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Friday, May 3, 2024

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अमरीका, ईरान की सैन्य शक्ति से डरता हैः वाशिंग्टन पोस्ट —- रिपोर्ट – सज्जाद अली नयाणी

लंदन से प्रकाशित होने वाले अरबी भाषा के अख़बार अलक़ुद्स अलअरबी ने चौंकाने वाली रिपोर्ट दी है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिमी देशों के राजनैतिक और मीडिया हल्कों में यह ख़बर गश्त कर रही है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान किसी एसे देश की खोज में व्यवस्त हैं जो उन्हें राजनैतिक शरण दे दे तथा वरिष्ठ पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की निर्मम हत्या के मामले में उन्हें क़ानूनी कार्यवाहियों से सुरक्षित रखे।

रिपोर्ट के अनुसार जब से सीआईए प्रमुख जीन हैसपेल तुर्की की यात्रा करके वाशिंग्टन लौटी हैं और उन्होंने आर्डियो रिकार्डिंग और अन्य साक्ष्यों के बारे में अमरीकी सरकार को बताया है जिससे साबित होता है कि इस हत्या में सऊदी सरकार लिप्त है तब से अमरीका के ट्रम्प प्रशासन को अपने सामने दो ही विकल्प दिखाई दे रहे हैं। एक तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के हनन के मामले में सऊदी अरब पर कठोर प्रतिबंध लगा दे और दूसरा विकल्प यह है कि मुहम्मद बिन सलमान अपना ओहदा छोड़कर किसी अन्य देश में शरण लें।

अमरीकी प्रशासन ने इन विकल्पों के बारे में गहन विचार किया है। यहीं से अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो के उस बयान का मतलब समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि कई हफ़्तों तक सऊदी अरब पर प्रतिबंध लगाने के बारे में विचार किया गया। वास्तव में इस अवधि में मुहम्मद बिन सलमान को शरण देने वाले देश के बारे में विचार किया गया।

इसी संदर्भ में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान को उस लेख को देखा जा सकता है जो वाशिंग्टन पोस्ट में प्रकाशित हुआ। इस लेख में अर्दोग़ान ने कहा कि ख़ाशुक़जी की हत्या का आदेश शीर्ष नेतृत्व की ओर से जारी किया गया मगर साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सऊदी नरेश सलमान हर संदेह से ऊपर हैं। इस तरह उन्होंने सीधे बिन सलमान को इसका हत्या का ज़िम्मेदार ठहरा दिया। यही कारण है कि अमरीकी प्रशासन में यदि किसी भी अधिकारी की ओर से बिन सलमान को इस प्रकरण से अलग करने की कोशिश होती है तो अर्दोगान तत्काल उस कोशिश को नाकाम बना देते हैं।

अटकलें हैं कि बिन सलमान संभावित रूप से पूर्वी यूरोप या एशिया के किसी देश में शरण ले सकते हैं। मगर सवाल यह है कि पूर्वी यूरोप के किसी देश को क्यों चुनना चाहते हैं? अलक़ुद्सुल अरबी का कहना है कि बिन सलमान अमरीका, फ़्रांस या ब्रिटेन जैसे किसी देश में शरण नहीं ले सकते क्योंकि वहां की अदालतों में उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही हो सकती है दूसरी ओर इन देशों की आम जनता यह सहन नहीं करेगी कि ख़ाशुक़जी की हत्यारे को उनका देश शरण दे। इस तरह उनके सामने यह रास्ता बचता है कि पूर्वी यूरोप या फिर एशिया के किसी देश में शरण दें।

हालांकि बिन सलमान ने दुनिया का सबसे महंगा महल फ़्रांस में ख़रीदा है लेकिन अदालती कार्यवाही के डर से वह वहां शरण नहीं ले सकते।

अमरीकी संस्थाएं यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि बिन सलमान अपने पद पर बनें क्योंकि इस बात की संभावना है कि वह फिर कोई बड़ी ग़लती कर बैठें जिसकी क़ीमत अमरीका को भी चुकानी पड़े। इसलिए ज़रूरी है कि मध्यपूर्व में अमरीकी हितों को बचाने के लिए बिन सलमान को उनके पद से हटाया जाए। ट्रम्प ख़ुद को इसके लिए तैयार नहीं कर पा रहे हैं लेकिन उन्हें यह भी पता है कि कांग्रेस विशेषकर डेमोक्रेट्स को बहुमत मिल जाने की स्थिति में सऊदी अरब के साथ कोई नर्मी नहीं बरतेगी।

इसलिए अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने अपनी हालिया रियाज़ यात्रा के दौरान स्थिति की गंभीरता से सऊदी प्रशासन को अवगत करा दिया जिसके बाद जेलों में बंद कई राजकुमारों को रिहा किया गया और अब मुहम्मद बिन सलमान के पद छोड़ने की बारी है।

बिन सलमान पद से हटे तो इस्राईल को बहुत घाटा होगा जिसने बिन सलमान से बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं और इसीलिए इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू मुहम्मद बिन सलमान को बचाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे थे।

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