक डाऊन कर दिया गया।

यदि सम्पूर्ण लॉक डाऊन से पूर्व दिहाड़ी मजदूरों व आम जनता को इस स्थिती से निपटने के लिये आगाह कर दिया गया होता तो आज इतनी दैयनीय स्थिति का सामना आमजनों को सायद ना करना पड़ता और वो इस आपातकाल से निपटने में सक्षम होते। वहीं दिहाड़ी मजदूर समय रहते अपने-अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान कर गये होते जो अपने खेतों में रवी की फसल की कटाई में लगकर अपना व अपने बच्चों का ही नहीं अपितु देश की जनता का पेट भरने का इन्तजाम कर रहे होते, आज जो खेतों में तैयार फसल बारिस की वजह से जो बर्दाबाद हो रही है सायद न होती आज जो जनता सब्जी (भाजी) की किल्लत से दो-चार हो रही है वो न होती।

क्या जिस कारण सम्पूर्ण भारत में लॉक डाऊन किया गया उसका कुछ असर होने के बजाय खतरे के बादल नहीं मंडरा रहे हैं क्या मोदी जी का जनता कर्फ्यू और सम्पूर्ण भारत में लॉक डाऊन दम तोड़ता नज़र नहीं आ रहा , अवश्य आ रहा है , जितना डर बिना कर्फ्यू , बिना लॉक डाऊन के नहीं था उससे कई गुना ज्यादा डर बढ़ गया है , यदि दुर्भाग्य से कहीं अप्रत्यासित रूप से संक्रमण कहीं फैलना शुरु हो गया तो उसे संभालना वश की बात नहीं होगी।

लोगों में डर / भय व्याप्त होने के कारण ऐसी स्थिति का निर्माण हुआ है , गरीब मजदूर जो रोज कमाते थे और उसके बाद खाते थे जब ये अचानक आफ़त उन पर टूट पड़ी तो भूख से बिलखता इन्सान क्या करे जिसके सिर पर किराये की छत हो और खाने को दो जून की रोटी भी नसीब ना हो तब तो बेचारा मरता क्या ना करता उसने यही फैसला लेना उचित समझा कि कोरोना से जब मरेगें तब लेकिन यही हाल रहा तो भूख से अवश्य मर जायेगें और निकल पड़ा सैकड़ों किमी. दूर अपने आशियाने की ओर ये परवाह किये बगैर कि रास्ते में कुछ हो गया तो ! क्योंकि उसके सामने तो ऐसी स्थिति निर्माण हो गयी कि एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाँई , सिर पर कफ़न बाँध चल पड़ा कि जिन्दा रहे तो घर पहुंचेगें मर गये तो कोई बात नहीं।

केन्द्र सरकार यदि चाहे तो इन्हे मौत के मूँह से बचा सकती है, क्या ऐसा उपाय कर पाना सरकार / मोदी जी के वश में नहीं है कि जनता कर्फ्यू और सम्पूर्ण भारत में लॉक डाऊन के ऐलान की तरह रात ८ बजे आ कर ये ऐलान करना कि आज रात १२ बजे से अपने-अपने गाँवों , घरों को जाने वाले मजदूर / श्रमिक अपने नजदीकी पुलिस थाने / चौकी में अपने गन्तव्य स्टेशन (जहाँ उसे जाना है) पता व मोबाइल नं० के साथ आवेदन पत्र जमा कर दें ताकि उन्हे उनके गन्तव्य तक पहुंचाने का कार्य किया जा सके।

जिसके लिये रेलवे आपातकालीन सेवा के माध्यम से उन गरीब मजदूर / श्रमिकों के लिये आपातकालीन सेवा शुरू कर उन्हे पहुंचाने में मद्‌द करे , वहीं प्रशासन उन पत्रों को संग्रहित कर रेलवे के कार्यालय तक उन आवेदनों को पहुँचाने का कार्य करें, व उसकी एक प्रति संबन्धित राज्य सरकारों को प्रेषित कर दी जाये जिससे उक्त राज्य सरकारें सड़क परिवाहन द्वारा उनके गन्तव्य तक पहुंचाने की जिम्मेदारी का निर्वाहन करें। ताकि समस्त देश वाशियों द्वारा लॉक डाऊन का पालन करना सार्थक साबित हो सके। ये सुझाव है जिसे सरकार भली-भांति (जनता के प्रति उत्तरदायी सरकार) निर्वाहन कर सकती है।

क्योंकि जिस तरह की सरकार द्वारा योजना बनायी जा रही है व आरबीआई ने ऐलान किया है उसे समझते हुये तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये स्थिति १४ अप्रैल तक सायद नियंत्रित या नियंत्रण में आने नहीं जा रही है अन्यथा सरकार व आरबीआई को तीन माह की योजनाबद्ध तरीके पर कार्य नहीं करना पड़ता अतः यदि ये वाकई में लम्बा खिचने जा रहा है तो ये कदम सरकार को अवश्य उठाना चाहिये। ताकि कई अन्य चुनौतियों का सामना न करना पड़े , और यदि सरकार आश्वस्त है कि १४ अप्रैल तक सब सामान्य हो जायेगा व उमड़ रही भीड़ से कुछ फर्क नहीं पड़ने जा रहा तो बहुत ही अच्छा है इसे ऐसे ही चलने दें।

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