— रवि निगम / राज शर्मा
यह स्टोरी एक कलात्मक है कुछ सही तथ्य हैं कुछ विचार भी हैं अगर किसी के बीच में मिलते हैं हम दिल से माफी चाहते हैं।
… लक्ष्मन उतेकर निर्देशित फिल्म ‘लुका छिपी’ की रिलीज के बाद एक बार फिर लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा में है। साथ ही इसे देखने के बाद एक जोड़े ने तो अपने गिले-शिकवे दूर कर लिए। अबोहर के चंडीगढ़ में की रहने वाली महिला ने फिल्म को देखकर शराबी वह जुआरी पति से समझौता कर लिया। उनका कहना है कि शादी से पहले लिव-इन रिलेशनशिप में रहकर पति की हर हरकत को भांप सकती थीं। फिर शादी के बाद थाने व एक समाज सेवी संस्था के पास पहुंचने की नौबत नहीं आती। कई घंटों तक चली परिवार की पंचायत के बाद दोनों ने समझौता कर लिया।
लखनऊ के रोहिणी निवासी महिला की शादी तीन साल पहले गाजियाबाद में में मझोला के खुशहालनगर स्थित वसंत विहार में रहने वाले युवक से हुई थी। युवक एक होटल में वेटर काम करता है। उनका आठ महीने का बेटा व एक बेटी भी है। महिला का कहना है कि उसका पति शराब का आदी है। शराब पीकर रोज रात को उसका कटप्पा चढ़ाता था इसी के चलते उनमें विवाद कई बार बढ़ गया। चार महीने पहले सब कुछ छोड़ कर वह मायके चली गई। महिला ने बताया कि शुक्रवार को फिल्म लुका छिपी रिलीज हुई।
फिल्म में दिखाया है कि शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रहकर लड़का और लड़की एक दूसरे को समझ सकते हैं। यदि दोनों एक दूसरे को एडजस्ट नहीं कर पाए तो अलग हो सकते हैं। ऐसे में शादी टूटने वाली नौबत नहीं आएगी। फिल्म से सीख लेकर महिला ने अपने पति से बातचीत की। मझोला के खुशहालपुर चौकी पहुंचकर दोनों ने समझौते के लिए बात की। करीब दो घंटे तक दोनों के परिवार के लोगों में समझौते के लिए शर्त रखी गई। दोनों ने एक दूसरे की शर्त मानी। सोमवार की शाम करीब चार बजे दोनों में समझौता हुआ। तय हुआ कि उसका पति शराब से छुटकारा ले लेगा। रजामंदी के बाद दोनों लौट गए।
क्या है लिव इन रिलेशनशिप ?
लिव -इन-रिलेशनशिप दो जोड़ों के बीच का एक अनूठा बंधन होता है, जिसमे जोड़े बिना शादी किए ही एक-दूसरे के साथ सालों बिता देते हैं। लिव इन में रहने के लिए दोनों के बीच प्यार, भरोसा होना चाहिये।
क्या कहता है कानून
सुप्रीम कोर्ट – सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर लड़का बालिग है और 21 साल से कम है तो भी वह बालिग लड़की के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह सकता है। अदालत ने आगे कहा कि व्यवस्था दी कि दो शख्स अगर शादी की उम्र में नहीं हैं तो वो अपनी इच्छा से शादी के बिना साथ जीवन जी सकते हैं।
अगर लिव इन रिलेशनशिप में ज़हर घुल जाए और लड़का शादी के वादे से मुकर जाए तो ?
…तो क्या वो लिव इन में साथ रह रही लड़की को हर्जाना देने के लिए बाध्य है ?
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से इस बाबत सुझाव मांगा है कि क्या लिव इन रिलेशनशिप टूटने पर लड़के को “नैतिक ज़िम्मदारी” के तहत लड़की को हर्जाना देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सुझाव देने को कहा है।
इस रिस्ते के क्या हैं नुक्सान ?
1 – सामाजिक निंदा का खतरा
खास कर इसे बुजुर्ग लोग काफी हीन दृष्टि से देखते हैं। साथ ही जिस समाज में जाति, सामाजिक स्तर और संप्रदाय को लेकर इतने बंधन हों वहां इस लिव इन रिलेशन में रहने वालों को सहज स्वीकृत किया जाये ये आसान नहीं है।
2 – रिश्ता टूटने का ज्यादा खतरा
लोगों की माने तो इस रिश्ते में नफा कम नुक्सान ज्यादा होने की संभावना होती है। ये रिश्ता आर्थिक, सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारी से मुक्त होने के कारण लोगों को बड़ा सहज भी लगता है। अगर इस रिश्ते में कमिटमेंट ना हो तो कोई भी एक पक्ष दूसरे को आहत और हतप्रभ कर आसानी से तोड़कर निकल जाता है। वहीं शादी में कितने भी मतभेद / मनभेद के बाद भी रिश्ता तोड़ने की जटिल प्रक्रिया किसी को आसानी से छोड़ कर चल देने का मौका नहीं देती।
3 – महिलाओं को सबसे ज्यादा नुकसान
इस रिश्ते में सबसे ज्यादा नुकसान महिलायें ही उठाती हैं क्योंकि आज भी हमारे समाज में पुरुष ही प्रधान है। ऐसे में अगर एक पुरुष पार्टनर रिश्ता तोड़ कर चला जाता है तो महिला को सामाजिक प्रताड़ना तो झेलनी ही पड़ती है दूसरा साथी मिलना भी सहज नहीं होता। साथ ही सुरक्षा और भावनात्मक सहारा भी नहीं मिलता।
4 – बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव भी पढ़ता है
ऐसे जोड़ों के बच्चों पर सबसे ज्यादा नकरात्मक प्रभाव भी पड़ता है। आमतौर पर देखा गया है कि ऐसे जोड़ों की संतानों में नियम और कायदों के प्रति सम्मान बहुत कम पाया जाता है। साथ ही वे बेहद असुरक्षित महसूस करते हैं और उनमें अविश्वास की भावना घर कर जाती है। अगर उनके माता पिता अलग हो जाते हैं तो उनकी सामाजिक स्थिति भी खासी विचित्र हो जाती है। वो किसी भी पारिवारिक माहौल को नहीं समझ पाते। उन्हें भावनात्मक और कानूनी दोनों तरह से कोई विरासत नहीं मिलती।
5 – रिश्ते के प्रति सम्मान का आभाव
ऐसे रिश्ते में अक्सर रिश्ते के प्रति सम्मान का आभाव देखा जाता है और ये केवल आनन्द , खुशी , मर्जी , उपभोग पर आधारित संबंध बन कर रह जाता है। ये जोड़े अपनी आर्थिक और निजी आजादी का मजा लेने में शादी के विचार को टालते रहते हैं। उनका आपसी विश्वास भी अक्सर कम पाया जाता है। शादी में विश्वास की वजह होती है एक दुसरे के प्रति प्रतिबद्ध होना लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में आप पर किसी भी प्रकार का कोई बंधन नहीं होता और ये अहसास आपको एक दूसरे के लिए विश्वसनीय नहीं बनाता।
संविधान में मान्यता
लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा को पश्चिमी देशों से भारत में लाया गया है, जिसे किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय माना जाता है। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित व्यक्ति के जीवन के अधिकार के तहत यह सही गारंटी है।
शहर के एक जाने-माने एडवोकेट ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर ने कहा कि कानून ने कभी भी किसी व्यक्ति की पर्सनल लाइफ में ताक-झांक नहीं की है। कानून ने लिव इन को समर्थन देकर आगे बढऩे की अवधारणा को स्वीकार कर लिया है। कानून व्यवस्था प्रभावित होने पर पुलिस कार्रवाई करेगी। मझोला में दंपती ने फिल्म से सीख लेकर समझौता कर लिया है।
नोट :- सौ. चित्र / कुछ संग्रहित सामग्री भिन्न जगहो से।