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समझौते के दौरान की गई रिकॅार्डिंग कोर्ट में मान्य नहीं।

विधि रिपोर्टर- विपिन निगम

कन्नौज में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव/जज प्रियंका सिंह ने बुधवार को तहसील सदर क्षेत्र के बलही गांव में चल रहे चौ. महादेव प्रसाद किताबी देवी विधि महाविद्यालय में गांधी जयंती पर आयोजित मध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम एवं वैकल्पिक विवाद निपटान पद्धति के तहत आयोजित सेमिनार में बोल रहीं थीं। उन्होने कहा कि कोर्ट में आने वाले क्रिमिनल व सिविल मुकदमों का निपटान मध्यस्थता केंद्र में बातचीत और दोनों पक्षों की सहमति से होता है। समझौता फेल होने के बाद रिकार्डिंग को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश करने पर वह मान्य नहीं होती है। साथ ही कानूनी सुरक्षा भी जरूरी बताई है। बिना इसके कोई सच नहीं बोलेगा। उन्होंने आगे बताया कि मामले जब अदालत में विचाराधीन होते हैं तो कोई भी पक्ष अपने मुकदमे को निपटाने के लिए न्यायालय में अप्लीकेशन देकर मीडिएशन सेंटर भेजने की मांग कर सकता है। हाईकोर्ट के मीडिएशन सेंटर में तीन तारीखों तक दोनों पक्षों को जाना ही पड़ता है। बात में दोनों पक्षों की मर्जी पर निर्भर रहता है कि वह समझौता करते हैं या नहीं। नायब तहसीलदार भूपेंद्र विक्रम सिंह ने भी अपनी बात रखी। छात्र अनुराग सिंह ने भी एडीआर तंत्र पर अपने विचार रखे।

मध्यस्थता केंद्र में मामले निपटाने के कई फायदे हैं। यहां निस्तारण तभी संभव है जब दोनों पक्ष राजी हों और सच सामने लाएं। इस दौरान कोई पक्ष बातों की रिकार्डिंग कर ले और समझौता भी फेल हो जाए तो बाद में रिकार्डिंग कोर्ट में पेश करने पर मान्य नहीं होती है

मीडिएशन सेंटर से यह हैं फायदे

-कोर्ट फीस नहीं लगती।

-वकील पर खर्च नहीं होता।

-पुराने मुकदमें की कोर्ट फीस वापस हो जाती है।

-मुआवजा और हर्जाना तुरंत मिलता है।

-मामलों का निपटारा भी जल्द होता है।

-सम्बंधित को आसानी से न्याय मिल जाता है।

-किसी पक्ष को सजा नहीं होती है।

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